चौधरी कार्ड का फोटो खीचकर बाद में अच्छे से देखने का मन बनाए बैठे थे और मान बैठे थे की सीमा जी ने कुछ देखा नहीं पर जैसे की गणित के सवालो में माना की राम ५ किलोमीटर चला कह देने से राम सच में ५ किलोमीटर नहीं चलता ठीक यहाँ भी सीमा जी ने कुछ नहीं देखा मान लेने से ये सच नहीं हो जाता ...
वैसे भी लुगाइयों की नज़र से कुछ छुपा है क्या भला? सीमा जी ने किचेन से आते आते चौधरी जी को कार्ड को फोटू खीचते देख लिया बस फिर क्या था उनका शक यकीन में बदल गया की हो न हो चौधरी जी मेरी जासूसी करा रहे हैं तभी तो चुपके से कार्ड का फोटू खीच रहे थे ताकि कार्ड उनका है ये मुझे मालूम न होवे ...
सीमा जी को देखकर चौधरी जी के मन में एक बार आया की पूछ ही लूं ये जासूसी का क्या चक्कर है पर फिर चुप रहने में ही भलाई समझी और इधर सीमा जी भी कुछ नहीं चाय का कप पतिदेव के आगे बढाया और पास ही अपना कप भी लेकर चाय पीने लगी .
कार्ड अब भी जमीन पर पड़ा दोनों का मुंह ताक रहा था और इधर दोनों पति पत्नी कनखियों से कार्ड को देख रहे थे पर बोले कोई कुछ न ..मन ही मन दोनों भरे बैठे थे ,दोनों का मन करे की पूछ ही ले की कार्ड तुम्हारा है क्या? जासूस की क्या जरुरत पड़ गई? पर पूछे कोई न ..दोनों चोर भी दोनों साहूकार भी ,दोनों शक भी कर रहे दोनों घबरा भी रहे ....चाय ख़तम हो गई पर बात शुरू हुई नहीं और जब जब शुरू ही न हुई तो ख़तम कैसे होगी भला ...
न चौधरी जी ने कार्ड उठाया न चौधराइन ने ....दोनों थोड़ी देर राज कचोरी की तरह फूले हुए बैठे रहे फिर उठकर अपने अपने काम में लगने का नाटक करने लगे पर मन दोनों का मरे कार्ड में अटका रहा ...
रात हुई तो करवटों में गुज़र गई सपने आए तो जासूसी के ...नींद खुले तो भी चैन न पड़े सीमा जी छुप छुप के तकिया गीला करे और मन ही मन सोचे इनकी जासूसी की आदत वो मरे जासूसी नावेलों को पढने से ही लगी है घर का नाम “द इगल “ क्या रखने दिया ये तो खुद को जासूस ही समझने लगे म्हारी ही जासूसी करने लग चले हैं “...
पलंग के दूसरे कोने पर सोए चौधरी जी सोचे की हे भगवन! इत्ती छोटी सी बात पर ये मेरे पर शक कर रही है ? ये सोचते ही अचानक ही उनका हाथ कसम खाने की मुद्रा में गले तक चला गया वो बुदबुदाए “कसम से मेरे मन में कोई पाप न था बस देखा ही था रेखा जी को” उनने कसमसाते हुए करवट बदली और पानी पीने उठ गए जब वापस लौटे तो देखते हैं की सीमा जी जागी हुई है उन्हें बड़ी चिढ हुई..
कुढ़ते हुए सोचने लगे जरूर जासूसी की प्लानिंग कर रहीं होंगी इनके इस शक के फितूर के चक्कर में सब यार दोस्तों के साथ की मटरगश्ती की पोल खुल जाएगी ...
कहाँ तो ऑफिस के बाद काम के बहाने सराफे के चक्कर लग जाया करते थे और कहाँ अब हर बात बाहर आ जाएगी ...सीमा जी को पता लग जाएगा की उनसे गुस्सा करके जब वो बिना खाए घर से निकल जाते हैं तो जाते तो भूखे हैं पर आते कभी भूखे नहीं ..दबाकर गुलाबजामुन- आइसक्रीम और सेव मिर्ची वाला बेक समोसा खाकर आते हैं और गुस्से का जो जलवा बिखेरकर भूखे होने का जो नाटक करते है तो बिचारी चौधराइन को मान मुनव्वल करने में पसीना आ जाता है...
जाने कितनी ही बातें दोनों के मन में आती रही मन का चोर था जो बातें ढूंढ ढूंढकर निकाल रहा था और रात थी की ख़तम हो नहीं रही थी ..
चौधराइन ऐसे सुबक रही थी जैसे तलाक के पेपर सामने रखे हो और चौधरी जी ऐसे उकडू हुए पड़े थे जैसे अभी चौधराइन रेखा जी से उनके चक्कर को साबित करके उन्हें घर से निकाल देंगी ....
न रात जा रही थी न बात जा रही थी..नेपथ्य में कहीं गाना बज रहा था...
रात बाकी बात बाकी होना है जो हो जाने दो,पर यहां प्रेम की संभावना दिख नही रही थी और झगड़े के मूड में दोनों ने थे...
ये था कहानी का पांचवा भाग ...अब क्या होगा अगली सुबह क्या रंग दिखाएगी ...क्या दोनों मिलकर इस समस्या का कोई समाधान निकाल पाएँगे या इनके रिश्ते मैं गांठ पड़ जाएगी जानने के लिए पढ़िएगा कहानी का छठवा और अंतिम भाग