Mr. and M.R.- 1 books and stories free download online pdf in Hindi

Mr. and M.R.- 1

बहुत रात हो चुकी थी, पर अभी भी मीरां को नींद नहीं आ रही थी। उसने सोचा मोबाइल में कुछ देखु, पर फिर उसे लगा कि पूरा दिन तो वही करती हूं। फिर सोचा लेपटॉप पर कोई अच्छी मूवी देखु, पर उसमें भी उसका मन नहीं लग रहा था। आखिरकार उसने अलमारी में पड़ी अपनी पुरानी डायरी निकाली, और सोचा की कुछ लिखू। जैसे ही मीरां लिखने जा रही थी उसे डायरी में लिखे अपने पुराने नोट्स दिखे। वो हर रोज अपने साथ हुई दिन भर की पूरी घटना डायरी में नोट करती थी।
उसने उन पन्नों को खोला, और इत्मीनान से उन्हें पढ़ा। पढ़ते पढ़ते वो उन्हीं दिनों की यादों में खो गई।

Diary Date: 13th October, 2017 (Friday)
मीरां:
आज में बहुत खुश थी कि आज मेरी सहेली का जन्मदिन था और शाम को उसकी बर्थडे पार्टी में भी जाना था। भगवान को शायद मेरी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई और शाम को मुझे ऐसी खबर मिली जिसकी मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी।
घटना:
“हैल्लो? कहां है आप Mr.?” मीरां ने अपने पति को शाम को कॉल किया, वो अपने पति को Mr. (मिस्टर) कहती थी।
“जी आप कौन बोल रही है?” सामने से अंजान आवाज आई। मीरां ने अपने फोन की डिस्प्ले में देखा तो उसमें वो नंबर उसके पति का ही था।
“जी आप कौन बोल रहे है? ये मेरे पति का फोन है।” मीरां ने गुस्से में आकर कहा।
“देखिए मेडम, आपके पति का हाई-वे पर एक्सीडेंट हुआ है। उन्हें बहुत चोट लगी है। एम्बुलेंस को फोन कर दिया है, वो बस आती ही होगी।”
“आप मजाक कर रहे है?” मीरां को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था, पर सच यहीं था।
“जी नहीं मेडम! आप तुरंत हॉस्पिटल पहुँचिए।”
मीरां और उसके ससुराल के सभी लोग हॉस्पिटल पहुँच गए। मीरां के पति माधव की हालत बहुत खराब थी। उसके परिवार वालो ने सब लोगो से पूछा कि आखिर ये कैसे हुआ? जवाब में वहां का आंखों देखा हाल देखने वाले लोगो ने कहा कि उनकी बाइक स्लिप हो गई थी। हाई-वे पर वो फूल स्पीड में जा रहे थे, अचानक एक गाय सामने आ गई, उसको बचाने के चक्कर में उन्होंने ब्रेक मारी और बाइक स्लिप हो गई।
मीरां ये जानकर, इन सब का जिम्मेदार खुद को ही मानने लगी। वो ही अपने पति से जल्दी आने को बोल रही थी ताकि वो बर्थडे पार्टी में जा सके। उसके पति का कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस था। वो अपने सारे काम निपटाने के बाद घर पे ही आ रहा था। मीरां खुद को ही दोषी मानने लगी।
कुछ देर बाद डॉक्टरों ने कहा कि, “घबराने की कोई बात नहीं है। उनकी जान को कोई खतरा नहीं है, पर उनके दोनों पैरों और बाएं हाथ में फ्रेक्चर आया है। वो कुछ महीने ठीक से चल फिर नहीं पाएंगे। कुछ दिनों तक उन्हें हॉस्पिटल ही एडमिट रहना होगा।”
हालांकि ये कुछ महीनों की ही बात थी पर जैसे माधव के सर पर आसमां टूट पड़ा हो वो इतना चिंतित हो गया। वो अपने बिज़नेस को लेकर चिंतित था। उसके परिवार ने और मीरां ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर वो कुछ समझना ही नहीं चाहता था। माधव के साथ इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार हुई थी इसलिए वो कुछ ज़्यादा ही सोच में डूब गया था।
“ये मेरे साथ ही क्यों हुआ? मैं अब चल पाऊंगा या नहीं? मेरे हाथ अब पहले जैसे ठीक होंगे या नहीं? मैंने ऐसा क्यों किया? क्यों इतनी जल्दबाजी की? मैं जिंदा तो बचूंगा ना? ये दवा मुझ पर जल्दी असर क्यों नहीं कर रही? मैं अपाहिज तो नहीं हो जाऊंगा? मेरे बिज़नेस का क्या होगा?” ऐसे ही पता नहीं कितने सारे ख्याल लिए वो जी रहा था।
कहते है कि अगर मन में ठीक होने की ठान लो तो अच्छे से अच्छा दर्द भी दूर हो जाता है। माधव की तकलीफ़ उतनी ज्यादा नहीं थी पर उस तकलीफ को उसने अपने दिमाग पर हावी कर लिया था। उसकी वज़ह से वो चिड़चिड़ा हो गया था। छोटी सी बात पर गुस्सा करने लगता था। कई बार तो उसे मर जाने के भी ख़्याल आने लगे। उसके परिवार और खास कर के मीरां ने उसे बहुत हिम्मत दी।
ऐसा ही होता है अक्सर, जब हमारे साथ कुछ ग़लत होता है तो हमें पूरी दुनिया खराब लगने लगती है। पूरी दुनिया खुश है और सिर्फ आप ही दुःखी हो ऐसा एहसास होता है। आपके साथ अच्छा हो तो भी बुरा लगता है। मन बेचैन ही रहता है। ऐसे में कोई अपना साथ ना हो तो जीना दुश्वार हो जाता है।
मीरां ने उसके पति की सेवा भी बहुत की। उसकी सेवा में उसने ना दिन देखी ना रात बस कैसे उसका पति पहले जैसा ठीक हो जाए उसी कोशिश में वो जुट गई। उसने अपनी जॉब से भी छुट्टी ले ली थी। आखिर उसकी मेहनत एक दिन रंग लाई। माधव के हाथ और पैरों के फ्रेक्चर ठीक हो गए। थोड़ा वक्त लगा, पर कुछ वक्त बैसाखी के सहारे तो कुछ ही वक्त में मीरां के सहारे वो चलने लगा था। अब उसके फिर से चलने और दौड़ने के दिन शुरू ही होने वाले थे पर कुछ वक्त के लिए उसे हॉस्पिटल में रूटीन चेक-अप और ड्रेसिंग के लिए जाना था।
डायरी के कुछ पन्नों को पलटने के बाद,

Diary Date: 29th December, 2017 (Friday)
मीरां:
आज का दिन मुझे हमेशा याद रहेगा। आज मेरे Mr. को हॉस्पिटल रूटीन चेक-अप और ड्रेसिंग के लिए जाना था। दो-ढाई महीने से वो इस परेशानी से जूझ रहे थे। शारीरिक पीड़ा तो परेशान करती ही थी पर मानसिक पीड़ा मेरे Mr. को ज़्यादा परेशान करती थी। मुझे आज बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि आज उनको इस मानसिक पीड़ा से भी मुक्ति मिलने वाली थी। जब मेरे Mr. की मुलाकात हुई M.R. (Medical Representative) से।

तो कौन है ये M.R.? ये जानने के लिए अगले और इस शृंखला के आखरी कड़ी को पढ़ना ना भूले...

To be concluded in next part...

सत्य घटना पर आधारित

✍️ Anil Patel (Bunny)

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