रेवती रमन- अधूरे इश्क की पूरी कहानी. - 4 RISHABH PANDEY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रेवती रमन- अधूरे इश्क की पूरी कहानी. - 4

“भाय शुक्ल रेवती के ख्याल मन से जात नही बा? का करी यार”- रमन


“कुछ न करा तू दो दिन रूका बस सारा इश्क के भूत तोहार उतर जाई। काहे कि तू पास होबा मुश्किल से और कहो फेलो (फेल) होइ जा और रेवती ठहरी टॉपर क्लास के लड़की हम सुने है कि कानपुर के जेएनडी से इन्टरमीडियट करे आहे। जिसका बच्चा हर बार मेरिट लिस्ट में छाय रहते है।”- शुक्ला


“हा यार ये बात तो है भाय”-रमन

“वो कानपुर की टॉपर, तुम मुश्किल से बचे होने से फेल प्रिये,
कहो रमन बाबू कैसे होगा ये मेल प्रिये???”- शुक्ला


“हा पता है तूम बहुत बड़े शायर के नाती हो हमारा समस्या न सुलझाना बस ज्ञान पेलते रहना तुम, गदहा कहुके”- रमन
“चला अबे खाय लेया, बाद में देखा जाई तोहार महबूबा के भी काहे कि भूखे पेट हमार दिमाग छुट्टी पर चला जात है”- शुक्ला

(रमन और शुक्ला रात का भोजन लेकर सोने चले जाते है। शुक्ला को लगता है कि रमन रेवती की तरफ केवल कुछ समय के आकर्षण के चलते खींच रहा है इस लिये शुक्ला उसे कभी भी सिरीयस नही लेता है बल्कि मजाक उड़ता रहता है। लेकिन समय के साथ रमन का रेवती की तरफ आकर्षण बढ़ता ही जाता है वह ऐसे समय पर क्लास, कोचिंग, यहाँ तक की मेस का टाइम भी सेट करता है कि उसे रेवती का दीदार हो जाये। रमन की हालत पर शुक्ला को कुछ चिन्ता होने लगी थी।)

(कॉलेज कैटीन में एक दिन रमन मोहनी के पास जाकर अकेले में बात करने को कहता है मोहनी उसकी बात सुनने किनारे जाती है)

“हे भौजी हमाय एक काम कर दा बहुत बड़ा एहसान होई”- रमन (मोहनी से)

“क्या हुआ बताओ जरा देवर जी”- मोहनी (रमन के मुँह से खुद के लिये भौजी सुनकर मोहनी के दिल में लड्डू फूटने लगते है उसके बाद तो रमन जान भी माँग ले तो शायद एक बार को मोहनी मना नही करती । कच्ची उम्र में प्यार का कुछ असर ही ऐसा होता है।)


“हमका रेवती के एक फोटू दिलाये दो प्लीज, हम तुम्हे ट्रीट दे देंगे जहाँ कहबु वहाँ”- रमन

“काम जरा मुश्किल बताये रमन बाबू काहे कि अगर रेवती को भनक भी लग गयी की हमने फोटू दी है तो हमारा संगम घाट पर विर्सजन तय है। लेकिन हमको भौजी कहे हो तो तोहार लिये कुछ भी लेकिन हाँ फोटू पासपोर्ट वाली ही मिल पाई उससे ज्यादा की इच्छा न करीहा”- मोहनी

“चला ठीक बा वही लाय दा”- रमन

(रेवती बहुत ही सीधी और पढाई प्रिय लड़की थी, रमन रेवती के प्यार में है ये बात रेवती के सिवाय अब तक पूरे यूनिर्वसिटी कैम्पस में पता चल चुकी थी। उधर रेवती ने अभी रमन को नोटिस तक नही किया था। बीएसी के यूनिवर्सिटी के फार्म भरने के दौरान मोहनी ने चुपके से एक फोटो निकाल ली रेवती अपने में ही मगन थी उसे पता भी नही चला।)

“रमन बाबू ...!!! ये लो तुम्हारी अमानत ”- मोहनी
(मोहनी ने रमन को सफेद पेपर में लिपटी हुई एक पासपोर्ट साइज फोटो दे दी, रमन ने उस फोटो को बिना कुछ कहे मुस्काराते हुये जेब में रखी और जाने लगा।”)

“अरे अरे.....कहा....... हमारी ट्रीट का क्या हुआ देवर जी......मतलबी यार किस के फोटो लिये खिसके..”- मोहनी (मुँह बनाते हुये)
“नही देंगे ना..........चलिये जहाँ मर्जी हो”- रमन
(रमन मोहनी को लेकर कैटीन जाता है जहाँ ट्रीट में कुछ समोसे और कोल्ड ड्रिंक दोनों लेते है। रमन के चेहरे की खुशी देखकर बार बार मोहनी उसे छेड़ती है। रमन शाम से बार बार रेवती की फोटो को जेब से निकाल कर देखता और अजब सी खुशी के साथ वापस रख देता। रात हुई पढाई के बाद जब शुक्ला सो गया तो रमन ने टेबल लैम्प के नीचे रेवती की फोटो को रखा और उसे एक टक निहारता रहा। तभी अचानक से शुक्ला जगता है और तेज से आवाज लगाता है रमन..................)






“रमन.........!!! कहा है तू इसकी इतनी हिम्मत हो गयी जो एडवोकेट शंकर नारायण के बेटे को उठाकर थाने ले आया, कौन है जिसे अपनी वर्दी प्यारी नही है”- एडवोकेट शंकर नारायण (रमन के पिता)



(इस कोलाहल (शोर शराबा) के बीच थाने के बाहर लगभग बीस से ज्यादा एस यू वी गाड़ियाँ आकर खड़ी हुई और सैकड़ो वकील धड़ाधड़ थाने में घूसते चले गये। थाने में मौजूद सभी स्टाफ का गला इस भीड़ को देखकर सूखने लगा। एडवोकेट शंकर नारायण हाईकोर्ट के वकील होने के साथ साथ बार काउन्सिल के प्रभावशाली व्यक्ति थे उन्हे इम्प्रेस करने के लिये छुट भैया वकीलो ने थाने में तोड़ फोड़ शुरू कर दी। दरोगा जी अपनी कुर्सी पर खड़े हो गये और अनायास ही उनके हाथ जुड़ गये)




“शंकर बाबू बड़ा भारी मिस्टेक हो गया हमको नही पता था कि ये आपका लड़का है माफ कर दीजिये.”- थानेदार



“अरे जाओ लड़के को लेकर आओ और चाय बोलो जल्दी से बाबू जी के लिये”- थाने दार ( कान्स्टेबल से)


“ऐ दरोगा हम यहाँ चाय पानी करने नही आये है हमारे लड़के को किसी जुर्म में थाने लाये हो”- एडवोकेट शंकर नारायण

“अअअअअरे............ कोई जुर्म नही है शंकर बाबू बस गलती से ले आये है बच्चा से कोई गलती नही हुई है।”-दरोगा

“ तुमायी भीख नही चाही हमका शंकर नारायण इतना सक्षम है कि अपने बेटा के छुड़ा ले लेकिन अगर गलती से लाये तो अंजाम भी भोगोगे दरोगा नही तो बताओ क्यों लाये हमाये बेटा को”- शंकर नारायण



“शंकर बाबू चौराहे पर मारपीट कर रहे थे जे लड़के..........जो दिखाई दिया उसी हिसाब से ले आये है.......”- दरोगा (इतना कह के दरोगा लगभग निशब्द हो गया)




“रमन का हुआ रहा वहाँ काहे मारपीट भई ?”- शंकर नारायण



(रमन की अपने पिता से ज्यादा बनती नही थी क्योंकि शंकर नारायण चाहते थे कि रमन उनकी तरह ही एक वकील बने, लेकिन रमन की रूचि साइंस में ज्यादा थी जिसके चलते रमन अपने पिता से कम बोलता था। शंकर नारायण के पूछने पर रमन तो नही बोला लेकिन वहाँ मौजूद शुक्ला ने पूरी बात बता दी।)

“ बच्चा हमारी दोस्त के हाथ में चाकू मार दिये वो अस्पताल में जिन्दगी और मौत से लड़ रही है इसी बात को लेकर हमारा झगड़ा हुआ, और बच्चा अब तो रमन के भी चाकू मार दिये है”- शुक्ला

“काये दरोगा तू आंधर आहे का रे? (दरोगा अंधे हो क्या) तोहके मुल्जिम और पीड़ित में अन्तर समझ नही आवत का? चाकू हमारे बेटे को लगा है, चाकू मारने वाला दो –दो लोगो को घायल किया है और तुम उठा लाये मेरे बेटे को, चला अभी कप्तान को फोन लगाते है रूको तुम्हे पुलिस की ड्यूटी समझाना जरूरी है”- शंकर नारायण

(शंकर नारायण की बात सुनकर दरोगा की हालात खराब हो गयी वह तुरंत माफी माँगने लगा और रमन और उसके दोस्तों को छोड़ दिया ।)

“ये दरोगा अगर पाइसा लेकर इ अपराधी को छोड़ा तो अच्छा न होई .........इ जान ला (ये जान लो) इसके खिलाफ मुकदमा लिखा, इनके सारी गुन्डाई निकाल देब”- शंकर नारायण (बच्चा और उसके साथियों की तरफ इशारा करते हुये कहा)

(बच्चा और उसके साथी ये सुनकर बुरी तरह से डर गये और जोर जोर से रोने लगे की बाबू जी गलती हो गयी माफ कर दो। लेकिन शंकर नारायण जो कि क्रिमिनल के बहुत जाने माने वकील थे आज जब वही क्राइम उनके बेटे पर आया था तो आग बबूला हो गये।)



“शंकर भइया आप चलिये रमन के साथ हम लोग देख लेगे यहाँ का मामला पूरा आप परेशान न होइये बेटा छूट गया है अब....... वरना आपका बल्ड प्रैरेशर बढ जायेगा”- साथी वकील



(शंकर नारायण, रमन , शुक्ला और अन्य लोग थाने से निकल जाते है, कुछ वकील वही रूक कर कार्यवाही पूरी कर रहे होते है।)


“पिता जी.... हम चाहते है कि अगर बच्चा हमारी दोस्त से माफी माँग ले और उसे फिर कभी तंग न करे तो उस पर कोई केस न करीये आप, स्टूडेन्ट है अभी से कोर्ट कचहरी में फँस गया तो अपराधी ही बनेगा”- रमन



(शंकर नारायण रमन की बात सुनकर कुछ बोलते नही फिर फोन निकाल कर साथी वकील को फोन कर के कार्यवाही रूकवाने को कहते और बच्चा से माफी माँगने और फिर कभी रेवती को तंग न करने की शर्त रख देते है। बच्चा मान जाता है। रात बहुत हो चुकी थी तो शुक्ला और रमन , शंकर नारायण के साथ रमन के घर चले जाते है। रमन को इस हाल में देखकर रमन की माँ बहुत परेशान हो जाती है और उसे गले से लगा लेती है।)




“अरे मोर (मेरा) लाल..........तोहार इ हाल के कर दीहिस मोर बच्चा, सुन लीजिये रमन के बाउ जी.....!!! जो भी हमाय रमन का ये हाल किया है उसको छोड़ियेगा नही ताकि फिर कोई हमाय लाल पर नजर डाले कि हिमाकत न करे।”- सुचित्रा देवी (रमन की माता जी)
रमन अपनी मां के गले लगता है और मां पुत्र सुकून को प्राप्त करते है सुचित्रा देवी रो रही होती है।
" माँ हम ठीक है रो नही "- रमन (आंसू पोछते हुए)

(शुक्ला आज पहली बार रमन के घर की सम्पन्नता देखकर आश्चर्यचकित था उसे समझ नही आ रहा था कि जो रमन उसके साथ इतना साधरण से हास्टल में रहता है वो इतना अमीर है। रमन के फैमली डॉक्टर ने आकर रमन के घाव को देखकर मलहम पट्टी ठीक से फिर से कर दी, रात खाने के बाद रमन और शुक्ला बिस्तर पर लेटे थे। दिन भर की थकान से दोनो इतना चूर थे कि कब सो गये पता नही चला। सुबह हुई और शंकर बाबू की गाड़ी दोनों को हॉस्टल छोड़ आयी। रमन की माँ उसे आने नही देना चाहती थी लेकिन रमन रेवती की चाह में कहा रूकने वाला था। हॉस्टल पहुँचकर सबसे पहले किशन को फोन लगा कर रमन ने मोहनी के माध्यम से रेवती का हाल पूछा।)


ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग..........रमन का फोन बजता है


“अरे रमन भाय ...........मोहनी से बात हुई अभी ......रेवती को होश आ गया है...........”- किशन


(रमन इतना सुनते ही शुक्ला के साथ हॉस्पिटल की तरफ भागा)......................शेष अगले अंक में