इस रिस्ते को क्या नाम दुँ ? - 6 Kalpana Sahoo द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इस रिस्ते को क्या नाम दुँ ? - 6



अबतक की कहानी थी स्रुती दिपक् के आगे अपनी अतीत के दर्द भरे पन्हें को खोल रही थी । अब आगे........

दिपक् :- फिर क्या हुआ ? तुने क्या किया ?

स्रुती :- बचपन से मेरी एक आदत है की, में हर किसी को प्यार देती हुं पर किसीको आशुं नहीं दे सकती हुं । भलेही मुझे जितनी दर्द हो पर में सामनेवाले की दर्द कम करने केलिए कोसीस जरूर करती हुं । कोई मेरे लिये बुरा बने ये मुझे मजुंर नहीं है ।

मुझे पता थी उसके बिना जी नहीं पाउगीं में, फिर भी उसकी घर की खुसी केलिए उसको छोडने का फएसला ली मैंने ।

रिस्ता सिफ् मेरी नहीं थी इसलिए उसका राय लेना चाही । जब में उसको मुझे भुलजाने केलिए बोली तो उसने मुझे पुछा क्या हुआ
है ? क्युं यैसी कर रहे हो ? मैंने उसको उसकी घरवाले और उनकी खुसी के बारे में बतायी तो उसने मुझे पुछा तुम उनके बारे में तो सोचली पर मेरे बारे में क्या सोची ? में चुप् हो गयी । मेरी आखों से आशुं निकल गयी । में बहत रोई । उसने मुझे समझाया और हिम्मत दिया की तुम चिन्ता मत करो में कुछ ना कुछ करता हुं । मैंने बोली तुम क्या करोगे ? उसने बोला में फिर से समझाऊगीं घरवालों को देखना जरूर मान जायेगें बरना हम भाग जायेगें । मैंने उसको मना की । बोली तुम जो कहोगे करुगीं पर चोरी छुपे तुमसे सादी नहीं कर सकती । में तुम्हारे साथ तुम्हारे घरवाले के मरजी से घर बसाना चाहती हुं । उसने बोला ठीक् है में समझाउगीं सबको ।

उस दिन के बाद हम दोनो के बीच में बातें थोडी कम् हो गेयी थी ।यैसे कुछ दिन चली फिर एक दिन उसने मुझे call करके मेरी पापा को phone देने केेेलिए बोला । उसका पापा को कुछ बात करना था मेरी पापा से । मैंने phone पापा को दि । थोडी देर तक वो दोनो कुछ बात किये । फिर मुझे बुलाये और phone को मेरी हातमें थमा दिये । में जब पापा को देखी तो पापा के आखों में आशुं
था । पापा मुझे बोोले हम लोग उनके काबील नहीं, तुझे वो पसन्द नहीं करते हैं । मगर इसके बाद भी तु अगर उससे प्यार करेगी, सादी करना चाहेगी तो में खुद जाके उसको मनाने की कोसीस करुगां । इतना बोलते ही चलेगये पापा ।

इन सब बातों को सुनकर मुझे बहत रोना आई । फिर आशुं पोछके में उसको call की और पुछी तुम्हारे पापा क्या बोले मेरे पापा को जो मेरी पापा रो रहे थे ? उसने मुझे कहा में नहीं जानता हुं । में तो phone पकडाके वहां से चला गेया था क्या बोले क्या नहीं मुझे मालुम नहीं । फिर में ठीक् है बोलके call काट दी ।

कुछ देर सोची, खुद को सबाल की । क्या मुझे जो जन्म दिया है, पाल पोष के इतनी बडी की है उसके आखों में आशुं दे के क्या में कभी खुस रेह सकती हुं ? फिर फएसला
लेली ।

कुछ दिन यैसे ही बीत गयी । ना वो मुझे call किया ना में उसको call की । फिर एक दिन उसने जब call किया में उसको दुबारा phone ना करने केलिए कही । उसने मुझे पुछा क्युं ? मैंने बोली तुम भी यही चाहते हो । बरना तुम जरूर phone करते, मगर तुम एक हप्ते के बाद call कर रहे हो मुझे और वैसे भी तुम्हारे घरवाले खुस नहीं है इस रिस्ते से । तुम बताउो हम कैसे रेह सकते हैं एक साथ ? बेहतर यही होगा हम अलग हो जायें । उसने बोला क्या तुम खुस रेह सकती हो ? में बोली अब सीफ् मेरी खुसी देखुगीं तो में स्वार्थी बन जाउगीं । मुझे कमजोर मत बनाउो ।

इसके बाद हम दोनो हमेशा केलिए जुदा हो गये । पर प्यार इतना थी ना इसलिए याद आही जाती है । हम दोनो फिर बात करने लगे, मगर उस नजर से नहीं बल्की दोस्त के हिसाब से । यैसे ही थोडी थोडी दुरीयां डाल के हम दुर होगेये एक दुसरे से ।

उसके बाद में बहत अकेली पड गयी थी । बहत रोयी पर कुछ हासील् नहीं हुई । कुछ दिन बाद उसके सादी भी हो गया । सबके लिये कुछ ना कुछ करते करते में अकेली पड गयी.......बहत अकेली । ना मेरी गम किसीसे बान्ट सकती थी ना सेह सकती थी ।

इतनी सारे बात के बाद स्रुती रो पडी और दिपक् ने उसे समझाया ।


To be continue........