जासूसी का मज़ा भाग -1 Kanupriya Gupta द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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जासूसी का मज़ा भाग -1

रसोई से सुबह सुबह आती कचोरी और हलवे के घी की खुशबू किसी खास अवसर के होने की गवाही दे रही थी. चटोरों के शहर इंदौर के वैशाली नगर का ये घर जिसके बाहर नेमप्लेट पर ऊपर बड़े बड़े अक्षर में “द ईगल “ लिखा था , आज किसी मेहमान के आने के इंतज़ार में था .
इंदौर शहर में देखा जाए तो सुबह सुबह कढाई चढना कोई बड़ी बात नहीं क्यूंकि इन्दोरी सुबह” सेव जीरवन वाले पोहा , और गरम उतरती जलेबी के बिना हो जाए ये कम ही होता है ,ये शहर ही ऐसा है भिया इस अकेले शहर में जितने बतोलेबाज और चटोरे लोग रहते है उतने एक साथ कही मिलना बड़ी मुश्किल बात है ...दुनिया भर के लोग जीने के लिए खाते है पर इन्दोरी खाने के लिए जीते है .
आज इस घर की मालकिन श्रीमती सीमा चौधरी सुबह से ही नाश्ते और खाने की तैयारियों में जुटी थी तभी पीछे से श्रीमान चौधरी जो घर के मालिक और सीमा जी के पति भी हैं उन्होंने आकर पूछा “भई खुशबू तो बड़ी अच्छी आ रही है क्या खास बन रहा है आनंद के लिए ?” सीमा जी ने पहले तो आश्चर्य से चौधरी जी की तरफ देखा जैसे उनने कोई अनोखी बात पूछ ली हो , फिर कढाई की कचोरियों पर तेल डालते हुए,लम्बी आह भरती हुई बोली “खास तो रोज़ ही बनता है पर आपको कदर ही कहाँ है?” चौधरी जी भी पलटवार के मूड में बोले “अरे! जब घर में हमारी ही कदर नहीं तो खाने की क्या बात करें मजाल है जो हमारे लिए ऐसे पुड़ी ,कचोरी हलवा बने” सीमा जी ज़रा तमतमाते हुए बोली “हाँ आप भूखे पेट ही ४५ साल के हो गए”...चौधरी जी को कोई जवाब सूझा नहीं तो प्लेटफोर्म पर रखे बर्तनों के ढक्कन खोलने लगे ,सीमा जी ने देखा तो पहले तो हल्का सा मुस्कुराई फिर चिढ़ते हुए बोली “आपकी ये जासूसी की आदत जाएगी नहीं आनंद भाई साहब को आने दीजिए नाश्ता लगाती हूँ टेबल पर” चौधरी साहब बडबडाते हुए किचन से बाहर निकले “हाँ मेरी क्या कदर है घर में ? करूँगा इंतज़ार हमेशा की तरह...”


वैसे आप लोगो को बता दूं कि “द ईगल “ चौधरी दंपत्ति के घर का नाम है .. पर बस नाम ही है यहाँ कोई दबा छुपा काम होता नहीं ...हुआ ये की चौधरी जी को किसी ज़माने में जासूसी नावेल पढने का जबरदस्त शौक था वही किसी नावेल में उनने ये नाम देखा और अपने घर के बाहर भी बड़े बड़े अक्षरों में द ईगल की पट्टी लगवा ली .लोगो ने कई बार पूछा भी की घर का “भला ये कैसा नाम हुआ ? “चौधरी विला” रख लेते या “चौधरी सदन” रख लेते ये “द ईगल “ क्यों...?पर हमारे चौधरी साहब हंसकर टाल देते .

सीमा जी चाहती तो बड़ा थी की सबको बता दे की “कुछ नहीं इनका जासूसी का फितूर है जिसके कारण घर को ये अजीब नाम झेलना पड़ रहा है वरना हम भी किसी विला या सदन में रहते.. हालाँकि ! वो इसी बात से खुश थी की चौधरी जी ने बच्चो के नाम जासूसी उपन्यास के पात्रों जैसे नहीं रखे वरना तो घर में लिली और रॉबर्ट जैसे नाम वाले बच्चे घूम रहे होते .


देखा जाए तो पिछले कुछ सालों से श्री और श्रीमती चौधरी के बीच इस तरह की नोक झोक बढती ही जा रही थी हालाँकि हमेशा ऐसा नहीं था इन दोनों के बीच भी प्यार के फूल महकते थे . एक समय था जब दोनों साथ में फिल्में देखने जाते, एक ही कोन से आइसक्रीम खाते ,बाइक पर बैठकर खजराना गणेश मंदिर जाते और लौटते हुए रस्ते में रूककर कभी बर्गर तो कभी बर्फ गोला का मज़ा लेते ..या कुछ नहीं तो रीगल सिनेमा पर फिल्म देख आते पर पिछले १,२ साल से बड़े होते बच्चो ने चौधराइन के समय पर कब्ज़ा जमा लिया और चौधरी जी ऑफिस और जासूसी नावेल में सुकून खोजने लगे ..


पति पत्नी दोनों ये मान बैठे की सामने वाला अब उनसे प्यार ही नहीं करता ...प्यार होकर भी कहीं गुम हो गया. दोनों कहना भी चाहते पर कह भी नहीं पाते और एक दुसरे पर अपनी खीज निकालते रहते
वो फ़िल्मी गाना तो सुना ही होगा आपने “जताना भी नहीं आता छुपाना भी नही आता हमें तुमसे मोहब्बत है बताना भी नहीं आता .......”


क्या होगा आगे ? चौधरी ,चौधराइन की रुकी रुकी सी ज़िन्दगी में फिर से कोई हलचल होगी ? और कौन है ये आनंद भाई साहब जिनके आने की तैयारियां “द इगल” में इतने जोर शोर से चल रही हैं ? जानने के लिए पढ़िएगा कहानी का दूसरा भाग ...