अरमान दुल्हन के - 16 एमके कागदाना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अरमान दुल्हन के - 16

अरमान दुल्हन के भाग 16

सरजू अगले ही दिन कविता को मायके छोड़ आया और खुद गांव चला गया। पार्वती ने खूब हु हल्ला किया।
"मां तैं चाहवै के सै (आप क्या चाहती हैं)? जी लेण दे हमनै! " सरजू फफक-फफक कर रो पड़ा था।

"तेरै कुणबे आळे जीण ना देते मन्नै!न्यु कहवैं थे बेटा काढ़ (निकाल)दिया इसनै घर तैं। जिब ल्याई सूं (तब लेके आई हूँ)थम्मनै! अर उनै कित (उसको कहाँ)छोड़ आया?"
"उनै उणकै घरां छोड़ आया।" सरजू बे मुश्किल से बोल पाया था।

"ठीक सै ओड़ै ए(वहीं) बिठाए राखिए उसनै!" पार्वती ने नाक- भौं सिकोड़कर कहा।

"और के करदा (क्या करता) ? इस सुशी नै बूझ तो के करया था उंकी गैल (उसके साथ)? थाम्मनै म्हारा जीणा हराम कर राख्या सै।"

पार्वती ने चालाकी से बात संभाल ली और सरजू से मीठी मीठी बातें करने लगी।
"देख बेटा, जो होग्या उसनै भूल ज्या! अर कविता नै इतवार (रविवार) नै ले आ!"

सरजू बहुत ही सीधा-सादा युवक है। वह सबको अपने जैसा ही समझता है।मां की बातें जादू सा असर कर जाती हैं। सरजू के लिए चूरमा-खीर बना कर उसे प्यार का दिखावा किया जाता है। वह उनके चक्रव्यूह में पूरी तरह फंस चुका है वह मां और बहन के व्यवहार से बहुत खुश होता है। सुशीला भी अपने ससुराल चली जाती है।
अगले रविवार को जैसे ही सरजू कविता को लेकर आता है ।मां अपना बैग उठाकर मायके जाने को कहती है।

सरजू अपनी मां से कहता है -"मां तैं बी मामा कै जावै सै, अर मैं एक हफ्ते मै घरां आऊं सूं। कविता एकली रहज्यागी!
कै तो कोय सी बेबे(बहन) नै ले आऊं!"
"ना रै, मैं तड़कै शाम लग आज्यांगी।" पार्वती ने फिर पासा फैंका।
"ठीक सै मां फेर तड़कै ए आ ज्याईये!" सरजू ने मां को फिर चेताया।
"हां बेटा! फिक्र मत ना करै।" पार्वती दिलासा देते हुए चली गई।
अगले दिन सुबह सरजू भी अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गया। सरजू को बता था कि कविता को अकेले में डर लगता है ।इसलिए वह भाभी को कविता के पास सोने की कह कर गया।घर में अकेली कविता रह गई।सुबह से शाम तक नितांत अकेली थी। शाम को ताऊ ससुर के घर चली गई। बच्चे चाची- चाची करके चिमट गए।
"देख भे कविता, तैं आ जाया करै बाळकां धोरै (पास) । बाळकां नै मैं न्हीं भेजूंगी थारै घरां! काकी(चाची) का स्भा (स्वभाव ) तन्नै बी बेरा सै।कविता की जेठानी ने स्पष्ट कह दिया।
"के बात होगी जिज्जी? मां नै किम्मे (कुछ) कह दिया के?"
कविता ने चिंता करते हुए पूछा।
" ए बेबे कोई दिन ईस्सा ना जांदा!जिस दिन वा ना लड़ै। किसी न किसी गेल भिड़ी ए रहवै सै।" चीकू की मम्मी ने बताया।
"देख जिज्जी, मां बी अपणै घरां गई अर चीकू का चाचा बी कोनी घरां।मैं एकली सूं। के तो मेरै धोरै तैं सो ज्याईये अर के बाळकां नै भेज दिये। मां के आड़ै (यहां)देखण आवैगी?"
"ए सोण की बात ना सै! सो तो मैं ज्यांगी। मैं तो नू कहूँ थी अक दिन जिब मन कर आ ज्याया कर।" चीकू की मम्मी ने कहा।
"ठीक सै जिज्जी, मैं चालूं सूं फेर । आप आ ज्याईयो काम करके नै।" कविता वापिस घर आकर बे-मन से खाना बनाती है। मन नहीं था, फिर भी पेट में पल रहे नवआंगतुक के लिए खाना भी जरूरी था।
अगला दिन बीत गया किंतु पार्वती वापस नहीं आई।उससे अगले दिन भी नहीं आई। ऐसे ही पांच दिन बीत गये।
कविता को चिंता सताने लगी थी। शुक्रवार की शाम को सरजू लौटा। इधर उधर नजर दौड़ाई।मां न दिखी तो कविता से पूछा-"मां कित्त सै मीनू?"
"मां तो आई ए ना सै।" कविता ने जवाब दिया।
"के......?, हद करदी मां नै तो!कसम तैं यार।कम तैं कम मन्नै कह तो देती, मैं अपडाउन कर लेता।"सरजू परेशान हो उठा।
अगले ही दिन सरजू अपने मामा के घर जाता है।
मामा को कहता है कि आप ही मेरी माँ को समझाओ।कविता की तबीयत ठीक नहीं है और ऐसे में मां को वहां होना चाहिये कि नहीं।मामा ने भी अपनी मजबूरी बताई कि हम तो कई बार बोल चुके हैं।मगर ये हर बार इस तरह की बात करती है कि हम इसे मजबूर नहीं कर सकते।सरजू को पता था मां के मायके में एक एकड़ जमीन हिस्से में आती है।इसलिए मामा मां को बाध्य नहीं करेंगे। अगर बाध्य किया तो मां कहीं नाराज होकर जमीन कोई दूसरे भाई के नाम ना करवादे। मामा अपनी रोटी सेंकने की फिराक में था।
आखिरकार सरजू ने मां से बात करने का फैसला लिया।
"मां तैं के चावै सै? एक दिन का कहके आई थी अर पांच दिन हो लिये तन्नै।किमे तो सोच लेती?" सरजू ने गुस्से पर काबू करने की कोशिश करते हुए कहा।
"मन्नै तो लिकड़ना (निकलना) था बस ओड़ै ( वहाँ से)तैं। ईब्ब बेरा पाटैगा उसनै! और मुंह पिचकाने लगी।

क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा