अरमान दुल्हन के - 14 एमके कागदाना द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अरमान दुल्हन के - 14

अरमान दुल्हन के भाग-14

सरजू एक सप्ताह बाद अलग कमरा लेकर कविता को ले आया। हालांकि सैलरी कम थी । बहनों की शादी में बैंक से लॉन लिया था। बैंक की किस्त कट जाती और कमरे का किराया दे देते। जितने रुपये बचते थे उसमें राशन पानी आ जाता। समय समय पर चिकित्सक से भी परामर्श लेता रहता। कविता ने भी कम पैसे में घर चलाना सीख लिया था। जिस कोठी में कमरा लिया था वहां कोठी के पीछे खाली प्लॉट भी था। कविता ने मकान मालिक इजाजत लेकर वहां टमाटर, बैंगन और पुदीना लगा दिया था।ताकि सब्जियों के पैसे बचा सके। चार महीने खुशी खुशी बीत गए । इस दौरान न सरजू गांव में गया और न कोई वहां से आया। सुशीला को अपनी मां से अधिक लगाव था। वह अपनी मां के पास आती रहती थी। अड़ोस-पड़ोस और परिवार के लोगों ने पार्वती को भला बूरा कहना शुरू कर दिया। एक दिन शकुंतला काकी ने तो पार्वती को बहुत सुनाया।
"पार्वती इस घंमड नै छोड़ दे!क्यातैं घर नै मुंदा मारै सै? इतणा सुथरा तेरा कुणबा रहया।क्यूं भिगन कररी सै।बाळकां नै घरां ले आ।"

"या क्यांकि बाळकां नै ल्यावै थी। एकलखोरडी होरी सै या।" सरजू के ताऊ ने गुस्से में बहुत बूरा भला कहा।

पार्वती सबकी बातें सुन सुनकर परेशान हो गई थी और सबको गालियां देने लगी। सबने वहाँ से घिसकने में ही भलाई समझी।सुशीला मां के पास आई हुई थी। पार्वती दुखी होने का दिखावा करने लगी। सुशीला ने मां को दिलासा देते हुए कहा-"मां तैं ऐर (परेशान मत हो) ना मानै। मैं जाऊंगी तड़कै ए (आने वाली सुबह)। अर उननै लेके आऊंगी।"

अगले दिन सुबह ही सुशीला सरजू के ऑफिस पहुंच गई। सरजू को देखते ही उस पर बरस पड़ी।उसने ऑफिस में जमकर हंगामा किया।
आवाज सुनकर सरजू का अफसर आकर पुलिस स्टेशन फोन मिलाने लगा तो सरजू ने उन्हें रोकते हुए बताया- "सर ,शी इज़ माय सिस्टर। प्लीज़ डू नॉट कॉल द पुलिस!"

सरजू ने सर से विनती की और अपनी बहन को कमरे पर ले आया। सुशीला को देखकर कविता चौंक गई।
"आच्छया... तो महाराणी ऐश करै सै!" सुशीला ने घूरती नजरों से देखते हुए कहा।
"नमस्ते दी! ठीक सो आप?" कविता ने ससम्मान पूछा था।
"जड़ै तेरे बरग्गी भावज आज्या ओड़ै नणद किस तरियां ठीक रहज्यागी? कड़ै तैं माथाफोड़ मिली हमनै? बेरा नै म्हारे कर्म ए माड़े थे के?" सुशीला ने तंज कसा।
कविता को सुशीला की बातें तीर सी चुभ रही थी। किंतु उसने चुप रहना बेहतर समझा।रह रहकर मां की सीख याद आ रही थी।
"कीचड़ मै भाठा फैंकै छींटमछींट।"
कविता ने सुशीला को पानी दिया ।
"पी राख्या सै पाणी! तन्नै पिया दिया अर मन्नै पी लिया।चालो घरां, मैं लेण आई सूं थम्मनै! सुणगी नै!" सुशीला ने आंखें तरेर कर कहा।
"देख बेबे ईब्ब मैं ना जाऊँ ओड़ै।" सरजू ने स्पष्ट मना करते हुए कहा।
सुशीला गुस्से में उठी और कविता की तरफ खा लेने वाले अंदाज झपट पड़ी। कविता को बिलकुल अंदेशा नहीं था दीदी इस तरह अटैक कर देंगी।
कविता बचने के लिए फुर्ती से उठ खड़ी हुई। सुशीला हट्ठी कट्ठी तगड़ी जवान लड़की थी। कविता को दीवार के साथ लगाकर, लगातार उसके गले पर दबाव देते हुए बोली-
"तैं सै भिगन की जड़ , मैं तेरा आज काम तमाम ए कर दयूंगी।"
कविता बेदम होने लगी थी । कविता ने पूरा जोर लगाकर उसे धक्का दे दिया और जोर जोर से हांफने लगी।
सुशीला को गिरने से थोड़ी चोट आई और वह खड़ी न हो सकी।वह अपनी जगह पर ही पड़ी- पड़ी चिल्लाने लगी-
"तैं भाई कोनी ,दुश्मन सै कमीण।तेरी लुगाई धक्के देवै सै अर तैं बैठया बैठया लखावण (देखना) लागरया सै। तन्नै शर्म ना आती।"
"तन्नै तो भतेरी शर्म आई नै! इसका गळा दबावंती नै।आड़े तैं चली जा।"सरजू गुस्से में चिल्लाया।
"ठीक सै चली जांग्गी! ए..ए या अंगूठी दे मां की सै।" कहते हुए सुशीला ने लगभग अंगूठी छीन ली।
"सारी टूम तो तारेली,इसकी ए कसर बाकी थी।" सरजू गुस्से में फट पड़ा।
कविता के लिए ये सब असहनीय था। मरती क्या न करती उतार कर दे दिया आखिरी गहना भी। फफक -फफक कर रो पड़ी थी वह। सुशीला अंगूठी लेकर चली गई।
सरजू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे सांत्वना देते हुए कहा-
"मीनू जिंदगी रही तो टूम( गहने) फेर बणज्यांगी। "
सरजू..... बात टुमा की कोनी? बात.... सै इज्ज़त की!इणनै (इन्होंने) मेरी जिंदगी.... कति ...बिरान(खराब) कर दी।" कविता सुबकते-सुबकते बोले जा रही थी।
"प्लीज़ तैं रो मत यार!देख!ना तै मैं बी रो पडूंगा।" सरजू ने उसे गले से लगा लिया और सचमुच रो पड़ा। उससे कविता की दशा देखी नहीं जा रही थी।
सरजू कविता को समझा बूझाकर ऑफिस चला गया। कविता काफी देर तक रोती रही।रोते रोते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला।

क्रमशः

एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा©