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तू नहीं और सही, और नहीं और सही

तू नहीं और सही, और नहीं और सही

अन्नदा पाटनी

छत पर खड़ी थी । इधर उधर नज़र दौड़ाई तो देखा । बाज़ू वाली छत पर एक लड़की खड़ी किसी को हाथ से कुछ इशारा कर रही थी । उत्सुकता हुई कि देखूँ कौन है जिसको इशारा कर रही है । ओह, तो यह बात थी, सामने की खिड़की पर एक नौजवान खड़ा था ।सुंदर और आकर्षक । मुस्कुरा कर उसने भी कुछ इशारों से समझाया । मुझे भी समझ आ गया कि ये कहीं मिलने का समय और जगह तै कर रहे हैं । मुझे यह समझ नहीं आया कि मेरा क्या लेना देना था, मै क्यों मज़ा ले रही हूं।

सचमुच, न जाने क्यों मेरा मन बार बार उधर भागने लगा। कभी खिड़की से तो कभी छत से ताक झाँक करती और उनके हाव भाव का लुत्फ़ उठाती रहती । जब दोनों एक दूसरे को फलाइंग किस देते तो मेरे मन में भी गुदगुदी होने लगती ।

उस लड़की का नाम है नमिता । देखने में अच्छी है पर अपने आपको समझती बहुत है । किसी को कुछ भी कह देती है । अब शायद उस नौजवान समीर के चक्कर में और भी इतराने लगी है ।मन होता है उसे मज़ा चखाया जाय । पर जाने दो मुझे क्या करना है ।

पर ऐसा नहीं था जितना मैं दिमाग़ कहीं और लगाना चाहती, घूम घूम कर वहीं पहुँच जाती । कई बार उत्सुकतावश छत पर जा खड़ी हो जाती । पढ़ने के लिए किताब ले जाती पर पढ़ने में मन ही नहीं लगता । बार बार नज़र वहीं दौड़ जाती । फिर कुछ न दिखता तो नीचे उतर आती ।

एक दिन नमिता से मुलाक़ात हुई । हमेशा की तरह अपनी डींगें मारने लगी । मैंने उसे टोका, “आजकल क्या चल रहा है ? किसी से कुछ चक्कर वक्कर चल रहा है क्या ?

“अच्छा, तू समीर की बात कर रही है । देख ले मुझ पर कैसा फ़िदा है । आख़िर कुछ तो होगा मुझमें जो वह मुझे डेट कर रहा है । किसी और की तरफ़ तो वह देखता भी नहीं है । तू भी तो उसके आसपास रहती है पर तेरे में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है । मेरी पर्सनेलिटी है ही ऐसी कि बाक़ी सब फीकी पड जातीं हैं।” नमिता का ग़ुरूर साफ़ झलक रहा था ।

“ओ हो, इतना घमंड ! “ मैंने उससे कुछ कहा तो नहीं पर बुरा लगा और बहुत अपमानित महसूस किया। बहुत दिन तक उसकी बातें खटकती रहीं । मैंने अब ताक झाँक करना भी बंद कर दिया । मन ही नहीं करता था ।

उस दिन सड़क पर कुछ शोर सुनाई दिया तो देखने छत पर चली आई । नीचे देख रही थी कि सामने की खिड़की में समीर को खड़ा देखा । वह किसी को हाथ हिला कर वेव कर रहा था । मैंने देखने की कोशिश की कि किसे हाथ हिला रहा है क्योंकि नमिता तो नज़र आई नहीं । यह क्या ! वह तो मेरी ओर ही देख रहा था ।नहीं नहीं, यह नहीं हो सकता । मैं घबरा कर वहाँ से चली आई । मैं ग़लत भी तो समझ सकती हूँ ।

अगले दिन बाल धोए तो ठंड के मारे तेज़ धूप में बाल सुखाने छत पर चली आई । मन हुआ चुपके से देखूँ कि सामने खिड़की में कोई है क्या । समीर दिखा । उसने भी मुझे देख लिया था । इस बार जब उसने हाथ हिलाया तो मेरे मुँह पर मुस्कराहट आ गई । मुझे नमिता की बात याद आ गई कि समीर तो उसके अलावा किसी को देखता तक नहीं । अब आकर देख ले मज़ा आ जायेगा ।

इस ज़रा से वाकये ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी । जानबूझ कर कभी खिड़की, कभी छत से, समीर को मौक़ा देती कि वह मुझे देख ले और हाथ हिला दे । मैं भी अब जवाब में मुस्कुरा कर हाथ हिला देती । मेरे मन में समीर के लिए कुछ भी नहीं था पर नमिता को नीचा दिखाने और अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेने की भावना जोर मारने लगी ।

एक दिन जब मैं कॉलेज से आ रही थी तो बस स्टैंड पर समीर को खड़ा देखा । मुझे देखा तो मेरे पास आ गया । मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा । समझ ही नहीं आया क्या बोलूँ । उसने ही कहा,”घर जा रही हो ?” मैंने सिर हिला दिया । वह बोला,” मैं भी घर जा रहा हूँ ।” और वह साथ साथ चलने लगा ।मैं ज़्यादातर ख़ामोश ही रही, हाँ, हूँ में जवाब देती रही । फिर घर आ गया, मैं जल्दी से बाय करके अंदर चली गई ।

बीच में एक दो दिन और निकल गए । कॉलेज से लौटते समय मेरी आँखें समीर को ढूँढने लगतीं। आज दिखा तो चेहरा खिल उठा । लगता है वह जानबूझकर इसी समय बस स्टैंड के आसपास रहता है ताकि मुझ से मिल सके । भले ही यह कह कर मैं मन को बहका रही थी कि मेरे मन में समीर के लिए कुछ भी नहीं है पर कुछ तो मुझे भी हो रहा था तभी तो उस से मिलना अच्छा लगने लगा । बात बड़ी शालीनता से करता और विनम्र भी लगा ।

अब समीर रोज़ ही मिलने लगा पर साथ केवल कुछ समय का ही रहता । एक दिन वह बोला,” मुझे बहुत भूख लगी है, चलो कॉफ़ी पी लेते हैं और कुछ खा भी लेंगे ।”

मैंने कहा,” तुम खा लो मुझे तो भूख नहीं है। “ घबरा रही थी क्योंकि इस से पहले किसी लड़के के साथ कभी रेस्टोरेंट नहीं गई थी ।

समीर ने झट मेरा हाथ पकड़ कर कहा,” प्लीज़, प्लीज़ ।” उसके हाथ के स्पर्श से पूरे शरीर में एक लहर दौड़ गई । मैं उसे मना ही नहीं कर पाई । फिर हम रेस्टोरेंट में गए। वहाँ मैंने तो कॉफ़ी ली और समीर ने कॉफ़ी और सैंडविच ।

घर लौट कर समीर का वह हाथ पकड़ना याद आता रहा । अजीब सी अनुभूति हो रही थी । अब हम रोज़ मिलते । सड़क पार करते जब वह मेरा हाथ पकड़ता तो बड़ा अच्छा लगता । एक दिन पिक्चर का प्रोग्राम बना । थोड़ी झिझक थी क्योंकि उसके पास बैठने का सोच कर अजीब सा लग रहा था ।पिक्चर देखते देखते अचानक मैंने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया । मैंने धीरे से वह हाथ हटा दिया । पर थोड़ी देर बाद फिर वही हुआ । इस बार मैं चुपचाप बैठी रही । मुझे समझ नहीं आया कि कैसे रिएक्ट करूँ ।अच्छा भी लग रहा था और अजीब भी ।थोड़ी अनमनी ज़रूर हो गई । लौटते में पिक्चर के बारे में बात करते घर आ गए ।

एक दिन अचानक नमिता मिल गई ।थोड़ी बुझी हुई और दुबली लग रही थी । मैं कुछ बोलती उसके पहले ही बोल उठी,” तो आजकल समीर के साथ प्यार का नाटक चल रहा है ?”

मैं बोली, “ क्यों आग लग गई ।बड़ा घमंड था न कि तुम्हारे अलावा किसी को देखता तक नहीं है ।”

वह बोली,” मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह किसी से भी दोस्ती करे, प्यार करे । मुझे जब से पता चला कि वह तुम्हारे साथ संबंध बना रहा है तो मुझे लगा कि तुम्हें आगाह कर दूँ ।”

“किस बात के लिए ?” मैंने पूछा ।

वह बोली,” थोड़ा सावधान रहना । कहीं बाद में पछताना न पड़े ।” मै समझ गई कि वह जलन के कारण मुझे समीर के ख़िलाफ़ भड़का रही है ।

मैंने हँसते हुए कहा,” अब तुम्हारी दाल नहीं गल रही ते उस बेचारे को बदनाम कर रही हो । मेरा वह अच्छा दोस्त है और रहेगा । तुम अपने पर ध्यान दो, मैं अपना ख़्याल ख़ुद रख सकती हूं ।”

नमिता बोली, “ मैंने अपना फ़र्ज़ समझ कर तुम्हें चेता दिया बाक़ी तुम्हारी मर्ज़ी ।” मैं मन ही मन बड़ी ख़ुश थी यह देख कर कि नमिता के अहं को कैसी चोट लगी । कहाँ गया अहंकार ।

अगले दिन समीर मिला तो मैंने बातों बातों में पूछ लिया कि नमिता से उसके संबंध बिगड़ने के कारण क्या थे । वह बोला, “ उसकी अकड़ और सुपीरियोरिटी कॉम्प्लैक्स ।किसी को कुछ समझती ही नहीं थी । कई बार उसने मेरी भी बेइज़्ज़ती की । जब देखो अपनी ही शान मारना । इतना घमंड, तौबा तौबा। मैं उसके नख़रे कब तक सहता । इसलिए मैंने ही तौबा कर ली उस से ।”

जिस सहजता से समीर ने यह सब कहा वह मुझे थोड़ा अटपटा लगा क्योंकि जब कोई संबंध टूटता है तो उसकी चुभन, उसकी टीस चेहरे पर और आवाज़ में आ जाती है । पर उसने ग़लत भी नहीं कहा क्योंकि नमिता के बारे में सब यही राय रखते हैं । मेरा मन निश्चिंत हो गया और समीर सही लगा ।

धीरे धीरे मैं समीर के प्रति गंभीर होने लगी। मुझे महसूस होने लगा कि जो मेरे मन में चल रहा है वह प्यार ही है। उस से मिलना, बातें करना, साथ खाना -पीना, मूवी देखते हुए उसके पास बैठना, हाथों में हाथ, उसका स्पर्श, सब कुछ गुदगुदा जाता है । उस से मिलने की उत्कंठा बराबर बनी रहती और हर नये दिन की शुरुआत उस से मिलने की आस में प्रसन्नता भरी रहती ।

मैंने कई बार समीर को घर बुलाने का सोचा पर घबराती थी कि घरवाले इसे पसंद नहीं करेंगे ।आज भी हमारे समाज में लड़के और लड़कियों के रिश्तों को शक की नज़र से ही देखा जाता है । सोचा इंतज़ार करना बेहतर होगा । वैसे समीर भी इसे विषय को टाल देता ।

आज परिवार के साथ शॉपिंग का विचार मन में आया तो समीर से बहाना बना कर मिलने से मना कर दिया । उसने भी कहा कि आज वह भी बहुत व्यस्त है ।

दोपहर को माँ और बहनों के साथ मॉल में गई । हर बड़े स्टोर में घुस कर कुछ न कुछ ख़रीदा । जूते और सैंडल लेने एक स्टोर में घुस ही रही थी कि फ़ूड कोर्ट पर नज़र पड़ी ।अरे यह तो साइड से समीर जैसा लग रहा है, और उसके पास बैठी यह लड़की कौन है? पर नहीं, यह समीर नहीं हो सकता, उसे तो आज दम मारने की भी फ़ुरसत नहीं थी, ऑफ़िस में इतना काम था।

देखूं तो सही कि समीर ही है या कोई और । थोड़ा आगे बढ़ी तो देखा समीर ही था । “हेलो समीर ।”

समीर ने मुड़ कर देखा और एकदम से उठ खड़ा हुआ । “अरे तुम ! तुम यहाँ कैसे ?”

“ बस शॉपिंग करने आई थी ।” मेरी आँखें फिर भी उस लड़की को घूर रही थीं ।

समीर मेरी जिज्ञासा को समझ गया था, बोला,” नमिता यह मेरी मौसेरी बहन रिया है । कानपुर से अचानक आ गई । अच्छा हुआ, मेरी मीटिंग कैंसिल हो गई तो इसे यहाँ ले आया ।” यह कहकर वह रिया की ओर मुड़ा,” रिया, यह नमिता है, हमारे पड़ौस में रहती है।” कहते ही समीर ने मेरी तरफ़ आँख मिचमिचा दी ।मैं समझ गई कि वह उसे नहीं बताना चाह रहा कि मैं उसकी गर्लफ़्रेंड हूँ ।मुझे थोड़ा बुरा तो लगा पर सोचा कल बात करूँगी ।

अगले दिन समीर मिला ते मैंने पूछा,” क्या रिया सचमुच तुम्हारी कज़िन है या कोई और ? और उस से झूठ क्यों बोला मेरे लिए ? क्या शान बिगड़ रही थी यह कहने में कि मैं तुम्हारी प्रेमिका हूँ ?” गर्लफ़्रेंड ही कह देते ।”

“अरे बाप रे, इतने सवाल एक साथ ! सब बताता हूँ ।रिया मेरी मौसी की लड़की है।तुम्हारे बारे में अगर मैं सही बोल देता तो तुम्हारा मेरा अफ़ेयर मेरी मम्मी पापा तक पहुँच जाता और वह भी नमक मिर्च लग कर।मैं चाहता हूँ कि मैं ही उन्हें बताऊँ न कि कोई और । और रिया तो चली भी गई ।”

समीर के चेहरे से और बातों से लगा कि वह सच कह रहा है । मैं निश्चिंत हो गई और हमारे प्यार की पींगें बढ़ने लगीं ।

इसी बीच मुझे घरवालों के साथ एक शादी में कलकत्ता जाना पड़ा । पाँच छ: दिन का प्रोग्राम था । समीर को बड़ा बुरा लग रहा था । बार बार कहता रहा तुम रुक जाओ, बाक़ी सबको जाने दो ।पर वह तो संभव ही नहीं था ।

विवाह के सारे कार्यक्रम निबटने के बाद हमारा कलकत्ता-भ्रमण का इरादा था कि तभी पापा के ऑफ़िस से बुलावा आ गया और हमें दो दिन पहले ही लौटना पड़ गया । मैं बड़ी ख़ुश थी कि समीर को सरप्राइज़ दूँगी । मैं उसका रिएक्शन देखने को पागल हो रही थी ।

बंबई पहुँचते ही जल्दी से नहा धोकर समीर के ऑफ़िस पहुँच गई । बाहर ऐसी जगह खड़ी हो गई कि वह मुझे न देख पाए । उसे सरप्राइज़ जो देना था । थोड़ी देर में समीर दिखा, मैं सामने आने ही वाली थी कि मुझे रिया दिखी । वह तो चली गई थी फिर यहाँ कैसे ? मैं अपनी जगह ठिठक गई । समीर रिया से कुछ कह कर अंदर गया और पाँच सात मिनट बाद बाहर आ गया । आते ही रिया का हाथ पकड़ा और उस से सट कर चलने लगा । उसके हाव भाव से तो वह बहन कहीं से भी नहीं लग रही थी । हृदय में जैसे शूल चुभ गए हों । एक बार तो मन हुआ कि उनके सामने आ जाऊँ पर मन को किसी तरह रोक लिया । लग रहा था जैसे किसी ने जान ही निकाल दी हो । दुखी मन से उल्टे पाँव चल दी ।

लौटते में नमिता टकरा गई । मैं बात करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं थी पर न चाहते हुए भी रुकना पड़ा । मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं । नमिता भाँप गई । बोली,” क्या हुआ, क्या लैला मजनू में झगड़ा हो गया ?”

मैं खिसियायी सी हँसी हँसी और बोली,”नहीं आज थोड़ी तबीयत ख़राब है ।”

“ओह, अच्छा ! मुझे लगा कि शायद कुछ नज़ारा देख कर आ रही हो जिस से साँप सूंघ गया है ।अगर मेरी कुछ ज़रूरत पड़े तो बता देना ।” वह बोली ।

उसे क्या बताती । चुपचाप घर लौट आई।मन में शंका के बादल गहरा रहे थे । समीर को फ़ोन लगाया । मैंने उसे नहीं बताया कि मैं वापस आ गई हूँ । पूछा,”क्या कर रहे हो ?” तो बोला,” अरे कुछ मत पूछो, आज तो सर उठाने की भी फ़ुरसत नहीं है । अभी चार छ: दिन यही चलेगा, तुम चाहो तो एक हफ्ता और रुक सकती हो ।”

मेरा मन हुआ ख़ूब खरी खोटी सुनाने का पर अपने ग़ुस्से को कंट्रोल किया और ज़्यादा बात नहीं की । समीर ने,”मिस यू जानू “ कह कर फ़ोन बंद कर दिया । ग़ुस्सा तो इतना आ रहा था कि कह दूँ,” मिस यू माई फ़ुट ।”

बड़ी उथल पुथल चलती रही । समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस उलझन को सुलझाऊँ । पहले तो लगा था कि मुझे ग़लतफ़हमी भी तो हो सकती है पर जब समीर ने फ़ोन पर झूठ बोला तो समझते देर नहीं लगी कि कुछ तो इनके बीच में चल रहा है ।फिर तो मॉल में रिया से हुई मुलाक़ात भी याद आ गई । इसका मतलब वह दो नाव में सवार है । दोनों को ही उल्लू बना रहा है ।

मन हुआ नमिता से पूछूँ कि वह मुझे समीर से सावधान रहने की नसीहत क्यों दे रही थी । पर अब किस मुँह से उस से पूछूँ । और जब तक समाधान नहीं होगा मन को चैन नहीं पड़ेगा ।

क्या करूं ? समीर से बात करने का कोई फ़ायदा नहीं । बहानों की उसके पास कमी नहीं होगी । अभी तक तो उसे मालूम नही पड़ पाया है कि मैं सब जान गई हूँ ।फ़ोन पर मैं नॉर्मल ही रहती । पर एक बात मैंने ग़ौर की कि अब वह बार बार मुझ से जल्दी आने की ज़िद कर रहा था । अब क्या हुआ । रिया को लेकर घूम रहा था, वह कहाँ गई ।क्या वह मुझे ही प्यार करता है ।

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