Ek AAsman aisa bhi books and stories free download online pdf in Hindi

एक आसमान ऐसा भी

एक आसमान ऐसा भी

मीता दास

सिराज की माँ एक सैनिक की विधवा थी | सिराज के अब्बा असम रेजिमेंट में एक नायब सूबेदार थे | असम रायफल्स देश का सबसे पुराना सैनिक बल है | * पूर्वोत्तर का प्रहरी * बटालियन का एक अपना ही रुतबा होता था यह सिराज के खून में घर कर गया था, पिता के मरने के बावजूद वह और उसकी विधवा माँ ने कभी नहीं चाहा की सिराज सेना में भर्ती न हो | उसका सपना था कि वह भी एक सैनिक की तरह फ़क्र से कह सके की वह भी पर्वतीय लोगों का मित्र है और उनका आदर्श वाक्य दोहरा सके ...." फ्रेंड्स ऑफ द हिल पीपुल एंड सेंटीनेल्स ऑफ नॉर्थ-ईस्ट ", पर जो खुदा को मंजूर पिता के शहीद होने के बाद वह कुछ ज्यादा ही भावुक हो उठा था, देश के प्रति |

सिराज जवान होते ही थल सेना के लिए अर्जियां देनी शुरू कर दी, वह भी असम रायफल्स ज्वाइन करना चाहता था पर उसकी भर्ती गोरखा रेजिमेंट में हुई | वह बेहद खुश था की वह भी पिता की ही तरह दुश्मन को घेर कर मारेगा और पदक हासिल करेगा | लांस नायक सिराज मुहम्मद की पोस्टिंग कश्मीर के सीमावर्ती इलाके में हुई | अपनी चौकी पर जब आतंकवादियों का हमला हुआ तब सिराज ने डटकर उनसे मुकाबला किया और अपने साथी को बचते हुए जख्मी भी हुआ | सीने में तीन गोली लगी और शुक्र है की दायीं तरफ लगी थी | आर्मी अस्पताल में उसका भरपूर इलाज हुआ, माँ देखने आई थी अस्पताल और सर पर हाथ फेरते हुए कहा था -- " बेटा अब निकाह कर ले | " सिराज बोला -- "अम्मा तूने कोई लड़की देखी है ? "

अम्मा ने पुछा --" तेरी नजर में है कोई ? "

सिराज हौले से बोला --" शेख चचा की बेटी फ़ातिमा "

अम्मा मुस्कुरा दी बोली ---" अस्पताल से छुट्टी मिलते ही घर जाने की भी छुट्टी की अर्जी दे देना, तू घर आते ही निकाह पढ़वा दूंगी फातिमा से | मुझे अंदेशा था की तू फ़ातिमा पर फ़िदा है, फ़ातिमा भी गाहे - बगाहे घर आती रहती है मुझे दवा पिला जाती है और कभी तेरे पिता के शौर्य के किस्से हुलस - हुलस कर सुनती और रोमांचित होती रहती है और पूछती है कभी - कभी --" चचीजान क्या सिराज भी चच्चा जैसा ही बहादुर है ? अबकी मैं तुझे मिलने आ रही थी तो बोली -- " चचीजान सिराज से कहना एक भी दुश्मन साबुत न छोड़े | " बेटा मैंने उसकी आँखों में तेरे लिए सम्मान देखा है और प्यार भी | सुलझी हुई है छोरी, जल्द निकाह की बात करती हूँ उसके अम्मी - अब्बा से | "

अम्मा लौट गईं गौहाटी, सिराज को भी छुट्टी मिल गई अस्पताल से, रेजिमेंट पहुँचते ही उसका शानदार स्वागत किया गया, प्रशस्ति पत्र के साथ मैडल से भी नवाज़ा गया | कुछ दिन ठहर कर उसने घर जाने के लिए एक लम्बी छुट्टी की अर्जी असफर को थमा दी | असफर उसके काम से खुश थे और वे चाहते थे की सिराज घर से छुट्टी बिताकर लौटे और दुगने लगन से देश की सेवा करे |

जब गौहाटी पंहुचा उसकी ट्रेन धीमी गति से प्लेटफार्म पर रुकी देखा सामने अम्मी खड़ी है, उत्साहित निगाहों से उसे ढूंढती हुई | करीब ही फ़ातिमा भी ताजे फूलों का हार लिए उत्साहित सी नजर आई | सिराज उतरते ही अम्मी से लिपट गया उसने महसूस किया अपनी जन्मभूमि की महक ही अलग है और अम्मी की देह से उठती पसीने की महक भी कितनी लुभावनी थी | उसने नजर उठाकर फ़ातिमा को देखा तो उसने झट से फूलों का हार उसके गले में डाल दिया, दूर से चचा ने पुकारा – ‘रुको मैं भी आया’ |

सीधे सादे ढंग से निकाह पढ़ लिया गया, सबने नव दम्पति को ढेरों आशीर्वादों से मालामाल कर दिया | रात सिराज ने पूछा --" फ़ातिमे कहीं चलें हनीमून को ? "

" तुम भी न क्या कहते हो, अम्मी अकेली पड़ नहीं जाएँगी ? जरा भी समझ नहीं है अब भी वैसे ही हो | "

"चलो कल अम्मी को लेकर ही सही कहीं घूम आएं, मैं भी अस्पताल और बैरेक के वातावरण से उकता सा गया हूँ | "

" ठीक है सुबह अम्मी से पूछती हूँ उनकी पसंद | "

ज़ाहिरा को रात भर नींद नहीं आई, सोचती रही एक ही बेटा है और वह भी बाप ही की तरह सेना का दीवाना | पर उसकी रूह कभी - कभी काँप जाती पर सिराज पर कभी जाहिर नहीं होने देती, कहीं उसका यह कमजोर पहलु देख सिराज बिखर न जाए | फ़ातिमा भी सैनिक की बेटी थी इसलिए वह सिराज को और उसके जज्बे को बखूब समझती थी | उसे सिराज पर नाज़ भी था | जब - जब सिराज उसे अपने मैडल दिखाता वह उसे हौले -हौले निहारती और उसपर अपने दूधिया हाथ फेरते हुए कहती --- " मेरे सिराज, मुझे तुम पर नाज़ है | "

वह दिन भी आया जब छुट्टियां समाप्त हो गईं और उसे वापस रेजिमेंट जाना था, अम्मी सजल नैनों से उसका माथा सहलाती रही और फ़ातिमा अम्मी के करीब खड़ी होकर उसका बिस्तरबंद और टीन की पेटी को ताकती रही जिसपर लिखा था --- " लांस नायक - सिराज मुहम्मद, गोरखा रेजिमेंट , भारतीय थल सेना ।" ट्रेन प्लेटफॉर्म पर सरकती रही, अम्मी और फ़ातिमा नजरों से दूर और धुंधले होते गए, सिराज की आंखें भर आईं थीं । एक जोरदार धौल पीठ पर पड़ी और आवाज कानों में आई --" दादा सोइनिक होकर रोता हाय " । सिराज उस आगंतुक की ओर मुड़कर हौले से मुस्कुरा दिया ।

" कहाँ ? पेटी में नाम देखकर बोला -" गोरखा रेजिमेंट " आई प्राउड अवर इंडियन आर्मी बट गोरखा रेजीमेंट माय फेवहारिट ।" उसके बात करने के लहजे से लगा वह बंगाल से ताल्लुक रखता है । फिर अचानक वह अपना हाथ शेकहैंड के लिए आगे बढ़ाया बोला -- " माय नेम इज बंकिम गुहा फ्रॉम बारासात कोलकाता ।"

जब वह आगंतुक अपनी सीट पर बैठ रहा था तब सिराज ने गौर किया उसका एक पाँव मुड़ने में जरा तकलीफ दे रहा था उसने पूछा --" मिस्टर गुहा कोई सहायता ??"

" नो - नो नेभार, मैं खुद उठा लूंगा अपना सामान । " आर्मी मैंन को सहायता क्या करेगा तुम यंगमैन ।"

" ओह्ह .. कौन सा रेजीमेंट सर ।" चेहरे की पकी दाढ़ी देखकर सिराज ने इज्जत बक्शी ।

" रिटायर्ड फ्रॉम बी 0 एस 0 एफ 0 .... सिक्किम - चाइना बॉर्डर ( नाथुला पास )।"

" वाह सर, बड़ा ही मनोरम बॉर्डर है |, मैं जब छोटा था पिता के संग गया था छुट्टियों में, दूधिया बर्फ चारों ओर और माइनस टेम्प्रेचर पर दोनों देशों के जांबाज प्रहरी, मैं अभिभूत हो गया था | "

" अभी किधर को पोस्टिंग है .... ?

" कश्मीर बॉर्डर "

" कायरता की ज़िन्दगी जीने से बेहतर है मरना " हैं न !

" जी सर, जय महाकाली, आयो गोरखाली "

" हा हा हा ...... जवान तुम्हारा खुकरी किधार है ? "

" यह रही " कहकर सिराज ने अपनी खुकरी गुहा जी को दिखाई |

" एक बात पूछूं सर ? "

" एक क्यों दस पूछो यांग मैन ? "

" आपके पैर को क्या हुआ "

" कुछ नहीं टांग टूटी हुई है स्टील की प्लेट लगी है पर ऑपरेशन गलत हो गया और टांग वापस साबुत न मिला | "

" जंग में ? "

" जीवन के जंग में "

" वो कैसे सर "

"बहुत जिज्ञासा से भरा हुआ है तुम यंग मैन " जरा रूककर बोले 20 साल पहले मेरी पोस्टिंग असम में थी उस वक़्त | मैं ड्यूटी से लौटा तो देखता हूँ मेरी पत्नी पलंग पर लेटी हुई है क्षत - विक्षत हालत में और एक शत्रु पक्ष का सैनिक अपने कपड़े समेट रहा है | मेरा फौजी खून खौल उठा और मैंने उसपर छलांग लगा दी उसने मुझपर उलट वार किया और मैं फर्श पर गिर गया | मैंने आव देखा ना ताव अपनी पिस्टल निकाला और पूरी गोली उस शत्रु पक्ष के सैनिक के सीने में उतार दी | पर जब उस सैनिक ने मुझे गिराया था तब मेरा टांग खाट के पायताने से टकराया और मेरा हाड्डी पौंऊँ का चूर – चूर .... बस हो गया काम तमाम .... हा हा हा | छोरा नही उसको ..... हरामी ” | ओल्ड मैंन अभी भी उसे यादकर अपने दांत पीस रहा था |

सिराज को आगे कुछ पूछने की जरुरत ही नहीं पड़ी, गुहा साहेब खुद भी बताये चले जा रहे थे |

पिस्तौल की सारी गोलियाँ उस मिलिटन के सीने में उतार दिया ओ शाला वहीँ ढेर हो गया | और जब तक मैं अपना टूटा हुआ पैर लिए उठता, मेरा बीबी पलंग से उठा और आधे - अधूरे कपड़ों में ही घर से बाहर की तरफ दौड़ा, मैंने काफी आवाज भी दिया और वो नहीं सुना ..... भागता गया .... भागता गया | मैं लाचार टूटा पैर लिए उसका पीछे नहीं जा सका | सुबह तक टूटा पैर और दिल लिए रोता रहा, घिसटकर घर से बाहर आया तो देखता हूँ कुछ मोहल्ले के लोग मेरी बीबी को उठाकर लाये हैं उसका निस्तेज शरीर भीगा हुआ था, शरीर में सांसे नहीं उठ - गिर रही थी, वह मर गई, मेरी रत्ना मर गई | पास के ही पोखर में छलांग लगा ली थी, उसे तैरना भी नहीं आता था | थोड़ी देर सन्नाटा पसरा रहा ..... फिर अचानक गुहा साहेब चिहुंक कर बोले विसकी चोलता है .... मारेगा एक चुमुक ...... फुर्र हो जायेगा सारा दुक्खो !

रास्ता फिर कैसे कटा पता ही नहीं चला | जम्मू स्टेशन पर अपना ट्रंक उतारा उसने और बेहद स्निग्ध भाव से ट्रेन को निहारा और बुदबुदाया ...... मेरी वर्दी का मान रखना, माँ की भावनाओं की शान रखना और मेरी प्रीतो { फ़ातिमा } का अभिमान रखना |

सिराज को एक ऐसा सुन्दर आसमान मिल गया था वह अब अपना सारा ध्यान देश की रक्षा और देश के हिट को केंद्र में रखकर ही अपना काम करना चाहता था | गुहा साहेब की जिंदादिली उसे और भी कर्मठ बना गई | दर्द को कैसे ख़ुशी में बदला जा सकता है यह गुर उसे अब समझ में आ गया था | वह तेज कदमो से स्टेशन के पब्लिक टेलीफोन बूथ की ओर बढ़ गया | रिसीवर उठाकर एक नंबर डायल किया और उधर से एक गुनगुनाती हुई मीठी आवाज के आते ही उसने सिक्का डाल दिया |

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