wah jo ajnabi tha books and stories free download online pdf in Hindi

वह जो अजनबी था

वह बेकरारी से बिस्तर पर करवटें बदल रही थी। दिल को किसी पल सुकून न था। सांसे बोझल महसूस हो रही थीं और आंखो से नींद गायब थी। नींद भी कितनी प्यारी चीज़ है अगर महेरबान हो जाए तो इन्सान को दुनिया से बेखबर कर देती है। सब दुख दर्द मुंह छुपाकर कहीं गायब हो जाते है। और अगर यर महेरबान न हो तो इन्सान सर से पांव तक तकलीफ की आग में सुलग उठता है। हर गम हर तकलीफ़ रात की खामोशी में तकलीफ़ देने चली आती है। अरबा ने लब काटते हुए सोचा। लेकिन कुछ साल पहले तो उस पर ज़िन्दगी महेरबान थी और नींद भी, फिर जुदाईयों के अजाब ने जिन्दगी की रौनकें ही छीन लीं। जुदाई जो गर्म खौलते पानी की तरह है जिसमे इन्सान का जिस्म तेज़ी से पिघलता जाता है। मास हड्डियों से अलग हो जाता है और आखिर में कुछ नहीं बचता। सिवाए यादों की तकलीफ के।


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वह तीनों टीवी पर अपना पसंदीदा प्रोग्राम देखते पिज़्ज़ा का मज़ा भी ले रही थी। "जोनी मेरा पीस कहां ले गई।" चूंकि लाउन्ज में थोडा अन्धेरा कर के फ़िल्म देखी जा रही थी। इसलिए अरबा उर्फ बबली ने आंखो पर ज़ोर देकर जोनी के तेज़ी से चलते मुंह को देखा।

"कसम से मैं ने नहीं खाया।" जोनिया ने कोल्ड ड्रिंक का गिलास मुंह से लगाया। अरबा ने शक की नज़रों से तलबिया की सूरत देखी।

"मेरे पिज़्ज़ा का एक पीस गायब है। जल्दी बताओ किसके पेट मे है।" अरबा ने उठकर लाईट जलाकर दोनों से पूछा।

" अरे लाइट क्यों आन की। सारा मज़ा किरकिरा कर दिया।बन्द करो जल्दी।" जोनिया ने आवाज़ लगाई।

"मुझे अभी के अभी मेरा पिज़्ज़ा वापस चाहिए। मेरी भूक रह गई है।" अरबा रोने जैसी हो गई।
"मोटी कम खाया करो। खुद ही खाकर हम लोगों पर इल्जाम लगा रही हो भुलक्कड़।" तलबिया उर्फ तब्बू ने परीशान होकर कहा। उसको भी मूवी सुकून से देखनी थी।

"मैं क्यों भुलक्कड़ होने लगी। मैं फिर ऑर्डर करती हूं पिज़्ज़ा का और इस बार पेमेंट तुम दोनो करोगी।" अरबा ने एक दम फैसला सुनाया और मोबाईल से नम्बर मिलाया।

"मेरा खा लो मोटू! अब फिर से पैसे क्यों खर्च करवा रही हो।" जोनी ने फौरन उसके हाथ से फोन ले लिया तो वह मुंह बनाती लाईट बन्द करके दुबारा कारपेट पर बैठ गई। इस बार तीनों खामोशी से फ़िल्म देख रही थीं की अम्मा दरवाज़ा खोलकर कमरे में चली आई।

" अरे फिर से कमरे में अंधेरा कर रखा है। न घर का होश ना काम की फिक्र।
जब देखो तब टीवी के आगे बैठी हैं।" अम्मा ने लताड़ते हुए लाईट जलाई तो कमरा एक दम रौशन हो गया।

"अम्मा! इम्तिहानों के बोझ से आज़ादी मिली है। अब तो मज़े से रहने दे।" अरबा ने कुशन से सर उठाकर बुरी नज़रों से लाईट को देखा।
"पड़ोस की मुम्ताज़ आई थी। रिदा की शादी का कार्ड दे गई है। तुम लडकियों को किसी आए गए से मतलब है ना मां का हाथ बटाने का ख्याल।" अम्मा ने आडी तिरछी कारपेट पर लेटी बेटियों को गुस्से से देखा।

"तो रिदा भी डोली चढ़ रही है।" अरबा अम्मा के हाथो से शादी का कार्ड लेकर देखने लगी।
" तीन तारीख को शादी है और मेहंदी उसका कार्ड कहां है?" अरबा को सिर्फ एक बुलावे का अफसोस हुआ।

"उनके खानदान में किसी की मौत हो गई है।कार्ड तो छप चुके है इस लिये बस शादी का फंक्शन होगा।" अम्मा ने सोफे पर बेठते हुए बताया।

" मुझे तो शादी पर बिल्कुल मज़ा नहीं आता, एक तरफ होकर बेठे रहो और दूल्हा दुल्हन के ड्रामे देखो जो आज कल बहुत ज़ोरो पर हैं। और अब तो मूवी मकर भी मेहमानों की मूवी नहीं बनाते। मैं तो नहीं जाऊंगी।" जोनिया ने मुन्ह बनाते हुए कहा।
रिदा उनकी पड़ोसन और अरबा कि हम उम्र लड़की थी। अभी तो इन्टर के इम्तिहान अरबा के साथ देकर फ़्री हुई थी कि उसकी भी शादी होने जा रही थी और तब्बू जो उससे तीन साल बड़ी थी, अभी तक रिश्तों के लिये आने वालों के नखरों से परीशान थी। वह अपनी छोटी बहनों से दबाते रंग और अलग नाक नक्शे कि वजह से कम सूरत दिखाई देती। हालांकि गौर से देखो तो वह एक पुरकशिश लड़की थी। लेकिन जोनिया और अरबा के आगे बहुत बुझी हुई लगत। अरबा का गोरा रंग और खडा नाक नक्शा गज़ब ढाता था।वह पूरी अम्मा पर गई थी जबकी जोनिया अम्मा बाबा का मिक्चर और तलबिया पूरी बाबा कि कापी थी।

और अम्मा कि इसी खूबसूरती की वजह से ही तो पच्चीस साल पहले बाबा अपना दिल हार बैठे और अपनी बचपन की मंगेतर को छोड़कर अम्मा से शादी कर ली।
इसी वजह से उनके खानदान में हंगामा मच गया। दादा और ताया ने बहुत ज़ोर लगाया की बाबा अम्मा को छोड़ दे लेकिन बाबा अपनी मुहब्बत पर डटे रहे और उनके खानदान ने उनसे मिलना जुलना छोड़ दिया।




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"बबली! अब चलो भी आईने से चिपक गई हो।" तब्बू कोई तीसरी बार कमरे में आईओए अरबा को घूरा पूरी तय्यार होकर अब आंखो में लेन्स लगा रही थी।
"तुम तो ऐसे तय्यार हो रही हो जैसे शादी तुम्हारी हो। इतनी अच्छी शक्ल खुदा ने दी है सिंघार ना भी करो, तब भी खूबसूरत हो। उसने प्यार से बहन को देखा।

"एक मिनिट तब्बू! बस आती हूं, तुम अम्मा को संभालो, वह आवाज़ दे रही हैं। अरबा आईने से जुड़ी हुई बोली। वह बड़ी बहन को नाम से पुकारती थी।

"चलो जल्दी..... प्रोब्लम क्या है मुझे बताओ।" तब्बू ने उसकी उलझन महसूस की तो कंधो से पकड कर अपनी तरफ घुमाया। पिंक और ओरेंज कलर के खूबसूरत सूट में अपने लम्बे घने बाल खुले चेहरे पर मराहत से मेकअप किए वह किसी खूबसूरती का पैकर लग रही थी।

"तब्बू यार लेंस लगाए तो है पर धुंदला दिख रहा है।" वह मुन्ह बिसूरते हुए बोली तो तलबिया ने गौर से उसकी लाल होती आंख को देखा।
"एक तुम्हे दस बार कहा है लेंस आंखो को नुकसान देते है, मगर तुमने तो बस दुनिया भर का सिंघार करना है। जोनिया की तो मजबूरी है चश्मा लगाती है तो किसी पार्टी में लेंस पहन लेती है। तुम्हे क्या आफत पड़ी है।" तब्बू चिड़ गई।

" कभी कभी तो कोई दावत मिलती है।हमारा ना दधियाल न ननिहाल कहीं जाने का मौका कहां मिलता है।" अरबा के ज़ख्म उधड़ गए।
" लडकियों! अब क्या रुखसती के वक्त पहुँचोगी?" इतने मे अम्मा गुस्से से अंदर चली आई। तुम्हारे बाबा गाडी मे बैठे इन्तज़ार कर रहे है और यहां सिंघार खत्म नहीं हो रहे है।" वह लताड़ने लगी तो अरबा ने जल्दी से सेंडल पहन कर दुपट्टा ओढ़ा फिर तलबिया और अम्मा के साथ बहार निकली।

"अल्लाह हाफिज़ बहनों!" लाउन्ज से गुज़रते जोनिया ने सोफे पर बैठे हांक लगाई तो अरबा धुंधली आंखो से बमुश्किल देख सकी, फिर आहिस्ता आहिस्ता कदम उठाती कार तक पहुंची। शादी का फंक्शन होटल में रखा गया था। होटल के चिकने फर्श पर चलते अरबा ने तलबिया का हाथ मज़बूती से थाम लिया था। सामने ही हाल के दरवाज़े पर रिदा की अम्मी और बहने वैलकम को खड़ी थीं। यहां मूवी बनाने वाले भी साथ थे।
"आदाब आंटी जी! कैसी है।" अम्मा और तलबिया के बाद अरबा भी नज़ाकत से आंटी से मिली।

" अरे मैं आंटी नहीं हू रिदा की बड़ी बहन हूं।" साड़ी पहने हीरा को जबरदस्त शाक्ड लागा।

" ओह सोरी।" अरबा ने आंखे माली कुछ हल्की धुंद छटी फिर चढ़ गई।

"कैसी हो हया!" आगे एक और मिलने वाली अरबा से टकराई तो वह मुस्कुरा कर पुछ बैठी।

"मैं हया नहीं फरवा हूं बबली!" फरवा ने अच्छा खासा बुरा माना था।

"क्या कर रही हो अरबा! अन्धी हो गई हो क्या? चलो शराफत से बैठो एक तरफ।" तलबिया उसको बाजू से पकड़ कर सोफे की तरफ ले आई और समझ तो आज अरबा को भी नहीं आ रहा था की उसकी आंखो की रौशनी को हो क्या गया है। आंखे झपकती तो साफ दिखता फिर धुंद सामने आ जाती।

सारी शादी का मज़ा किरकिरा होकर रह गया। दुल्हन और दूल्हा का केट वाक नज़र आ न सका न ही ढंग से खाना खाया गया। फोटो की शौकीन बबली दिल मसोस कर मोबाईल हाथ मे लिए बैठी सोचती रही की वाकई अंधो की तरह जीना भी कोई जीना है।कई बार दिल में आया वोशरुम में जाकर लेंस उतार दे, फिर सोचा उतार कर रखेगी कहां। लेंस की डिबिया तो घर पर पड़ी है।


रिदा उसकी क्लास फेलो थी। अखलाकन अरबा को स्टेज पर उसके पास जाकर मुबारकबाद देनी चाहिए थी पर अम्मा के कहने के बावजूद वह न गई। अखलाकन अम्मा बडबडाती तलबिया के साथ स्टेज की तरफ चली गई।

अम्मा को अपनी कंडीशन बताना यानी अपनी शामत बुलवा ना था। खाने के बिच में बाबा की काल आने लगी की वह लेने आ गए है।

"अम्मा बाबा आ गए है।" तलबिया ने मा को बताया जो किसी जानने वाली के साथ धीमी आवाज़ में बातें कर रही थी।

"आहां अच्छा।" अम्मा ने बे ध्यानी से सर हिलाया।
" तो फहमिदा अभी मिल लो उनसे तब्बू भी तय्यार है। अच्छी लग रही है, क्या बता पसंद ही कर ले।" अम्मा की जानने वाली ने कहा तो अम्मा खुश हो गई।

"हां तो मिलवाओ ना।"

"कैसे मिलवाऊ अपनी छोटी बेटी को कहीं दूर कर दो ना , वरना वह तो उसी को पसंद कर लेगी।"नजमा आंटी ने चमक कर कहा तो उनकी बाते सुनती दोनो बहनों को बहूत कुछ समझ में आ गया।

"अच्छा ठीक है,तुम उनको यहां लेकर तो आओ।" अम्मा के कहने पर नजमा आंटी ने हा में सर हिलाया और उठकर खड़ी हो गई।

"हां तो तब्बू ! क्या कह रही थी तुम, तुम्हारे बाबा लेने आगए।" फिर अम्मां उनकी तरफ देखने लगी।

" जी अम्मा! वह कह रहे है जल्दी बहार आएं। सुबह उनको आफिस भी जाना है।"
तलबिया ने बताया।

"हां तो बबली ! तुम जल्दी जाकर गाड़ी में बैठो। ताकी तुम्हारे अब्बा को तसल्ली हो, मैं और तलबिया खाना खाकर आ रहे है।"

" अम्मा ने उससे कहा तो वो घबरा कर तलबिया को देख ने लगी।

"अम्मा! ये कैसे जाएगी मैं छोड़ कर आती हूं।" तलबिया ने उसका हाथ थाम लिया।
"अरे क्यों पैरो पर चलकर जाएगी।वह बाहर तो खडे हैं।अम्मा ने नागवारी से तलबिया को देखा, फिर नज़र घुमाई तो हड़बड़ा कर रह गई। सामने ही नजमा एक औरत को लिए चली आ रही थी।

"बबली जल्दी जाओ अपने बाबा के पास और तब्बू तुम यहां बैठो। अम्मां ने कहा तो हालात को देखते हुए वह खड़ी हो गई और फिर जल्दी में कदम भी बढा दिए।

"ध्यान से जाना।" पीछे से तलबिया की फिक्रमंद आवाज़ आई तो वह परिशानी में भी मुस्कुरा दी, फिर धीरे धीरे कदम उठाती वह हाल से निकली तो होटल का चिकना कोरीडोर उसका मुन्तज़िर था। वह वहीं रूक कर कुछ देर आंखे झपकती अन्दाजा लगाने लगी की कोरीडोर कितना लम्बा है। उसके बाद बाहर तो फिर भी आसानी थी। खैर अल्लाह का नाम लेकर धुंधली आंखो से चलना शुरु हुई। यहां कम लोग दिखाई दे रहे थे। वह आहिस्ता आहिस्ता चलते अपनी बड़ी हील और खराब लेंस दोनो को कोसे जा रही थी की अचानक उसका पैर बुरी तरह रपटा और चिकने फर्श पर फ़िसलती चली गई।

" आ अम्मां!" अरबा ज़ोर से चीखी। एक दम दो मज़बूत हाथों ने उसे फिसलने से बचा लिया।

"उफ़ अल्लाह।" तकलीफ से उसकी आंखे भर आई।

"आप प्लीज खुद को संभाले।" ब्लेक सूट में वह जो कोई भी था। अरबा को कंधो से थाम कर उठाने की कोशिश में था। मर्दाना सेंट की तेज़ महक अरबा की सांसो में भर गई। तीखे नाक नक्शे और सांवली रंगत वाले उस बन्दे को उसने आंखे झपकते हुए देखा था। वह बमुश्किल उठ बैठी तो दर्द की एक शदीद लहर कमर में महसूस हुई।

"आराम से उठिए।" वह उसको आहिस्ता से उठाने लगा तो पहली बार अरबा को उस अंजाने शख्श की नज़्दीकि का एहसास हुआ।

"मैं उठ सकती हूं।" वह नागवारी से बोली मगर उसने हाथ ना हटाए और उसके सहारे अरबा खड़ी हो गई । उफ़ सैंडल के साथ खडे होना बहुत तकलीफ दे गया वह लड़खड़ा सी गई ।

"आप प्लीज वहां बैठ जाए और अपने सैंडल को उतार लें।" उस बन्दे ने थोडी दूर के सोफों की तरफ ईशारा किया, फिर खुद ही सहारा देकर अरबा को वहां तक पहुंचाया।

सोफें पर बैठकर अरबा ने सैड़ल उतारे।
"यह लें जूस पी लें।" वह पास गुजरते वेटर की ट्रे से जूस उठा लाया।

"मैं अब ठीक हूं।" अरबा ने शर्मिन्दगी से कहा। खाने से फुर्सत हासिल करके लोग अब हाल से निकलना शुरू हो गए थे।अरबा को अपने सर पर खडे उस बन्दे से परिशानी होने लगी। सारे ही मोहल्लेदार थे क्या सोचते होंगे की वह किस के साथ बैठी है। इतने में अम्मा और तलबिया भी हाल से निकली और चलते हुए उनकी निगाह अरबा पर पड़ी जो सोफ़े पर सर जुकाए बैठी थी और एक लड़का जूस का गिलास उठाए उसके पास खड़ा था।

"अरबा! क्या हुआ तुम्हे यहां क्यों बैठी हो?" तलबिया लपक कर आई।

"गिर गई थी।"बहन को सामने देखा तो दर्द का एहसास गहरा हो गया। "कमर में दर्द हो रहा है।" वह सिसकते हुए बताने लगी।

" ऐ तू गिरि कैसे? देखकर नहीं चल रही थी क्या?" अम्मा ने हैरानी से बेटी को देखा, फिर सूट पहने लडके को जो जूस का गिलास लेकर एक तरफ़ हो गया।

"चलो अब घर।" तलबिया ने उसके सैंडल उठा ए और उसको सहारा देकर चलने लगी। अम्मां और तलबिया के साथ चलते अरबा ने गर्दन पीछे मोड़ी तो वह जूस का गिलास लेकर वहीं खड़ा नज़र आया।



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घर आए तो जोनिया गुस्से से मून्ह फुलाए बैठी थी। तब्बू के सहारे अरबा को लडखडाते देखा तो सब भुल कर बहन के पास गई।

"क्या हुआ तुम्हे इस तरह से क्यों चल रही हो?"

"बस कुछ न पूछो।" तलबिया ने उसका हाल बताया।

"मेरे लेंस्की डिबिया तो लाओ मुझे ये लेंस अभी उतारने है।" अरबा तलबिया की मदद से कमरे में आई और बैड पर बैठ कर दराज से छोटा आइना निकाला फिर लाल
होती हुई आंखो को देखा।

"तुम्हारी डिबिया तो न जाने कहां है। लेंसकहा गायब है। यह क्यों खली है।"जोनिया को अपना गम याद आया।उसने अपनी खाली डिबिया दिखाई। उनके जाने के बाद वह ड्रेसिंग टेबल पर बिखरी मेकअप की चीजे सही करने लगी तो अपने नज़र के बेरंग लेंस की डिबिया खाली मिली,तब से वह गुस्से में थी।

"अब तुम्हारे लेंस कहां गए।" अरबा ने परीशान होकर उसे डिबिया ली और लेंस उतार कर उसमें डाले।

लेंस उतारते ही दुनिया एक दम साफ दिखाई देने लगी।अरबा ने एक बड़ा सा शुक्राने का सांस लिया। सिलोशन के अन्दर तैरते ग्रीन लेंस दो से चार हो गए थे। उसने हैरानी से गौर किया पानी में जाकर ग्रीन लेंसज़ से जोनिया के कांटेक्ट लेंस से अलग हो रहे थे।

"यह क्या?" जोनिया ने चश्मा सही करके देखा तलबिया भी हैरान हुई।

"तुम अपने लेंसेज़ के साथ मेरे नज़र के लेंसेज भी पहन कर शादी में चली गई और फिर अंढो की तरह.....हा...हा...। जोनिया को बात समजने में सेकेंड भर लगे और वह हंसने लगी साथ में तब्बू भी हंस ने लगी।

अरबा ने खिसियानी मुस्कुराहट से डिबिया को घूरा। न जाने किस वक्त बेध्यानी में एक डिबिया में चार लेंसेज राक दिए जो एक दुसरे स



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फिर कितने ही दिन वह टांग और कमर का दर्द लिए फिरती रही, उठना बैठना मुश्किल हो गया था। डॉक्टर को दिखा कर दवा खाती रही। तब जाकर आराम आया। रिदा की शादी एक यादगार वाकेआ बैन गया था। जिसको दोहराते तीनो की हसीं छूट जाती। उसके साथ ही अरबा को वो स्मार्ट लड़का याद आ जाता, जिसने
मुश्किल वक्त में उसकी मदद की और वह उसका शुक्रिया भी अदा न कर सकी। उस वक्त तो तकलीफ़ सवार थी।

अब एहसास हो रहा है की बुरा किया उस महेरबान के साथ ।
उन्ही दिनो एक खुशी की बात यह हुई की तलबिया को शादी में पसंद करने वाली आंटी उसका हाथ मांगने घर तक चली आई। उनका बेटा दुबई में जाब करता था और इन दिनो छुट्टी पर आया हुआ था। कुछ छानबीन के बाद बाबा ने पसंद कर लिया और यूं तलबिया साहिबा एक अदद हैन्डसम से लडके की मंगेतर बन गई। अम्मा अब्बा की एक। ज़िम्मेदारी जैसे आधी हुई। दोनो ने इत्मीनान का सांस लिया था।

तलबिया भी मंगनी के बाद बहुत खुश थी। उसका मंगेतर काफी रोमांटिक था। मंगनी के बाद 14 फ़रवरी को तब्बू को बहुत सारा गिफ्ट फूलों के साथ भेजा तो दोनो बहनों ने छेड़ छेड़ कर तब्बू की नाक में दम कर दिया। तब्बू फोन पर सअद का शुक्रिया अदा करने लगी तो अरबा टेरीस पर चली आई। आज मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा था। एसे खुबसूरत मौसम में एक अजीब सी कसक दिल में चुटकियां लेने लगी थी।अरबा आसमान पर फैले बादलों के टुकड़े
देखते अलगनी पर सुखे कपडें उतारने लगी की बारिश कभी भी आ सकती थी। अचानक उसके परो से कुछ टकराया। उसने झुक कर देखा तो हैरान रह गई

एक बड़ा सा पैकिट खूबसूरत पैकिंग मे नज़रो के सामने था।

"यह कहां से आया।" उसने आंखे घुमाकर चारों तरफ़ देखा। कहीं इस में बंम तो नहीं। यह सोच आते ही अरबा दो कदम पीछे हटी लेकिन हमारी किसी से क्या दुश्मनी, फिर खुद को तसल्ली दी और मजबूर होकर वह पैकिट उठाया एक छोटा सा लेटर भी पैकिट के साथ चिपका हुआ था। अरबा ने उसको खोल कर देखा।

"फोर स्वीट बबली!"
" फ्रोम यौर वैल विशर।
लेटर पढते ही अरबा खिल उठी। उसने एक बार फिर खाली छत पर नज़र दौडाई फिर कपड़ो को उधर ही छोड़ कर निचे चली आई। अपने कमरे में आकर उसने गिफ्ट खोला। एक खूबसूरत घड़ी और चॉकलेट के पैकेट के साथ गुलाब की एक अधखिली कली भी थी। अरबा ने हैरत से उन चीज़ो को देखा।जोनिया किसी काम से कमरें में आई।उसको बेड पर खामोश देखकर उसके पास चली आई।

"क्या हुआ बबली! ऐसे क्यों बैठी हो और यह गिफ्ट किसने भेजा है?" जोनिया की नज़रें उससे होती हुई गिफ्ट पर ठहर गई तो वह चश्मा सही करती करती हैरत से पूछ बैठी।

"मालूम नही।" अरबा ने गिफ्ट पैक से लेटर निकाला और उसे दिया। जोनिया ने हैरत से पढा। "यह छत पर पडा हुआ था।" अरबा ने कंधे उचका कर कहा।

"यह तुम्हारा वैल विशर अचानक कहां से पैदा हो गया।" जोनिया हंसी।

" मुझे क्या पता न जाने किस ने मज़ाक किया है।" वह उलझन की शिकार थी।

" मज़ाक के लिए भी क्या दिन चुना है 14 फ़रवरी......क्या बात है।" जोनिया हंसी तो अरबा ने उसे घूर कर देखा।

"वैसे यह मज़ाक का नहीं दिल की बातें करने का दीन है।" उसने जैसे उसकी गलत फहमी को कोसा।

"यह दिल की बातें दिल में न रखो तुम।" इतने में तलबिया गुनगुनाती अंदर आई।

"मंगनी के बाद यह मोहतरमा सिंगर बन गई है।" जोनिया तब्बू के खीलते चेहरे को देखकर हंस ने लगी।

"तुम दोनो यह क्या लेकर बैठी हो।" तलबिया कुछ झेप कर बोली।

"बबली! के नाम वैल विशर का पैगाम।" जोनिया की खी खी शुरु हो गई ।

"क्या मतलब?" तब्बू नासमझी से उसे देखने लगी। अरबा ने उसे बताया तो तब्बू सोच में पैड गई।

" मोहल्ले के किसी लडके की शरारत लगती है।तुम भी न बबली हर वक्त छत पर दौड लगाती हो। अब बन्द करो उधर जाना। न जाने किस बदतमीज़ को भा गई हो।"तलबिया ने बड़ी बहन वाले अन्दाज़ में कहा।

"तब्बू वह दुश्मन नहीं है वैल विशर है बहना।" जोनिया फिर हंसी।

"मैं अभी यह सब उसके मुन्ह पर मार कर आती हूं।" अरबा को गुस्सा आ गया तो गिफ्ट समेत कर उठी।

"किस जगह मारोगी बन्दे का पता नहीं और मुन्ह पर मारने चली हो।" जोनी ने उसे खींच कर वापस बिठाया।

"छत की दिवार पर मारुंगी खुद ही उसे पता चल जाएगा।" अरबा ने गुस्से से कहा।

"अपना तमाशा लगवाओगी घर से घर मिले हुए है"। तब्बू ने नाराज़ होकर कहा।

"लड़कियो कहां अन्दर बैठी हो। बारिश हो रही है। कपडे तो छत से उतार लो।
अम्मा की आवाज़ पर तीनों ने एक दुसरे को देखा और मुस्कुरा दीं।

तब्बू की शादी की तारीख तय हुई तो घर में तय्यारियां शुरु हो गई । बाबा घर में अकेले मर्द होकर काई ज़िम्मेदारियां एक साथ निबटा रहे थे। यह बहनें देखती तो कुढ़ती रहतीं। एक जवाँ भाई की ख्वाहिश दिल में ज़रूर आती जो बाबा का सहारा बनता।

"तब्बू शादी के बाद तुम इतनी दूर चली जाओगी। हम तुम्हें बहुत याद करेंगे।" जोनिया ने तब्बू के ज़हेज के कपड़े पैक करते कहा तो तब्बू के साथ अरबा की भी आंखे भर आई।

"चलो छोडो उदासी। हम में से कोई तो बाहर जा रहा है, वरना हम तो इस शहर से भी बाहर नहीं निकले।अच्छा है इसी बहाने दुबई घूम आएंगे।" अरबा ने कहा तो जोनी ने हां में हां मिलाई।

"वैसे आज मेरा बर्थ डे भी है। जो तुम दोनो शादी की अफरा तफरी में भूल गाई हो।" उसने मुंह फुलाया तो तब्बू और जोनी चौकी।

"अरे सोरी बहना! हैप्पी बर्थ डे टू यू।" तब्बू ने उसे साथ लगाकर माथा चूमा।जोनिया ने भी गले लगाया।

खाली मुबारकबाद से काम नहीं चलेगा। जल्दी से केक और पिज़्ज़ा ऑर्डर करो।" अरबा ने फौरन कहा।

"ज़रूर आएगा।" तब्बू ने कहा।

अरबा ने खिड़की खोली तो बाहर बारिश हो रही थी। उसने खिड़की से हाथ निकाल कर बरसती बारिश को महसूस किया।

"हाई आफत मौसम है।" वह बड़ा सा सांस लेकर बोली।

इतने में घन्टी की आवाज़ पर जोनिया बहार गई , फिर हाथो में केक और पिज़्ज़ा लेकर आई थी की लाईट चली गई तुब्बू ने मोमबत्तियां जलाकर टेबिल पर रखिं तो उजाला सा हो गया। जोनी किचन से छुरी उठा लाई।

"बबली अब खिड़की की जान छोड़ दो और केक काटो।" जोनिया ने आवाज़ लगाई तो वह मेज़ पर रखे केक के पास आ गई ,फिर उं दोनो ने ज़ोर से आवाज़ लगाई- "हैप्पी बर्थडे टू यू " और ज़ोर की तालियां बजाई और अरबा ने नज़ाकत से केक काटा।

"यह मेरी परदेसी बहना के नाम ।"
वह एक पीस काट के तब्बू को खिलाने लगी तो जोनिया ने एक दमछिन कर अपने मुन्ह में डाला।

"बदतमीज़ जोनी!" अरबा गुस्से से पलटी तो वह हंसती हुई कमरे से बाहर भागी।
"अब आओ ज़रा पिज़्ज़ा खाने।" अरबा।ने ज़ोर से कहा तो जोनिया की हंसी गूंजी। तब्बू बहनों की लडाई से मज़े लेती रही।
"ऐसे नज़ारे अब किस्मत से ही नसीब होंगे।" यह सोच कर वह उदास हुई।


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दुसरे दिन भी हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। तलबिया और जोनिया मौसम के पेशे नज़र दोपहर में ही मार्कीट चली गाई थीं। बाबा ऑफ़स गए हुए थे। अरबा खाने से फुर्सत पाने के बाद मोबाईल पर अपना पसंदीदा गईं खेलने में मगन थी की बेल बजने की अवाज पर दुपट्टा ओढ़ती बहार आई अम्मा अपने कमरे में थीं।

"कौन है?" बबली के पुछने पर फिर दरवाज़ा बजा। उसने दरवाज़ा खोला तो एक लड़का सामने खड़ा था। अरबा ने सवालिया नज़रों से उसे देखा।

"यह ले लें।" उसने एक शापर अरबा की तरफ़ बढ़ाया।

"यह क्या है?" अरबा ने झिजक कर शापर को गौर से देखा।

" यह आपके लिए हैप्लीज़ ले लें बाजी!" वह शापर अरबा को देकर बोला तो उसने नसमझी में थाम लिया। लड़का सर पट दौड़ा और कहीं गायब हो गया। वह हैरत से उसे देखती अन्दर आ गई । दरवाज़ा बन्द करके अपने कमरें में आने तक वह अजीब से एहसास का शिकार रही, फिर शापर को खोला तो अन्दर से एक गिफ्ट निकला। परपल कलर के गिफ्ट पेपर पर चिपका छोटा सा लेटर था। अरबा ने धड़कते दिल से लेटर खोला।
"हैप्पी बर्थडे बबली सोरी फ़ोर लेट।" फ्रोम योर वैल विशर!

यह अल्फाज़ पढ़ते ही अरबा सेन सी हो गई। कांपते हाथों से रैपर उतारा तो आन्दर डिब्बे में एक सूट प्रफ्यूम और गुलाब की अधखिली कली के साथ एक कार्ड भी था।

अरबा की सांसे तेज़ी से चलने लगीं।
"यह कोन है जिसको मेरी बर्थडे का भी पता हो गया है।" वह सोच कर परीशान सी हो गई, फिर गिफ्ट दुबारा शापर में डालकर अल्मारी में रख दिया और खुद परीशानी से कमरें में टहलने लगी। थोडीदेर गुजरी की बाहर से जोनी और तब्बू की आवाज़ें आने लगीं। दोनो बहनें शापर उठाए यहीं चली आई।

"हाय जैसे ही मार्कीट से निकले हैं। बारिश की बौछार हमें भिगो गई ।" जोनी अपना चश्मा उतार कर साफ़ काने लगी।

"तब्बू तुम्हारी शादी तो बहुत मुश्किल पड़ी।" फिर टिशू से चेहरा पोछती तब्बू को देखा। सारा चश्मा पानी से भर गया कुछ नज़र नहीं आ रहा था।

"तुम अपने चश्मे पर वाईपर लगवा लो न बहना।साथ साथ साफ़ होता रहेगा।" तब्बू ने मशवरा देकर खामोश सी अरबा को देखा।

"तुम्हे क्यों चुप लगी है?" अरबा ने जवाब में अल्मारी से गिफ्ट पैक निकाल कर तब्बू को थमाया। तब्बू ने चिट खोल कर पढा फिर गिफ्ट खोला। जोनी भी पास चली आई।

"वैल विशर ने भेजा है?" फिर पूछने लगी तो अरबा ने सर हिलाया। "छत पर पड़ा था? भिगा क्यों नहीं।" उसने जांच शुरू की।

"नही दरवाज़े पर कोई लड़का दे गया।"
"लड़के से तुमने लिया क्यों?" तब्बू को गुस्सा आ गया।

"मैं समझी पड़ोस से कुछ आया है। अक्षर शापर में की चीज़ भी तो आती है।"अरबा ने शर्मिंदगी से कहा। "फिर वह इतनी जल्दी थमाकर भग गया की मुझे सोचने का मौका न मिला।" वह झुका गई।

"अच्छा तुम्हे क्या लगा वह वही है जो गिफ्ट भेज रहा है।" तब्बू ने जांचती नज़रों से देखा तो अरबा ने फौरन नहीं में सर हिला दिया।

"नहीं वह तो 12-13 साल का लड़का था।"
"लडके को पहले देखा है।" जोनी ने पूछा तो अरबा ने नहीं में सर हिला दिया।

"अच्छी भली खुशी में परिशानी डालने यह वैल विशर न जाने कहां से आ टपका। अब उसका पता लगाए या शादी मनाएं। जोनी ने आवाज़ में ज़माने भर की लाचारगी मिलाकर कहा।

"यह वैल विशर बदतमीज़ हमारा मूड खराब कर रहा है।"
"खैर मूड क्यों खराब होगा।बस सोच रही हूं यह हमारे बारे में कैसे जानकारी हासिल कर रहा है।"तब्बू की बात दोनो बहनों के दिल को लगी।

"चलो दफा करो मुझे दिखाओ आज क्या खरीदारी की।" अरबा ने सर झटक कर टोपीक बदला तो जोनी शार्पज़ उठा कर दिखाने लगी।




○●○●

फिर अरबा ने भी बात बदल दी और लापरवाई दिखाई, लेकिन अब उसको इस वैल विशर नामी लड़के के बारे में फिक्र होने लगी थी की आखिर यह है कौन और वह सीधे सीधे सामने आने के बजाए गिफ्ट देकर क्या बताना चाहता है।सवाल बहुत सारे थे, लेकिन जवाब नदारद। इसी सोच फिक्र में तलबिया की शादी का दिन भी आ पहुँचा और यह बहनें जो मायों मेंहदी तक खुब भंगड़े दाल रही थी, शादी वाले दिन बहन की रुख्सती के ख्याल से रंजीदा थी। बस दो चार घंटो के बाद उनकी तिकोन को टूट जाना था। तलबिया भी भीगी आंखे बार बार साफ कर रही थी उसको दूरि का गम भी सता रहा था। सिर्फ सात दिन बाद वो दुबई जाने वाली थी। रुख्सती का वक्त हुआ तो तीनों के जब्त एक साथ टूटे यह दोनों बहनें तब्बू से लिपट कर रो पड़ी। अम्मा भी रो रहीं थी।

"तब्बू तुमहारा मेक अप खराब हो रहा है बस करो।" अरबा को खुद ही एहसास हुआ तो वह हंस कर बोली।

"मेरे लेंस भी बहने लगे है जालिमों। उतर गए तो अन्धी हो जाऊंगी।" जोनी ने भी दुहाई दी तो तब्बू मुस्कुरा दी। सअद खड़ा बेगम और सालियोंको देख रहा था।

"सअद भाई आप मेरी बहन को हमेशा ल्हुश रखिएगा।" अरबा ने कहा तो वो मुस्कुरा दिया।

"फिक्र न करे मैं आपकी बहन को हमेशा खुश रखूंगा। अभी भी आप ही रुला रही है।"

"यह वक्त तो होता ही ऐसा है, जिसमे हर लड़की रोती है।" उसने ठिठक कर कहा, फिर वह तब्बू से थोडी दूर जा खड़ी हुई बावजूद जब्त के आंसू बहते चले गए। यह सब उस वक्त मैरिज हाल से बाहर खड़े थे। तब्बू को बाबा ने गाड़ी में बिठाया तो अरबा ने धुंधली आन्खो से ये मन्ज़र देखा। हाथ में पकडे सेलफ़ोन की मैसज बिप बजी।अरबा ने इन्बोक्स खोला।

"प्लीज़ अपनी खुबसूरत आंखों पर ज़ुल्म ढाना बन्द करें।आप के रोने से मुझे तकलीफ हो रही है।"
"वैल विशर"

किसी अजनबी नम्बर से आया मैसज अरबा को हैरान कर गया। उसने धड़कते हुए दिल से आस पास नज़रें दौडाई होल लोगो सें भरा हुआ था। बारात की गाड़ियां आहिस्ता आहिस्ता रोड पर निकल रही थी। कुछ जाने अनजाने चेहरों को गौर से देखते हुए अरबा उलझन में पैड गई । बरात के जाते ही सारी रौनक खत्म हो गाई। वह धीमे धीमे कदमों से अम्मा और जोनिया के पास आ खडी हुई।


" चलो तुम लोग गाड़ी में बैठो मैं आता हूं।"बाबा ने गाड़ी का लॉक खोल कर कहा तो वह तिनो आन्दर बैठ गई । मैरिज होल अभी भी जगमगा रहा था, लेकिन अब उसकी रौशनी बुझी हुई सी लग रही थी। असल रौनक तो तब्बू अपने साथ ले गई । घर आकर भी यही एहसास हुआ। चेंज करके दोनों बहने साथ कमरें में आकर लेटी तो तब्बु की कमी बहुत महसूस हुई।

"किस कदर अजीब सा एहसास होता ह। बहन का पराया हो जणा।" अरबा कह बैठी तो जोनी ने एक सांस भरी, फिर जोनी तो कुछ देर बाद सो गाई। मगर अरबा को नींद नहीं आई। कभी तब्बू के साथ बिताए दिन रात आंखो के सामने घूमते कभी ध्यान उस वैल विशर की तरफ़ चला जाता। इस तरह सारी रात बित गई।




○●○●

फिर वलिमे के बाद दिन इतनी तेज़ी से गुज़रे की तब्बू अपने मियां के साथ दुबई भी चली गाई। उसके जाने से घर में जो विरानी सी आ गई थी, उसके दुबई जाने से और गहरी हो गाई। दोनों बहनें अजीब ई बोरियत महसूस करतीं। इसी बिच कोलेज खुल जाने से बोरियत कुछ दब सी गाई। अम्मा अब जोनिया के रिश्ते के लिए दौड भाग करने लगीं। न जाने उनको क्या जल्दी लगी थी बेटियों को रुख्सत करने की । अरबा को वैल विशर और उसके दिए गिफ्ट अब भी उलझन में दाल देते थे। उस दिन के बाद कोई मैसज भी नहीं आया। जबकी वह पूरे टूर पर इन्तिज़ार कर रही थी।

उन्ही दिनो तब्बू ने मां बनने की खबर सुनाई तो अम्मा बाबा खुश हो गए और जोनी और अरबा भी खाला बन जाने के ख्याल से खुश हो गई । घर की पेहली खुशी थी तो बाबा मिठाई लेने घर से निकले । अम्मा और जोनी सफाई सुथराई में लग गई

अरबा बिस्तर में घुसी बोर सी शक्ल बनाए सोचती रही की काश हमारे भी दधियाली ननिहाली रिश्तेदार होते तो खूब रौनक लगती। कभी वह हमारे घर आते हं उनके घर जा रहे होते।

"बबली.......बबली।" इतने में जोनी उसके नाम की रत लगाए कमरे में आई।

"क्या हुआ कुत्ते पीछे पैड गए हैं।" अरबा ने टोका तो वो अनसुनी करती एक पैकिट उसकी तरफ़ बढा कर मुस्कुराने लगी। अरबा को समझने में देर न लगी।

" वैल विशर" उसके मुन्ह से एक दम निकला। जोनी ने जोर से सर हिलाया।
"एक बच्चा दे गया है"
"उफ़....।" अरबा ने सर पर हाथ मारा



" मना करतीं ना।"

"मुझे क्या पता था इसमें गिफ्ट होगा।" जोनी ने शापर लेहराया।
"वैसे देखे तो दिया क्या है?" फिर वह पैकेट खोल न लगी। एक खूबसूरत डिज़ाइन का सूट, एक प्रफ्यूम गला की अधखिली कली और कार्ड।

"टू माई बबली फ्रोम यौर अलयान!"
कार्ड पढकर जोनी ने अरबा को देखा। अरबा खुद इस नए तर्ज़ पर चौक उठी थी।

"उफ़ यह कौन? इतना रोमांटिक बन्दा।" अब तो जोनी को भी पता लग गया था।

"अम्मा को बताएं क्या?" जोनी के पूछने पर अरबा नए नहीं में सर हिलाया।

"वह बेकार में परिशानी होंगी।"

"फिर....फिर क्या रख दूं अल्मारी में।" अरबा ने बेफ़िक्री से कहा तो जोनी ने उसे घूर कर कहा- " इन चीज़ो का निलाम घर बनाना है जो जमा करती जा रही हो।"

"तो क्या गली में फेंक दूं।"अरबा ने उल्ता सवाल किया तो जोनी ने घूर कर देखा, फिर उठकर अल्मारी खोली और उसे रख दिया।

"उठो तुम भी हाथ मुन्ह धोकर तय्यार हो जाओ। ईदी मिल ही गाई है तुम्हे?" कमरे से बाहर निकलते जोनी ने आवाज़ लगाई तो अरबा ने आंखे दिखाई और फिर से अपने हाथो को देखने लगी। जिन पर सादी सी मेंहदी लगाकर सो गई थी और अब उसका बहुत खुशगवार रंग निकला था। इतने में मोबाईल थार थराया तो अरबा ने उठाकर बटन दबाया। अंजान नम्बर से मैसेज था। अरबा ने धड़कते दिल से खोला।

"आदाब ! ईद मुबारक ही। कैसी है आप काफी दिनो से राबता नहीं हुआ याद किया मुझे?" 😊 अरबा अजीब से एहसास से घिर गई। यूं लगा काई दिन से खोई हुई कोई चीज़ मिल गई हो।

"आप कौन हैं? उसने अपने अन्दाज़ में टाइप किया।

"आप से यह उम्मीद नहीं थी की आप मुझे इतनी जल्दी भूल जाएगी।" ☹ अरबा सोच में पैड गई ।
"आप होटल का वह चिकना फर्श कैसे भूल सकती है, जिस पर आप का पांव फिसल गया था और मुझे आप को थामने का मौका मिला था।"

यह मैसज पढते ही अरबा की आंखो के सामने वह हैन्डसम लदका लहरा गया और साथ ही उसका महकता लम्स भी याद आया।

"गिफ्ट भेजने का मतलब ?" अरबा ने होंट दबाकर टाईप किया।

"आपकी तवज्जोह हासिल करना।" उसने जवाब दिया।
"मैं लेना चाहूं न चाहूं आप देते जा रहे हैं।वह तेज़ी से लिखने लगी। आज दीमाग से " वह कौन है" की उलझन खत्म हो गई थी।
"मेरा दिल चाहता है बस।"

"मैंन अजनबियो
से गिफ्ट लेना पसंद नहीं करती।"😠

"और मैं जज़्बो के इज़हार का बेहतरीन ज़रिया गिफ्ट समझता हूं। संजीदगी के साथ लिखा गया।

"मैं बहस में पदना नहीं चाहती यह तोहफों का सिलसिला बन्द किजीए और हां मेरा नम्बर आपको कहां से मिला और मेरी सालगिरह की तारीख कैसे पता चली।" अरबा ने दिमाग में आते सवाल किए।

"चाह की राह में कुछ भी नामुमकिन नहीं होता डियर बबली!"❤ यह जुमला अरबा का दिल धडका गया।

उस दिन तूफानी मौसम में खिड़की सर टीकाए बारिश के कतरों को अपनी हथेलियों में जमा करतीआप.....दुसरी बार मेरा चेन बर्बाद कर गई थी।" यह लाईं फ़ौरन ही स्क्रीन पर नज़र आई तो अरबा का धड़कता दिल रफ्तार पकद गया।
"आप मेरे पड़ोस में रहते हैं?" उसने कमरे की बन्द खिडक़ी को देखते टाईप किया।

"मेरी ऐसी किस्मत कहां .... मेर दोस्त यहां रहता है।" जवाब आया।

"अरे तुं अभी तक बिस्तर में घुसी हुई हो ।" जोनिया दोनो हाथ कमर पर रखे कमरें में चली आई तो बबली ने फौरं मोबाईल बन्द कर दिया।

"उठ रह हूं ना।" वह फौरन बिस्तर से निकली थी

○●○●

जिन्दागी में एकदम नयापं आया था। अलयान दिं मैं कै बार उसको मैसज किया करता था। अपनी रोज़ मर्रार की छोटी छोटी बातें। ब्रेकफास्ट टाइम, लंच टाइम, जिम टाइम ,स्टडी टाइम, हर वक्त की जानकारी।

वह सिविल इन्जीनियरिंग के थर्ड इयर में था ओर हॉस्टल में रहता था। अक्सर अरबा के पडोसी और अपने दोस्त के घर आता था। उसी दोस्त के ज़रिए उसने रिदा की शादी अटैन्ड की और अरबा को वहां देखा और उसी घर की खिड़की से अरबा को न जाने कब से नज़रों में रखे हुए था।

शहजाद का घर उनसे कुछ दूरी पर था। चूंकि उनकी फ़ैमिली गांव में और लड़के पढ़ाई के वजह से यहा रहते थे। इसलिए उं लोगों की इतनी जान पहचान न थी और अब अलयान ने कैसे उसे न महसूस अन्दाज़ में उसको अपनी निगाह में भर लिया। अरबा नहिं समज पाई थी। बहरहाल कोई आप को चुपके चुपके देखता है। पसन्द करता है यह एहसास ही बहुत खुश कर देने वाला था।

वह युनिवर्सिटी में पढ़ती थी सुरू से कोएजुकेशन रखा, मगर इतने लड़कों में किसी को न नापसंद कीया और न किसी को पसंद किया। हमेशा अपने काम से काम रखा। लेकिन अलयान के हवाले से दिल धड़कने लगा था।


उसने जोनी को सारे मैसज दिखा दिए दोनों बहनें आपस में कोई परदा नहिं रखती थीं।

ओर जोनी तब्बू नहीं थीं जो फ़ौरन टोक देती वह अलग मिज़ाज की लड़की थी मैसज देखकर हसतीं रही।

○●○●

अरबा को अलयान के मैसेज की आदत सी हो गै थी। वह कभी कभार पडोस की टेरीस पर भी नज़र आ जाता था। अरबा को देखता तो हैलो कर देता और बस..... इससे ज्यादा की उसने न तलब की न अरबा ने ख्वाहिश और ना महसूस अन्दाज़ में मुहब्बत उनके बीच आ बैठी थी। वह उसको देखने के लिए बेकरार रहने लगी। उसके मैसज उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा बनने लगे।


○●○●

"इस वीक एन्ड पर मैं दोस्तों के साथ बाहर सैर पर जा रहा हूं।" एक दिन उसने मैसेज से खबर दी तो अरबा ने "हैव ए सेफ़ जरनी"✈ लिख कर मैसेज किया।

"अल्लाह ने चाहा तो अगली बार तुम्हारे साथ जाऊंगा।" जवाबन मैसेज आया तो अरबा की धड़कन तेज़ हो गई ।

"मज़ाक मत करे ।"अरबा ने संजीदगी से टाईप किया ।

"तुमसे शादी करके हा हा।" हंसते हुए बोला।

"पढ़ाई पूरी करके तुम्हारे घर रिश्ता भेजूंगा। इससे पहले कहीं शादी मत कर लेना।" यह मैसेज पढ़कर अरबा को अजीब से खुशी हुई।

"हालांकि हमारि फैमिली में बाहर शादियां नहीं की जाती, फिर भी मैं तुम्हारे लिए आखरी हद तक जाऊंगा।" दुसरा जुमला पढते ही अरबा का मुन्ह उतर गया।

"मुझे नहीं करनी एसी शादी जो जंग से शुरु हो और विरानी पर खत्म हो।" अरबा ने गुस्से से लिखा। अपने मा बाप की मिसाल उसके सामने थी जो मुहब्बत का जुर्म करके गुनाहगार ठहरे थे। दोनो का मिलं उनकी जिन्दागी में हमेशा की तन्हाई ले आया था । दोनों ही अपने खानदान से कटकर बज़ाहिर मुतमईन मगर तकलीफ से भरी ज़िन्दगी गुजार रहे थे।

"ऐसा मत कहो अरबा! मैं तुम्हे अपनी इज़्ज़त बनाना चाहता हूं। तीन महिने हो गए हमें मैसज पर बात करते। क्या मैने तुमसे कभी मुलाकात के लिए कहा । या किसी और तरह से तुम्हें तंंग करने की कोशिश की। मुझे तुम्से टाईम पास नहिं करना डियर! और मुहब्बत की है तो जन्ग तो करनी ही पड़ेगी।" अलयान की बात दिल को लगी थी, फिर अरबा कुछ कह न सकी।


○●○●

फिर वीक एन्ड पर वह उसे यूं मिस कर रही थी। जैसे वह उसके साथ ही रहता आया हो। वह जाने से पहले एक मैसज कर गया था ओर अब इतने दिन से कोई बात नहीं की थी।

"शायद दोस्तों मैं बिजी होगा।" अरबा ने खुद को तसल्ली देकर सोचों को झटका ओए बाबा को देखा जो मैकेनिक से मोटर वगैरह ठीक करवा कर फ्री हुए थे।

"बाबा चालें मार्कीट कुछ सामान वगैरह ले आएं।" इतने में जोनिया हाथ में सामान की लिस्ट लिए चली आई।

"हां बेटा! ठहर कर चलते हैं।"बाबा के चेहरे से साफ थकांन नज़र आ रही थी।
"जोनी आज छोडो कल चली जाना। इनकी तबीयत अच्छी नहिं है।" अम्मा पानी का गिलास बाबा को देकर बोली।

"अरे नहिं मैं थिक हूं।" बाबा ने तसल्ली दी।

"मैं भी चलती हूं।"अरबा ने सोचो से फरार की खातिर फौरन दुपट्टा ओढ़ा ओर उनके साथ कार मैं आ बैठी।
"बेटा बाबा का ध्यान रखना। सुबह से ब्लड प्रेशर हाई है।"अम्मा ने बेटियों को उनका ख्याल रखने को कहा तो दोनो ने हां में सर हिलया।



○●○●

शॉपिंग करने में डेढ़ घन्टा लग गया फिर जोनी नौकर के साथ मिलकर बाहर गाड़ी में सामान रखवाने लगी ओर अरबा बाबा के साथ धीरे धीरे मार्कीट की सीढियां उतरने लगी।

बाबा का हाथ अरबा के हाथ में था। अचानक उसे कुछ महसूस हुआ तो उसने बाबा को देखा जो पसीने में नहाए हुए थे।

"बाबा आप ठीक तो है?" अरबा ने घबरा कर पूछा तो उन्होने नहिं मैं सर हिलाया
और वहीं सीढियों पर बैठ गए। "बाबा पानी पिलाऊ गरमी लग रही हैं आपको।" उसने बैग से पानी की बोतल निकाल ने की कोशिश की जो जल्दी मैं हाथ मै नहीं आ रही थी। अरबा ने सारा बैग ही उलट दिया । "बाबा यह लें पानी पी लें।" उसने कह कर फिर खुद ही उनके होटो से बोतल लगा दी।


"जोनी इधर आओ बाबा की तबियत ठीक नहीं है।" वह ज़ोर से बोली तो जोनी दौडी आई। "बाबा को अस्पताल लेकर चले।"

"बाजी! एम्बुलेन्स को कॉल करे। मार्कीट के नौकर ने मशवरा दिया तो जोनिया ने लरजते हाथों से चल्ल मिलाया फिर एम्बुलेन्स आने तक वह सीढियों पर बाबा के ठन्डे होते हाथ को मसलती रही।

एम्बुलेन्स के आते ही जोनी ने बबली को उसमें बिठाया और खुद अपनी कार ड्राइव करके पीछे-पीछे आई। बाबा अपना सीना मसल रहे थे।उनकी सांसे तेज़ चल रही थी। अरबा ने उनका सर अपनी गोद में रखा हुआ था ओए दुआ कर रही थी और रोती भी जा रही थी। वह जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचना चाहती थी।


लेकीन अस्पताल के ग्राउंड में पहुंच कर जैसे ही एम्बुलेन्स रूकी तो उन्हो ने अरबा की गोद में आखर हिचकी ली। अरबा ने बैचनी से बाबा के खामोश जिस्म को देखा और जोनी को पुकारा जोनी फौरन कार से बाहर निकली और और एम्बुलेन्स के खुले दरवाज़ से बाबा पर झुक गई ।


"नहीं मेरे बाबा को कुछ नहिं हो सकता। डॉक्टर मेरे बाबा को चैक करें।" वह हवास खो चुकी थी। पास से गुज़रते डॉक्टर का बाजू पकड लिया । वह फौरन आया। बाबा की नब्ज़ टटोली धड़कन भी चेक की, फिर मायुसी नहीं में सर हिला दिया।



इन दोनो बहनों की जैसे दुनिया हू लुट गई । अरबा वहीं रोने लगी। जोनिया ने बाबा को ज़ोर से हिलाना शुरु कर दिया।

"बाबा प्लीज़ होश में आए । बाबा उठिए ना।," वह बोलती रही, लेकिन बाबा खामोश हो चुके थे। घर पर अम्मां ने उन्हे एम्बुलेन्स में आता देखा तो कलेजा पकड़ लिया। फिर बाबा की मय्यत देखकर वह कटी शाख की तरह गिर गाई। मुहब्बत करने वाला साथी अचानक ही दुनिया छोड़ कर उनको अकेला कर गया था।



वह जितना रोती कं था। हंसता खेलता घर एकदम मातम में बदल गया था। तलबिया को खबर दी तो वह दुबई में तडप उठी। उसका जल्दी आना मुमकिन न था। वह बेड रेस्ट पर थी। घर में आस पड़ोस की औरते जमा होने लगी। अचानक गम में डुबी अम्मा को कुछ ख्याल आया। उन्हों ने जोनिया को कहकर मोबाईल से किसी को बाबा के मरने की खबर दी।

अतबा ने सवालिया नजरों से उनको देखा।

"बेटा तुम्हारे बबा की वसीयत थी की उनको उनके आबाई कब्रिस्तान में दफनाया जाए ओर उनकी वसीयत के मुताबिक मुझे तुम्हारे दधियाल फ़ोन करके बताना ज़रूरि था।" अम्मा ने लाल आंखो से जवाब दिया।

फिर कुछ ही घंटों में बाबा के अपने उनको लेने चले आए। दो चार सलोने मर्द जो बाबा की तरह पुरकशिश थे। रिवायती लिबास में थे।

कांधो पर चादर डाले बाबा की मय्यत के पास बैठ कर उदासी से उनका चेहरा देखते रहे, फिर तीनो तो बाबा।को आखरी आरामगाह में पहुंचाने का इन्तिज़ाम करने उठ गए।, बाकी एक अपनी नज़रों से घर और घर के लोगों को देखता रहा। अम्मा और यह बहनें सर झुकाए दुख की तस्वीर बनी बैठी थी। जब वह कुछ उम्र दार मर्द उनके करीब चला आया।


"भाभी!जो हुआ बुरा हुआ। मुस्तफा अब खुदा के पास चले गए है, इस लिए अब कुछ कहना बेकार है।" उस मर्द ने बात करनी शुरु कर दी थी। " जाने वाला तो चला गया अब मसअला पीछे रह जाने वालो का है।" वह गहरी नज़र उं तीनों पर दाल कर बोला।

"हमे मालूम है मुस्तफा लडके से महरूम थे ओर उनके जाने के बाद किसी मर्द के बगैर आपका इस घर में रहना अच्छी बात नहीं। हमें किसी तौर पर मंज़ूर नहीं की हमारे भाई की लड़कियां अकेली ज़माने के धक्के खाएं। इस लिए हं अपनी भतीजियों को भी अपने साथ हवेली ले जाएंगे।" उस आदमी ने जो यकीनन उनके सगे चाचा थे,एकदम फैसला सुनाया तो वह बुरी तरह चौकीं। अम्मा ने भी परीशान होकर देखा।


"लेकिन हमें आप के साथ नहिं जाना। ज़िन्दगी में पहली बार आप की शक्ल देखी। न कभी आप का नाम सुना ओर अब अचानक आप के साथ चल पड़े।" अरबा ने उंची आवाज़ में गुस्से से कहा तो वह नागवारी से उसे देखने लगे।
"इतना प्यार था आप को अपने भाई से तो क्यों उनको खुद से अलग कर दिया। सारी जिन्दगी बाबा खुशी के होते हुए भी उदास रहे। सिर्फ आप लोगो की वजह से। उनको दिल का मर्ज़ भी आपनों की बेमुरव्वती ने दिया ओर अब उनके जाने के बाद आए हैं हमारे सर पर हाथ रखने। हमें ज़रूरत नहीं आप की हमदर्दी की।"

वह कहती रही तो जोनी ने हाथ दबाकर उसको घर में लोगोन्की मौजूदगी का एहसास दिलाया।

"बड़ो के सामने उंचा नहिं बोलते। यह तुम्हें किसी ने नहीं सिखाया। रही बात मुस्तफा से नाराज़गी की तो वह बड़ो का मुआमला हैं तुम्हारा नहीं और इस नाइंसाफ़ी की भरपाई हम कर रहे हैं। तुं औरतो को पूरी हीफाज़त देकर मुस्तफाके नाम
सैकडों एकड़ ज़मीन तुम बहनों में बराबर बांट देंगे।"


वह ठहर ठहर कर बोले तो अरबा ने पहलू बदला" और मैं भाभी से बात कर रहा हूं, तुम कल की बच्ची से नहीं। हां ती भाभी जी अपना ज़रूरी सामान समेटो ओर चल कर हवेली में अपनी इद्दत गुज़ारों।" क़ह रोब से कह कर पलत गए तो अरबा और जोनी मचल सी गई ।

"अम्मा यह क्या हो रहा हैं सारि जिन्दगी आपका वजूद जिन लोगों ने बर्दाश्त नहिं किया। अब वह क्यों हमें अपने साथ रखना चाहते हैं।" अरबा ने बेकरारी से मां को देखा जो सर झुकाए रो रही थीं।


"बेटा मैं किस वजह से जाने के लिए इन्कार करु । तुम्हारे बाबा के बाद कौन सा मर्द रह गया है इस घर मैं जो हम औरतों की देखभाल कर सके। यह समाज अकेली औरतों को जीने नहीं देता। मैं कैसे तुम जवान बच्चियों को उन जानवरों से बचा पाऊंगी जो तुम्हारे बाबा के बाद हमारि तरफ झपटेंगे।" अम्मा हिचकियों से रोने लगी तो अरबा एक दम खामोश हो गई और फैसला तो हो ही गया था। इस लिए यह बहनें चुपचाप अपना ज़रूरी सामान समेटने लगीं।


"जोनी मेरा मोबाईल।" अरबा को कहीं भी अपना मोबाईल मिलकर न दिया तो उसको मार्कीट की सीढ़ियों पर अपना बैग खंगालना याद आया। काई चीज़ों के साथ मोबाइल भी वहीं सीढियों पर गिर गया था शायद।


वह सोच ने लगी। मोबाइल के साथ ही उसको अलयान याद आया तो बहते आंसू और तेज़्ज़ हो गए। आज बहुत बुरा दिन था।

बाबा की मय्यत को फिर से एम्बुलेंस में रख कर यह बहनें अम्मा के साथ कार में बैठ गई । सुबह तक उनकी बातों से महकता घर अब बड़े से ताले के साथ बंद पड़ा था।

अरबा ने आंसुओ से भरी आंखो से आखरी नज़र अपने प्यारे घर पर डाली और सर झुका दिया।


○●○●

डेढ़ घन्टे का सफर तय करके गाड़ी एक बड़ी हवेली के सामने रूकी।यह तीनों उस इमारत को देखने लगीं जिसे बाबा की जिन्दागी में देखना नसीब न हुआ था। हम अक्सर मरने के बाद इन्सानो और उनसे जुड़ी हस्तियों की कद्रे करते है। अरबा ने तकलीफ से सोचा। बड़े से गेट के खुलते ही गाड़ी तेज़ी से आन्दर दाखिल हुई।

हवेली अन्दर से भी बहुत शानदार थी।यह तीनों नपे तुले कदम उठाती बड़े से हॉल कमरे में दाखिल हुई। यहां कुछ औरतें हातों में सिपारे लिए बैठी थी वह मां बेटियां भी वहीं बैठ गई । इतने में बाबा के आखरी दिदार का बुलावा आ गया। घर की दुसरि औरतों के साथ वह तिनो भी बहार आ गई । मर्द हज़रात को एक तरफ कर दिया गया । दोनों तडपते दिल के साथ सफाएद कफन में लिपटे बाप को देखा। आँसूं बेआवाज़ बह रहे थे।


चन्द मिनिट बाद मय्यत को उठाकर ले गए तो यह बहनें एक दुसरे से लिपत कर खूब रोई। चाचा फिर उनको अन्दर ले आए । जहां अम्मा एक औरत के पास बैठी थी।जो बादामी रंग का लिबास पहने हाथ में तस्बीह उठाए हुए थीं।उन्हो ने चश्में की ओट से गौर से उन दोनो को देखा।



"आओ मेरे पास बच्चियो।" उन्होने अपनी बाहें फैला दीं तो वह बारी बारी उनसे गले मिली । उनसे बाबा की महक आ रही थी।

मेरे मुस्तफा की निशानियां मेरे बच्चे का खून।"वा रोती हुई उन्हें चूमती रही। बाबा के नाम पर यह दोनो बहनें भी रो पड़ी।

"यह तुम्हारी दादी हैं।" अम्मा मे आंखे पोंछते हुए बताया।

"कैसी हो इमामा।" दो औरते आकर अम्मा से मिलने लगीं। "यह हैं मुस्तफा की बच्चियां।" वह गौर से उनको देखने लगीं।

"मैं ताई हूं तुम्हारी और यह चाची।"
"यह तो तुम पर पड़ी इमामा। गोरी चट्टी और हसीन।" दुसरी ने अरबा को देखकर कहा जो रोता गुलाबी चेहरा लिए खड़ी थी।


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ज़िन्दगी ने एकदम से अपना नया चेहरा दिखाया था जो बिलकुल अनजान था। इतनी बड़ी हवेली ओर उसमे बसता उनका दधियाल। दादी ताया-ताई चाचा-चाचीयां , कज़ीन, वही सब रिश्ते जिनके लिए कभी यह बहनें आहें भरा करतीं। अचानक ही उनकी जोली में आ गिरे थे एक सबसे प्यारे और जान से अज़ीज़ रिश्तें के बिछड़ जाने के बाद।

अम्मां कमरें में इददत के दिन पूरे कर ही थी तो इन बहनों को भी हवेली में फिरने का शौक न था। यह भी उदास सी एक तरफ़ बैठी रहतीं। पहले पहले कुछ कुछ कज़ीन लडकियो ने मिक्स होने की कोशिश की, मगर इन बहनों के तकल्लुफ को देखकर वह दूर हट गई और फिर हवेली में मशहूर हो गया की इमाद की शहरी लड़कियां बहुत मगरूर ओर घमंडी हैं। यह बाते अरबा और जोनी के कान में भी पडती, लेकिन वह परवा न करती। उनके बाबा की जिन्दगी में उनको कबूल न करने वाले रिश्ते उनके मरने के बाद इन बहनों के लिए बेकार थे।

अरबा को इन दिनो अलयान भी बहुत याद आया करता। मालूम नहीं वह उसके बारे क्या सोचता होगा। उनके बिच एक ही राब्ते का ज़रिया था जो बबली के मोबाइल के साथ खत्म हो चुका था।

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दिन यूं ही बेकार के गुज़र रहे थे की एक दिन दादी और चाची अम्मा के पास चली आई।

"इमामा!मैने ने इन बच्चियों के रिश्ते अपने पोतो से तय करने का इरादा किया है। घर के मर्दो से भी बात चीत की है। फिलहाल ज़बानी बात पक्की करने आई हूं।बाकी मंगनी वगैरह तुम्हारी ईद्दत के बाद कर लेंगे।" वह जैसे पूरा फैसला करके आई थी और अब हर सूरत में अम्मा की हां चाहती थी।अम्मा ने अचंभे से उन्हें देखा। लबो से कुछ कहना चाहा तो वह बोल पड़ी।

"कोई कमी नहीं है मेरे पोतो में। पढे लिखे खुबसूरत। इतनी ज़मीनदारि वाले। न नशे की आदत न औरत की। ऐश करेंगी बच्चियां।"उन्हो ने फख्र से कहा।

"लेकिन में मा हूं बच्चियो की। मुझे लड़कों को देख भाल तो लेने दीजिए।" वह बोल उठी तो दादी ने हाथ से मक्खी उड़ाई।

"देख लेना हब आएंगे ईद की छुट्टियों पर। हिरे है मेरे पोते। कोई आम लड़के नहिं है। वैसे भी देनी तो तुम्हें लड़किया इसी खानदान में है।मुस्तफा हमारी रिवायतों के खिलाफ निकला,वर्ना नै नस्ल की मजाल नहीं खानदान से निकल कर निकाह करने की।" दादी के आखरी जुमलो ने अम्मा को तकलीफ पहूंचाई। उनकी आंखे छलकने लगी।

"और लडकियो की मर्ज़ी?" उनकी बात पर दादी ने हैरत से उन्हें देखा।

"कैसी मर्ज़ी।" इनकी देखभाल करने वाले अब हम है। मैं ओर अल्लाह जिन्दगी दे उनके ताया और चाचा को। हमने सोच समझ कर फैसला किया है। तुम लोग शहर में नहिं हो इमामा। हमरि हवेली में हो ओर अब तुं लोगों को इसी हवेली के तौर तरीकों से चलना है।" दादी की लरजती आवाज़ में अजीब सी गरज़ थी।

"यह लो मुन्ह मीठा करो ओर बच्चियों के अच्छे रिश्ते मिलने पर शुक्र अदा करो। वहां कमरें में बैथी रहती तो कौन बिन बाप की बेटियों को बियाह ने आता।उन्हो ने एक गुलाब जामुन अम्मा के मुन्ह मे डाली तो उन्होने ने आंसूओ के साथ बमुश्किल निगली। फिर दादी चाची के सहारे उठीं और कमरे से बाहर निकल गई।

"अम्मा!यह दादी आज आप के पास क्यों आई थीं। अरबा जो कमरे में आ रही थी दादी को निकलते देखकर हैरान हुई।

"तुम दोनो की अपने पोतो के साथ बात पक्की करके गई हैं। अम्मांने फिकी मुस्कराहट के साथ बताया तो अरबा ने बेयकीनी से उन्हे देखा।

"हमारी मर्ज़ी के बगैर। आप ने हां कैसे कर दी।"वह गुस्से से कहती अपनी मां के सामने आ बैठी।

"उन्हे तुम दोनों की मर्ज़ी से मतलब नहीं है ना ही वह मेरी हां के इन्तिज़ार में थी। वह सिर्फ फैसला सुनाने आई थीं। सो सुना गई।" अम्मां की आवाज़ पर आन्सूं छा गए।

"अम्मा हमें यहां नहीं आना चाहिए था। यह गलत सलत फैसले हम पर थोप रहे हैं। मुझे शादी नहीं करनी। आगे पढना है।" अरबा चीख पड़ी।

"बेटा किस्मत में यही लिखा है। उनकी वसीयत पूरी न करती तो कयामत के दिन दामन पकड़ते। मुझे शौहर की मर्ज़ी का मान रखना था।"वह बोली

लेकिन हमे खूँटे से बांधने की जल्दी क्या है। गाय, भैंस समज रखा है क्या?" जोनी जो अरबा के पिछे ही आई थी अपने अन्दाज़ में बोली।

"यह इसलिए बहना की बाबा के नाम जो जमीनें है वह उनके बाद हमें मिलनी है। सो वह यह जमीनें अपने पास ही रखना चाहते हैं।"अरबा ने दूर की कौडी लगाई तो जोनी सोच में पड़ गई।

"शौहर का साया सर से उठ जाए तो औरत बड़ी बेमाया हो जाती है।" अम्मा ने आह भरी तो दोनो बहनों ने उनके टूटे लहजे को तेज़ी से महसूस किया।

"वह लडके शहर में पढ रहे हैं।खुदा करे अखलाक व किरदार के अच्छे हो।ईद की छुट्टियों में हवेली आएंगे। देख लूंगी फिर वैसे यह इज्ज़तदार लोग हैं, बस कुछ रिवायत के पाबंद है। बाकी उनके मर्दो में कोई बुराई नहीं। तुम्हारे बाबा तो हमेशा ही तारिफ करते थे अपने खानदान की।"अम्मा उनसे ज्यादा खुद को तसल्ली दे रही थी।

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अलयान की याद एक तकलीफ़ बन कर अरबा को चिमट गई थी। जबसे दादी का फैसला सुना था दिल चाह रहा था की किसी तरह पर लग जाए, और वह उडकर उसके पास जा पहुंचे जो उसके दिल की पहली ख्वाहिश बन गया था।

बज़ाहिर हालात उसके हक में नहीं थे, मगर खुदा के हाथ में तो हर तरह की पावर है। वह चाहे तो चमत्कार कर दे। यह सोच कर वह सजदे में दुआ करने लगी। उसके उलट जोनी इतनी परीशान न थी उसका दिल उससे पहले किसी का तलबगार नहीं था।

"यह मुहब्बत भी क्या जालिम चीज़ है जो ज़िन्दगी को सुकून से खाली कर देती है।"अरबा ने उसको देखकर सोचा था।

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फिर बकरा ईद का मुबारक महिना शुरू हुआ तो बड़ी हवेली में हलचल मच गई सब दूर देस रहने वाले हवेली में जमा होने लगे। वह नई नस्ल जो पढ़ाई की गरज़ से शहरों में रहती थीं। वह मर्द हज़रात जो शौकिया नौकरी की वजह से फैमिली के साथ हवेली छोडे हुए थे। बाबा के मरने की वजह से बकौल चाची के ईद सादगी से गुज़र नी थी, लेकिन लोगों के बढ जाने से हवेली की रौनक बढ चुकी थी।उससे अन्दाज़ा हुआ की बस गैर खानदान में शादी ही सबसे बड़ा जुर्म है। बाकी हर चीज़ की आज़ादी हासिल थी। कोई शहर में पढना चाहे कहीं बाहर जॉब करना चाहे हत्ता के हवेली से निकल कर किसी ओर जगह रहना चाहे, खुली इज़ाजत थी।

और बाबा ने यही नाकबिले मुआफी जुर्म किया था। जिसकी वजह से उनको हवेली से दर ब दर कर दिया गया। सुना था की उनकी बचपन की मंगेतर भी अब बाल बच्चेदार थी और कहिं ओर रहती थी।सो अपनो की जुदाई बेकार में ही बाबा का मुकद्दर बना दी गई। अरबा ने खिडकी से नज़र आते बड़े से बाग को देखकर सोचा, जहां काफी यंग जनरेशन दिखाई दे रही थी और वही एक तरफ अहाते में कुर्बानी के बकरों को बांधा जा रहा था।

"क्या देख रही हो अरबा! उन लड़को में कही अली को तो नहीं ढून्ड़ रही हो।" जोनी ने उसका ध्यान तोड़ा तो उसकी बात पर अरबा ने उसे घूरा।

" वह नेवी ब्लू पैंट शर्ट में उबैद अली है। युनिवर्सिटी से M.B.A की पढ़ाई पूरी कर रहा है। देखने में खुबसूरत है ना। शुक्र है मेरि परिशानी दूर हुई। वरना मैं तो सोच रही थी न जाने किसके साथ दादी ने नसीब फोड़ा है।"जोनी हन्सी तो अरबा ने हैरत से उसे देखा।तुम्हे यह कैसे पता चला।

"वह नादिया (कज़ीन) है ना जिसको बोलने की बहुत आदत है।उसी ने बताया बल्कि दिखाया।

"अच्छा।"अरबा बेआराम हुई।

"हां उसी ने बताया की उबैद तो राज़ी है, मगर मनसब अली इस रिश्ते पर खुश नहीं है।वह दादी और चाचा वगैरह से नाराज़ हो गया है की उसकी मर्ज़ी के बगैर यह रिश्ता क्यों जोडा गया। जोनी की बात पर अरबा को खुश गवार हैरत हुई।

"ऐसा कहा उसने।"

"हां वह कहता है मैं कहीं और इनवोल्व हूं। दादी ओर चाची ने उसको धमकी दी है की तुम्हें हर हालत में यहिं शादी करनी है,वरना हमें छोड़ ना होगा।"


जोनी ने बताया तो अरबा को अनदेखे लडके से हमदर्दी सी हुई जो उस की तरह दिल के हाथो से मजबूर था, लेकीन सही बात यह है की वह अपने हक़ के लिए लड़ रहा है जो अरबा ना कर सकी थी।

"अल्लाह करे उसे अपनी मुहब्बत मिल जाए।"अरबा ने दिल से दुआ की।

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"और अब.....कल सुबह बाबा के बगैर पहली ईद होगी।"बाबा के बिना ईद यह सोच इतनी तकलीफ़ देह थी की अरबा ने बिस्तर पर लेटे लेटे तकलीफ़ से आन्खे बंद कर लीं। हर ईद पर वह सब से पहले बाबा से ईद मिलती थी फिर अपना मेंहदी लगा हाथ उनके आगे फैला कर ईदी मांगती। वह पहले तो अरबा की हथेली चूमते फी उसकी फ़रमाइश के मुताबिक करारे नोट उसे थमा देते।
"और अब वह दिं दुबारा लौट के नहिं आ सकते?"अरबा ने आन्सू बहाते सोचा, फिर उसको अलयान याद आया। जो हर मौके पर उसको सरप्राइज़ गिफ्ट देकर हैरान किया करता। उसके साथ की गई सभी बातें। उसका कभी कभार दूर से देखना।

"और यह मुहब्बत हमेशा जुदाई में ही क्यों अपना आप मनवाती है। इससे पहले वह कहां सोई रहती है? अरबा ने शिद्दत से लब काटे। रात के उस पहर सब आराम कर रहे थे वह बेआराम थी। बिस्तर पर करवट पर करवट बदल रही थीं दिल आज सारी हदे तोड कर चुपके से भागने की ख्वाहिश कर रहा था। वह घबराकर उठ बैठी।
कमरे की फ़ज़ा ओक्सिजन से खाली महसूस हो रही थी। वह स्लिपर पांव में डाल कर बाहर निकली। बारह एक बजे तक हवेली के लोगों के शोर से गूंजती हवेली रात के तीन बजे जैसे उंध रही थी। वह धीरे धीरे चलती बाहर बाग में चली आई। कुछ फासले से लगी लाइट ने अन्धेरे को किसी हद तक कम कर दिया। हवा भी खुश गवार चल रही थी। वह थोड़े अंधेरे में रखी एक बेंच पर आ बैठी। खुले आसमान में चमकता चांद भला मालूम हो रहा था। वह खामोशी से उसे देखती रही।

"क्या मालूम अलयान की रातें भी मेरी तरह बैचेन गुज़रती हो। क्या मालूम वह भी मेरी तरह चान्द को तकता हो या फिर .....उसने मुझे सिर्फ एक ख्वाब समझ कर भुला दिया हो।" यह सोच आते ही अरबा ने एक झुरझुरी सी लि और चांद से नज़र हता ली फिर किसी एहसास के तहत गर्दन मोड़ कर देखा तो बेंच के दुसरे कोने पर किसी इन्सान की मौजूदगी उसे चौका गाई। थोड़े अंधेरे में वह जो भी था मोबाइल पर झुका हुआ दिखाई दिया। अरबा के हाथ पैर सनसना उठे। उसने फौरन उठकर भागना चाहा, मगर पैर फ्रिज़ हो गए।


"आपके पिछले नम्बर से जवाब नहीं आ रहा है।" खामोशी को तोडती मोबाइल की रिकॉर्डिंग सुनाई दी तो उस बन्दे ने मोबाईल को घांस पर दे मारा और सीधा हो बैठा। अरबा ने जल्दी से मुन्ह फेर लिया।उस बन्दे ने उसी पल अरबा को देखा था।

"आप कौन है और इतनी रात को यहां क्या कर रही है।" भारि आवाज़ अरबा का दिल धड़का गई ।

"मैं अरबा।" वह रूख मोड़े बिना बोली।


"ओह तो आप है मेरि वह सोकोल्ड कज़ीन। जिसका नाम भी मैं ने पगले नहिं सुना था।" वह हंसा।
"और अब आपसे निकाह करने पर मुझे राज़ी किया जा रहा है।" उसकी बात पर अरबा चौकी।

"मनसबअली।" उसके मुन्ह से निकला।

"जी मनसब अली। जिसको आज से पहले अपने किसी सगे चाचा ओर उसकी फैमिली के बारे में कुछ पता नहीं था। बल्कि हम न्यू जनरेशन को सिरे से भनक भी नहीं पड़ने दी गई थी की हमारेबड़ो में से किसी ने गैर खानदान में शादी का जुर्म किया था और उस पर हवेली और दिलों के दरवाज़े बंद कर दिए गए थे।" वह तन्जिया लहजे में बोला।

"और अब अचानक उन चाचा के मरने के बाद हवेली वालो के दिल उनकी फैमिली के लिए नर्म पड़ गए हैं और शामत आई है मेरी कि मरने वाले चाचा की लड़की से जबरदस्ती मंगनी करूं।" वह कहने लगा तो अरबा को अपनी बेइज्ज़ती का एहसास हुआ।

आप को मुझसे शादी नहिं करनी है तो न करें।मैं कोनसा मरी जा रही हूं आप के लिए।"वह एकदम गुस्से से पलटी और ज़ोर से बोली, फिर खामोश हो गई। मनसब अली भी आंखे खोल कर उसको देखने लगा।

"बबली!" वह हैरान सा थोड़ा करीब खिसक आया।

"अलयान!" अरबा के मुन्ह से सराता निकला।

" तुम अरबा मतलब मेरी सगी चचाजाद।" वह खुश होकर बोला।

"हां अरबा मेरा नाम है..... बबली मेरा निक नेम है।" वह खुशी से छलकते आंसू पोंछ कर बोली।
"और आप मनसब अली।" वह सवालिया नज़रों से देखने लगी।

"यह मेरा बर्थ नेम है जो दादी लोग पुकारते हैं।अम्मी ने लाड़ में अलयान पुकार ना शुरू किया तो वही पड गया। वह चमकती आंखों से बताने लगा।

"तुम अचानक गुम हो गई नम्बर भी बंद कर दिया। मैं तो पागल हो गया था।सैर सपाटा अजाब में गुज़रा। हफ्ते बाद वापस आया तो तुम्हारे घर पर ताला। शहजाद मेरे साथ घूमने निकला था। इसलिए वह खुद अनजान था।"

"तुम्हारे बाबा का सुना और बस। सोच कर परीशान हो गया कि तुम गई कहां। क्या पता था मेरि हवेली में थी। ओह गॉड।" वह सर पर हाथ मार कर बोला।


"मुझे भुल कर भी ख्याल न आया कि तुम वहीं होगी जिससे मेरी शादी की प्लानिंग की जा रही है।" वह खुले बालो में हाथ फेरता अपनी ला इल्मी पर हंसने लगा।

"अम्मा तो पहले ही दिन तुम्हें देखकर तुम पर फिदा हो गई। मुझे फ़ोन पर बताया की तुम्हारे चाचा मरहूम की बेटी तुम्हारे लिए पसंद कर ली है।मुझे तो शोक्ड लग गया। तब से मेरी घर वालो से जंग छिड़ी हुई है। अब भी ईद पर मैं हवेली आना नहिं चाहता था पर उबैद मुझे जबरदस्ती ले आया और क्या मालूम था जिसे दुल्हन बना कर हवेली ले आने के लिए मैं घर वालो से जंग कर रहा था वह तो खुदा के करम से पहले ही हवेली पहुंची हुई थी।" वह बहुत खुश नज़र आ रहा था।

"अल्लाह कितना महेरबान है अरबा!" फिर अलयान ने आसमान की तरफ चेहरा उठा कर शुक्रिया अदा किया।

"हां अलयान! अल्लाह हमारी उम्मीद से भी ज़्यादा हम पर महरबान है।" अरबा उसके खिलते हुए चेहरे को देख कर बोली।

"मेरे दिन रात किस तरह बेकरारी में गुज़रें है, तुम्हे अन्दाज़ नहीं बबली! अब जाकर चैन आया है दिल को।"वह उसको देखकर कहने लगा।

"बस अब मंगनी के बजाए सीधा निकाह करना है।"वह अरबा का हाथ थामकर गंभीरता से बोला तो वह ब्लश सी हो गई।

और रात के उस पहर दो मुहब्बत करने वालों के अनोखे मिलन पर ईद का चांद भी मुस्करा दिया था।


THE END







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