ये कैसी राह - 4 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसी राह - 4

भाग 4

रात भर में पैर और भी सूज आया। साथ ही दर्द भी बढ़ गया। ना तो उससे चला जा रहा था, ना ही खड़ा हुआ जा रहा था।

अब जब खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा था तो इस स्थिति में तो नौकरी पर जाना संभव नहीं था। इस कारण जाना निरस्त करना पड़ा। अगले दिन सुबह गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाया गया।

डॉक्टर ने बोला, "आराम हो जाएगा परंतु समय लगेगा। अभी आप कहीं नहीं जा सकते। आपको घर पर ही रहना पड़ेगा।"

वो डॉक्टर क्या ही था..! झोला छाप बंगाली डॉक्टर था। पूरे गांव का इलाज वो ही करता था।

उसने अपनी देसी डाक्टरी की। बांस की कमानी बना कर उससे पैरी को चारो ओर से कस कर मजबूती से बांध दिया।

हर चौथे दिन बुलाता बांस की कमानी बदलता, अपने बनाए तेल का मालिश करता। फिर कुछ जड़ी बूटी लगा कर बांध देता।

अब रामू ने दीनबंधु जी जिन्होंने उसकी नौकरी लगवाई थी, उन्ही की सिफारिश कर और छुट्टी बढ़वाने के लिए चिट्ठी लिखी।

रामू की परिस्थितियों को देख दीन बंधु बाबू ने उसकी छुट्टियां बढ़वा दी।

अब दीनबंधु जी की कृपा से रामू को इलाज के लिए लंबी छुट्टी मिल गई। छुट्टी तो मिल गई पर वेतन आधा हो गया। वेतन तो पहले ही कम था। पहले ही गुजारा मुश्किल से होता था। अब तो आधा हो गया तो कैसे खर्च चलेगा ? ये चिंता रामू को सताने लगी।

रामू खुद को कोसते हुए बोला,

"सब मेरी लापरवाही का नतीजा है। अगर मैं उस रात देख कर चलता, तो.. ना मैं गिरता, ना ही मुझे छुट्टी ले कर घर बैठना पड़ता। ना ही वेतन आधा होता। ये मेरे ही कर्मो का फल तुम सब को कष्ट उठा कर भोगना पड़ रहा है।"

पति को इस तरह दुखी हो कर खुद को कोसते देख कांता ने दिलासा दिया वो बोली,

"आप बिल्कुल भी परेशान मत हो … माधव के बाबूजी ..! जिसने सब संभाला है वही आगे भी संभालेगा। उस ऊपर वाले पर भरोसा रक्खों। मैं हूं ना .. ! देखना आप..! सब ठीक हो जायेगा। अभी भगवान हमारी परीक्षा ले रहे हैं।"

तीन बच्चों की परवरिश करना मुश्किल हो रहा था। पर कांता ने जो कहा था वो करके भी दिखया। उस ने सब संभाल लिया। वो बेहद सलीके वाली सुघड़ गृहस्थिन थी। उससे पति को कभी यह पता नहीं चलने दिया वो घर कैसे चला रही? भोर होने के एक पहर पहले ही उठ जाती। खेतों के काम के साथ साथ एक गाय जो किसी ने दे दिया था। उसकी देख भाल करती। उसके चारे का प्रबंध करती। जो दूध होता उसे खुद के लिए थोड़ा सा रख कर बाकी बेच देती। घर के आस पास मौसमी सब्जी, लौकी, कुम्हड़ा नेनुआ आदि बोकर सब्जी का काम चलाने लगी। जो कुछ भी सब्जी होती उसे आस पास रहने वालों को जरूर देती। कांता के मृदु स्वभाव से पूरा गांव मदद को तत्पर रहता।

आभाव ने सबको एक दूसरे के और करीब ला दिया। सब अपना अपना योगदान देने को तत्पर रहते थे। कांता बच्चों से खाने को पूछती तो भूख लगने पर भी बच्चे कहते मुझे भूख नहीं है। जिससे मां परेशान ना हो। वो इस बात का ध्यान रखते की मां के लिए खाना बचा है या नहीं। कठिन समय ने बच्चों को समय से पहले परिपक्व और जिम्मेदार बना दिया।

गांव का डॉक्टर राम देव की टांग ठीक होने का बस भरोसा ही देता रहा। जब भी वो दिखाने जाता अपनी लच्छेदार बातों में फंसा लेता। हर बार कहता एक महीने में तुम चलने नही दौड़ने लगोगे। पर एक महीना उसका होता ही नही था। पैर की हड्डी इसी गलत इलाज से टेढ़ी हो गई। चलना फिरना मुश्किल हो गया।

कुछ समय बाद ही बड़ा बेटा जो अभी कम उम्र ही था पर घर में रूपए पैसे की समस्या देख गांव के ही युवक के साथ दिल्ली चला गया कमाने। घर की समस्या देख कांता और रामू ने भी उसे रोका नहीं। ये सोच कर कि बाहर जायेगा तो कम से ठीक खायेगा, पिएगा। दो पैसे भी कमाएगा।

मंझला बेटा केशव और छोटा राघव गांव के सरकारी स्कूल में हीं पढ़ने लगे। केशव साधारण ही था पढ़ने में। पर वो जैसे जैसे बड़ा होने लगा खेती के काम भी सीख कर कांता की मदद करने लगा। रात में खुद भी पढ़ता साथ में राघव को भी पढ़ता। एक की किताब से दोनो भाई का काम चल जाता।

माधव को जल्दी ही दिल्ली में काम मिल गया। जो कुछ उसे मिलता वेतन उसमें से कुछ रुपए अपने जरूरी खर्चे के लिए रख कर घर भेजने लगा। थोड़े में हीं सही पर गृहस्थी एक बार फिर धीरे धीरे चलने लगी। माधव जो कुछ भेजता और रामू की आधी तन्ख्वाह से घर चलने लगा। धीरे धीरे सत्तू की यादें धूमिल हो ने लगी। एक बार फिर घर ठीक ठाक चलने लगा।