खून पसीना - 1 सौरभ कटारे द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खून पसीना - 1

ये बात उस समय की है जब भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजमर्रा और जीवनयापन का एक मात्र जरिया खेती का काम ही था,और गाव में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति केवल और केवल खेती पर ही पूर्णता आश्रित रहता था,उस दौर में किसी भी प्रकार की नौकरी करने को नीचा समझा जाता था, खेती के सहारे ही किसानों के और गाव के अन्य निवासियों के घर में दो वक़्त की रोटी और जीवन को चलाने के लिए थोड़े बहुत पैसों का बंदोबस्त हो जाता था।

उस समय के लोग कम पैसों में भी अधिक खुश रहते थे। और गांव का माहौल भी खुशनुमा रहता था,ऐसा ही एक गांव था राठी वैसे तो ये गांव बहुत छोटा था लेकिन इस गांव में सब एकदुसरे के दुख सुख में शामिल होते थे ,और सब समय आने पर एक दूसरे का पूरा साथ देते थे ,जिसके कारण इस गांव में खुशियों की कोई कमी ना थी।

राठी गांव में सभी समाज के लोग रहते थे,गांव में लगभग 300 घर थे ,जिनमें 1000 के आसपास की जनसंख्या निवास करती थी,इनमें से ज्यादातर लोगों के पास स्वयं की खेती थी , हां किसी के पास अधिक तो किसी के पास थोड़ी कम और जिनके पास खेती बिल्कुल नहीं थी वो खेती से जुड़े अन्य कार्य करते थे ,कोई रोजगारके लिए कभी गंव से बाहर नहीं जाता था।

गांव सुनार नदी के किनारे पर बसा हुआ था,पानी की कोई कमी ना थी गांव में सरकार द्वारा नहर भी बना दी गई थी, इसलिए खेती से उपज भी अच्छी होती थी।चारो ओर हरियाली से अच्छादित गांव की भूमि का नजारा स्वर्ग जैसा था,जहा हमेशा सुकून कि मंद सुगंधित पवन खिलोरे करती, चिड़िया मिट्टी के कच्चे मकानों के आंगन में फुदकती और साफ मन के सरल स्वभाव लोग रहते थे।

इसी गांव में एक कमलू नाम के किसान रहते थे,जिनके पास 15 बीघा जमीन थी,कमलू का भरा पूरा परिवार था जिसमें उसके 4 भाई व पत्नी और 2बच्चे थे। कमलू के पास खेती के साथ साथ 2 बैल ,4 गाय और 4 भैंसे भी थी।उस समय खेती के सभी काम बैलों से ही किए जाते थे।कमलू की गिनती बड़े किसानों में की जाती थी।

कमलू की खेती ज्यादा होने के कारण उसे करने के लिए मजदूर को लगाया जाता था,गांव में ऐसे थोड़े ही किसान थे जिनके यहां मजदूरों को लगाया जाता था ,वैसे कमलू ईमानदार था पर पैसों का बड़ा लालची भी था जिसके कारण लेन देन के मामलों में गड़बड़ी कर देता था,ये बात कहने को तो सारे गांव को पता थी लेकिन कहकर कोई उससे बुराई मोल नहीं लेना चाहता था।

क्योंकि कमलू एक धनी व्यक्ति था और धन की जरूरत कब किसे पड़ जाय किसी को पता नहीं होता और जरूरत पड़ने पर कमलू गांव वालो को धन उधार दे दिया करता था हालाकि इसका सूद भी मनमाने तरीके से वसूल करता था।

इसी गांव में दीनू आदिवासी का भी एक छोटा सा छप्पर वाला घर गांव के बीचों बीच था,दीनू सरीर से सुडौल 35 साल का व्यक्ति था दीनू काफी मेहनती था,दीनू के पास कोई जमीन जायदाद ना थी एक केवल घर ही उसका अपना था ,इसलिए दीनू पूरी तरह मजदूरी पर ही आश्रित था।

दीनू के परिवार में 2 छोटे बच्चे और उसकी पत्नी कुल 4 लोग थे,जिनके भरण पोषण के लिए दीनू को मजदूरी करनी पड़ती थी हालाकि उसकी पत्नी जयंती भी काम में दीनू का बराबर सहयोग करती थी पर उस समय मजदूरी कुछ खास ना मिलती थी पूरे दिन काम करने के बाद 10 रुपए मिलते थे,इसके अलावा रोज काम भी तो नहीं मिलता था।

जिसके कारण कई दिन फाके गुजरने पड़ते ,पर अब पैसों की ज्यादा जरूरत थी क्योंकि आखिर बच्चो के लिए भी तो कुछ कमाकर रखना है ,इसलिए इस बार दीनू ने फैसला किया कि वो किसी बड़े किसान के यहां बांटे को खेती करेगा ,जिससे ज्यादा पैसा कमा सके।दीनू मेहनती था इसलिए उसे किसी भी किसान के यह काम मिल जाएगा ये उसे भरोसा था।

और ये बात सही थी क्योंकि उसकी मेहनत और ईमानदारी के चर्चे सारे गांव में थे ,इसलिए ये बात पता चलते ही की दीनू बांटे से खेती करना चता है सबसे पहले कमलू ने ही उसे अपने यहां खेती करने के लिए मना लिया,दीनू ने भी सोचा ज्यादा खेती वाले किसान के यहां काम करने से फायदा भी ज्यादा होगा इसलिए वह भी तैयार हो गया।


कमलू काफी कंजूस था लेकिन खेती का काम ज्यादा होने के कारण उसे एक कामगार कि जरूरत पड़ती इसलिए दीनू को लगाना जरूरी था अब कमलू व दीनू दोनों खूब थे जहा एक को काम मिलने की खुशी थी तो दूसरे को काम करने वाला मिलने की

धीरे धीरे कमलू व दीनू के संबंध और अच्छे हो गए दीनू अब अपने मालिक पर पूरा विश्वास करता था,और मालिक की धोस दूसरे लोगो को भी दिखाता,कमलू के घर के छोटे बड़े सभी काम दीनू के ही हवाले थे और दीनू इन्हें पूरी ईमानदारी से करता,जिसकी मजदूरी के पैसों से घर में भी खुशी का माहौल रहता।

धीरे धीरे आखिर वो मौसम भी आ गया जिसका दीनू व कमलू को इंतजार था मतलब फसल बोने का समय आज कमलू ने दीनू को बांटे की खेती के सारे नियम कानून बताने के लिए धर पर बुलाया चूकी दीनू भी बांटे की खेती पहली बार कर रहा था इसलिए अन्य मजदूरों से मोटी मोटी बाते जानने के बाद ही कमलू के घर के लिए रवाना हुए।

कमलू ने बताना शुरू किया की 15बीघा जमीन में से 3 बीघा जमीन पर दीनू के लिए अनाज बोया जाएगा जिसके बदले में पूरी जमीन कि देख रेख फसल में पानी देना दवाई डालना, आदि सभी काम दीनू को करने पड़ेंगे ,और जो 3 बीघा दीनू के लिए बोया जाएगा उसका आधा हिस्सा दीनू का व आधा हिस्सा कमलू का होगा।

वैसे ये था तो घाटे का सौदा लेकिन पूरे गांव में यही रिवाज था और इसके अलावा कोई ढंग का काम भी तो गांव में नहीं मिलेगा करने को इसलिए दीनू ने कमलू को काम करने के लिए हां बोल दी। घर आकर दीनू ने अपनी पत्नी जयंती को भी सरी बाते बताई ,पर जयंती एक सीधी सादी नारी थी उसके पल्ले कुछ ना पड़ा।

समय आने पर गेहूं,चना की फसलों की बोवनी की गई,नियमानुसार 3बीघा खेत में दीनू के लिए गेहूं बोया गया और बाकी जमीन में कुछ पर गेहूं व कुछ पर चने की बोवनी की गई।अब दीनू अपने काम में दिन रात व्यस्त रहने लगा,उसे खेती के साथ साथ कुछ अन्य काम ना रहने पर कमलू के घर व पशुओं से जुड़े काम भी करने पड़ते।

पर दीनू मेहनतकश आदमी था इसलिए उसे इन कामों को करने में कोई परेशानी नहीं होती,लेकिन इसकी उसे कोई मजदूरी नहीं मिलती ,हां कभी कभी मालिक के प्रसन्न होने पर उसे कुछ खाने को जरूर मिल जाता,और दीनू उसे खुद ना खाकर अपने बच्चो के लिए ले आता।

आज फसल की बोनी हुए 15 दिन हो गए , ईश्वर की कृपा से कमलू के सारे खेती की फसल पूरे गांव की फसलों से अच्छी हुई ,दीनू भी अब फसल को देखकर खुश हो गया,उसे अब यह आशा जागने लगी कि शायद अब उसके जीवन की सारी परेशानियों के अंत का समय आ गया,और अब इस फसल की कमाई से घर में खुशहाली आ जाएगी।

दीनू ने पूरी ताकत अब फसल को बनाने ,देखभाल में लगा दी,फसल में पानी देने के लिए गांव में नहर ही एकमात्र साधन था ,दीनू को कड़ाके की ठंड में नहर से पानी लगाना पड़ता,उस पर एक परेशानी यह थी कि नहर महीने में दो अंतरालों में चालू होती, दो सप्ताह दिन में और दो सप्ताह रात में ,कमलू की खेती ज्यादा होने के कारण उसे किसी भी दिन का अवकाश नहीं नसीब होता ।

पर दीनू सुनहरे भविष्य को देखकर इस कष्टदायक वर्तमान की कठनाई यो को सहने के लिए तैयार था ,और इसी कारण कड़कड़ाती हुई ठंड की रातें व नहर का ठंडा पानी भी उसके सामने अवरोध पैदा ना कर सके।

दीनू के दो बच्चे थे जिनमें एक सात साल की बेटी चंपा और एक चार साल का लड़का रामू था ,दीनू जब भी खेत के काम में व्यस्त रहने के कारण खाना खाने घर नहीं आ पाता तो उसकी बेटी चंपा ही खाना देने खेत पर चली जाती थी।रामू अपने बच्चो की बहुत फिक्र करता था इसलिए घर आकर कभी कभी जयंती को इस बात के लिए काफी डांटता की उसने बेटी को खेत खाना देने के लिए क्यों भेजा?


अब फसलों कि हरी हरी चादर ओढ़े खेतो की धरती नई नवेली दुल्हन की तरह लगने लगी ,फसल में दाने पड़ने का समय आ चुका था अब बस थोड़ा समय ही फसल आने में
बाकी रह गया था दीनू को आने वाले अच्छे दिनों की आहट सुनाई देने लगी ,दीनू रोज नए नए स्वप्न मन ही मन गणने लगा कि फसल का पैसा आने पर ऐसा करेगा वैसा करेगा,ये खरीदेगा वो खरीदेगा।

पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था,दीनू की फसल अब पक्कर पूर्णता तैयार हो चुकी थी,अब केवल फसल कटने व गहाई का काम ही बाकी रह गया था ,और दीनू की फसल इस साल देखने से लगता था कि सबसे अधिक पैदावार देगी,गांव का जो भी आदमी फसल देखता दीनू की मेहनत की तारीफ करता।

दीनू भी लोगो की बाते सुनकर मन ही मन खुश होता,और सोचता कि अब शायद ये गरीबी की जंजीरों से जल्द ही छुटकारा मिल जाएगा,और वह भी अपने बच्चो का अच्छे से पालन पोषण करने में सक्षम रहेगा।

दीनू को आज सुबह कमलू के घर से होते हुए खेत जाना था क्योंकि फसल कटाई के लिए तैयार हो गई थी इसलिए इसकी जानकारी कमलू को देकर उनसे फसल कब से काटना है इसके बारे में पूछना था ,और फिर फसल को काटना शुरू करना था।

वैसे भी बाजू के खेतो की कटाई सुरु हो चुकी थी,इसलिए अब जानवरो से भी खतरा दीनू के ही खेत को था,कमलू के घर पहुंच कर सारी जानकारी देने पर कमलू ने कहा की पहले दो दिन दीनू चने वाले खेत में कटाई करा दे फिर जिस खेत में दीनू के लिए गेहूं बोया गया है वह काटे ,दीनू ने खुद के लिए बोए गए खेत के देरी से कटाई करने पर होने वाले सारे नुकसान गिनाए ,पर कमलू तैयार ना हुआ।

आखिर दीनू को ही चने काटने के लिए हामी भरनी पड़ी,और उसी दिन से चने कि कटाई सुरु कर दी ,उस दिन पूरे दिन बिना घर जाय कटाई की,आज मेहनत कुछ ज्यादा हो जाने के कारण शाम को खाना खाते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

सुबह होते ही फिर काम पर निकल गया आज भी जी तोड़ मेहनत से कटाई की और शाम को खेत से छुट्टी के बाद कमलू से अगले दिन से खुद के वाली फसल काटने की इजाजत मांगी आज कमलू ने भी इजाजत दे दी दीनू घर आ गया और जयंती से कहा कि कल से अपना गेहूं काटने तुम्हे भी चलना पड़ेगा क्योंकि अकेले काटने में उसे समय बहुत लग जाएगा और नुकसान होगा। जयंती ने भी हामी भर दी।

अगली सुबह जल्दी उठकर जयंती ने खाना पीना बनाकर खेत जाने के लिए दीनू को उठाया ,दीनू भी जल्द ही खेत जाने के लिए खाना पीना खाकर तैयार हो गया ,पर अब बच्चो का क्या करे इन्हें भी तो अकेला नहीं छोड़ा जा सकता इसलिए उन्हें भी साथ में खेत ले जाने का फैसला किया।

जल्द ही सारा परिवार खेत पहुंच गया,बच्चो को खेत में एक जगह पेड़ की छाया में बैठाकर दीनू व जयंती ने गेहूं की फसल को काटना सुरु किया ,ये महीना चैत का था ,सूर्यदेव ने भी धीरे धीरे अपनी ताकत का अहसास कराना शुरू कर दिया था ,तपिश धीरे धीरे बड़ने लगी ,दोपहर होते होते गर्मी में काम करना मुश्किल हो गया।

इसलिए खाना खाकर दोपहर पेड़ की छाव में बिताने के बाद शाम से फिर काम पर लगने का निश्चय किया,शाम हो गई काम फिर से शुरू हुआ और उजाला खत्म होने तक कटाई की गई ,फिर सारा परिवार थका हारा घर वापस पहुंचा,पर जयंती का काम अभी भी खत्म ना हुआ था क्योंकि अभी उसे फिर से खाना बनाना था।

रात के नौ बजे खाना खाकर सब सो गए ,सुबह सूरज की पहली किरण के साथ फिर अपने काम पर रवाना हुए,आज कमलू भी खेत पर कटाई देखने आया बच्चे अब एक जगह बैठे ना रहते पूरे खेत में खेलते आज भी काफी कटाई हुई , इसी हिसाब से यदि काम चला तो अंगले दो दिनों में कटाई का काम पूरा हो जाएगा ।

आज फिर सुबह जल्दी पूरा परिवार खेत पहुंच गया,और दीनू और जयंती काम में रोज की तरह लग गए अभी फसल काटते हुए एक घंटा ही बीता था कि बेटी चंपा जो कि खेत के किनारे लगे नीम के पेड़ के नीचे खेल रही थी जोर से चिल्लाई मां भैया को कुछ हो गया है वो आंखे नहीं खोलता और ना ही कुछ बोलता है , मां बाबूजी भैया अचानक जमीन पर गिर पड़ा।ये सुनते ही दीनू और जयंती घबराकर उनकी तरफ तेजी से दौड़े....


दीनू ने बेटे रामू को देखा वो शायद बेहोश था ,जयंती तो रामू की हालत देखकर बदहवास हो गई,दीनू ने समझाया कि कुछ नहीं हुआ रामू को घर चलो सब ठीक हो जाएगा,सभी घर कि ओर दौड़े दीनू ने रामू को गोद में उठाया और गांव के वैध तुकाराम के घर पहुंचा ,उस समय तुकाराम जी घर पर ही थे ,दीनू ने आवाज लगाई और तुकाराम बाहर आ गए ।

उस समय बीमारी होने पर गांव में एकमात्र तुकाराम का ही सहारा था वो देसी औसधियो से इलाज करते थे,तुकाराम ने बच्चे को देखा और रामू के मुंह पर पानी छिड़क कर उसे होश में लाए,दीनू की जान में जान आ गई,फिर वैध ने कुछ लेप माथे पर लगाया और कुछ औषधि पिलाई और दीनू से कहा कि रामू को बहुत तेज ज्वर है मुझे ये साधारण ज्वर तो नहीं लगता ।

इसे पास के कस्बे के अस्पताल ले जाओ देर ना करो,दीनू ने भी देर ना करते हुए तुरंत जयंती से कहा कि इलाज के लिए उन्हें शहर जाना पड़ेगा ,कुछ कपड़े व खाने पीने का सामान रख लो, शहर गांव से लगभग नौ किलोमीटर दूर था ,जाने के लिए कोई साधन ना था इसलिए पैदल ही जाना पड़ता था,पर जयंती बोली इलाज के लिए पैसा भी तो चाहिए ,और घर में एक फूटी कौड़ी भी नहीं है।

दीनू ने इसके बारे में तो सोचा ही नहीं था ,पर दीनू ने सोचा मालिक से कुछ पैसा ले लेता हूं मालिक जरूर मदद करेंगे,और जयंती को पैसों की व्यवस्था बनाने की बोलकर झट से कमलू के घर की और दौड़ा,कमलू बाहर आंगन में बैठा था ,दीनू ने सारी मजबूरी सुनाई और कुछ पैसे मांगे,कमलू ने भी देर ना करते हुए तुरंत 200 रुपए दीनू को दिए और जल्दी अस्पताल को कहा


‌दीनू घर आया और रामू को कंधे पर रखा और चल दिया,जयंतीऔर चंपा भी पीछे पीछे चल दिए,रास्ता कच्चा और उबड़ खाबड़ था जिसपर जल्दी जल्दी चला भी ना जा सके ,लेकिन दीनू की चाल इस समय भी किसी घोड़े जैसी थी,क्योंकि उसकी सारी संपत्ति दाव पर लगी थी।

आज सुबह से किसी ने कुछ खाया भी ना था,दीनू अब पसीने से लथपथ हो चुका था ये देखकर जयंती ने कहा अब रामू को मुझे दे दीजिए कुछ दूर तक में ले लेती हूं,दीनू ने कहा नहीं में लेते जाऊंगा,लेकिन जयंती ने रोककर रामू को अपने कंधे पर रख लिया,रामू कोई को बच्चा ना था इसलिए जयंती से ज्यादा दूर तक उसका वजन उठाना कठिन हो गया ,पैर लड़खड़ाने लगे

दीनू ने ये देखकर फिर उसे जयंती से वापस लिया और चल पड़ा ,लगभल एक घंटे चलने के बाद शहर पहुंचे ,दीनू शहर कभी कभार जरूरी काम होने पर ही आता था उसे अस्पताल का तक पता ना था,लोगो से पूछते पूछते जैसे तैसे वहा तक पहुंचा।

डॉक्टर ने रामू को देखा तुरंत कुछ जांचे करवाई कुछ देर में जांच रिपोर्ट आ गई,रामू को तब तक 2 बॉटल चड़ाई जा चुकी थी,रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कहा इसे मस्तिष्क ज्वर है
पांच दिन तक भर्ती करना पड़ेगा,रामू ने तुरंत हामी भर दी,दवाई होनी सुरु हुई ,कुछ दवाई बाहर से लानी पड़ती ,रोजाना की दवाईयों में लगभग पच्चीस रुपए का खर्चा आता,और रामू को खाने के लिए फल फूल भी लाने पड़ते ,थोड़े पैसे अस्पताल के सफाई कर्मियों को देने पड़ते ।

ऐसे सारे खर्च मिलाकर लगभग 50 रुपए दिन का खर्चा होता जो कि दीनू के लिए बहुत ज्यादा था,पर बच्चे की सलामती के बदले में ये सौदा बहुत सस्ता था ,इसलिए दीनू ने कोई बात ना सोची ,आज दूर दिन था आज रामू की तबीयत में सुधार दिखने लगा ,आज रामू कुछ बोल पाया,दीनू और जयंती की जान में जान आई।

अब दीनू ने जयंती को कहा कि बेटे की तबीयत अब ठीक है कल सुबह तुम और चंपा घर जाओ में और रामू तीन दिन बाद आ जाएंगे ,पर जयंती बेटे को छोड़कर ना जाना चाहती थी,पर रामू ने जब समझाया की उनके जाने से दो लोगो के खाने का खर्चा कम होगा तो इलाज में पैसे काम आ जाएंगे।तब जयंती जाने के लिए राजी हुई।


आज अस्पताल में तीसरा दिन था जयंती और चंपा घर को निकल चुके थे,अब दीनू ने पैसे देखे कुल 60 रुपए ही जेब में बाकी थे ,आज डॉक्टर ने कहा दीनू बेटे की तबीयत अब काफी सुधर चुकी है दो दिन बाद तुम इसे घर ले जा सकते हो ,आज पैसे कम होने के कारण दीनू भूखा ही सोया ,पर उसे इस बात से बड़ा सुकून था कि बेटा अब स्वस्थ है।

अगले दिन की दवा व फल लेने के बाद दीनू के जेब में सिर्फ बीस रुपए बचे, आज डॉक्टर के आने पर दीनू ने रामू को घर ले जाने की अनुमति मांगी,पर डॉक्टर ने एक दिन और रुकने को कहा पर रामू अब पूर्णता स्वस्थ था ,इसलिए ज्यादा कहने पर आखिरकार डॉक्टर ने भी अनुमति दे दी।

शाम को दीनू अपने गांव पहुंच गया,तो जयंती ने बेटे को गले से लगा लिया, रात में सभी खाना खाकर सो गए,दीनू पिछले चार दिनों के बाद आज चैन कि नींद ले पाया।अगली सुबह दीनू ने जयंती से कहा फसल कटने को रह गई थी वो काटने जा रहा हूं ,बेटे का खयाल रखना,तब जयंती बोली फसल तो मालिक ने मजदूरों से अगले ही दिन कटवा दी थी,मुझे ऐसा लोगो ने बताया।

दीनू ने कहा तो मालिक के घर जा रहा हूं ,उनका सुक्रिया भी तो करना है उन्होंने हमारी बुरे वक्त पर मदद कि है,और मालिक के घर की ओर चल पड़ा,मालिक के घर पहुंचकर मालिक का मदद के लिए आभार जताया,तो मालिक(कमलू) ने कहा गेहूं की फसल को काटने को रह गई थी मैने मजदूरों से कटवा दी है उसमे तीन मजदूर लगे ।

दो तीन दिनों में फसल की गहाई हो गई और फसल कमलू के घर आ गई ,आज दो हफ्ते बीत गए फसल का कोई हिसाब ना हुआ दीनू रोज कमलू के घर जाता पर इस विषय में के ना पाता,आखिरकार एक महीना होने पर जयंती ने जोर देना सुरु किया की हिसाब किताब क्यों नहीं करते फसल का,पैसे की जरूरत है किराने वालो की भी तो उधारी चुकानी है।

तब जाकर कमलू ने आज हिम्मत करके कमलू से अनाज बांटने की बात कही कमलू बोला हां क्यों नहीं पहले हम हिसाब बना लेते है और हिसाब बनाना सुरु किया, बीमारी के समय दिए दो सौ रुपए और बीच बीच में जरूरत पड़ने पर घर चलाने के लिए, लिए गए पैसे इन सब पर भारी ब्याज लगाया गया ,कमलू ने जो दीनू के खेत में मजदूर लगाए थे उनकी मजदूरी भी दीनू के खाते में जोड़ी गई।

अब गेहूं का हिसाब बना तो तीन बोरी गेहूं दीनू पहले ही खाने के लिए ले चुका था जब काम सुरु किया था,फिर बीज काटा गया फिर हिसाब बना तो दीनू के खाते में सिर्फ सात बोरी गेहूं आया,उस समय गेहूं का भाव एक या दो रुपए किलो रहता था ,कर्ज के पैसे चुकने अभी बाकी थे,को की ब्याज लगाकर पांच सौ हो चुके थे।

कमलू ने दीनू से कहा यदि वो कर्ज चुकाने में असमर्थ है तो कोई बात नहीं जब पैसे हो जाय तब दे दे।और अपनी फसल ले जाना चाहता हो तो आज ही ले जाए ,दीनू ने कुछ नहीं कहा और घर आ गया,दीनू ने सारी बात जयंती को बताई ,दोनों चिता में डूब गए ,ये क्या हुआ जहा से हमे कमाई की आशा थी वहा उलटकर कर्ज हो गया,जयंती ने कमलू की नाइंसाफी पर बहुत मुह चलाया।

पर दीनू ने समझाया कि कुछ भी हो पर कमलू की वजह से ही आज हमारे बेटे कि जान बची है,और रही बात कर्ज की तो वो में इस साल काम करके चुका दूंगा। फिर दीनू अपने हिस्से का गेहूं शाम को घर ले आया क्योंकि साल भर खाने की भी तो व्यवस्था करनी थी ,कुछ राशन वालो के उधार चुकाने में चला गया।

दीनू ने भले ही कमलू से कुछ नहीं कहा लेकिन अंदर ही अंदर कमलू पर गुस्सा उसे भी आता,और खुद में ही बड़बड़ाता रहता की मालिक ने ये सही नहीं किया ये मेरे खून पसीने की कमाई थी,यही कहते हुए एक दिन रामू ने सुन लिया और रामू पूंछ बैठा बापू ये खून पसीने की कमाई क्या होती है?दीनू ने कहा बेटा जिसको कमाने की मेहनत में खून और पसीना दोनों लग जाए वो कमाई खून पसीने की कमाई होती है।

रामू अभी छोटा था उसने तत्काल दूसरा सवाल पूंछा बापू पसीना तो समझ आया लेकिन इसमें खून कहा लगा?दीनू ने कहा जब तू बड़ा हो जाएगा तब तुझे सब समझ आ जाएगा ।

आगे भाग 2