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राशिफ़ल(अंतिम भाग)

हम सोचते सोचते शाहगंज के चौराहे पर आ पहुँचे थे।चौराहे पर आकर लाइन लगाकर खड़े रिक्शो पर हमने नज़र डाली थी।हम आज ऐसे रिक्शे में बैठना चाहते थे।जिसको चलाने वाला बीच की उम्र का हो। यानी न जवान हो,न बूढ़ा हो।हमे मालूम था,जवान रिक्शा चालक बहुत तेज़ रिक्शा चलाते थे।वह जल्दी से जल्दी नियत स्थान पर पहुचने के चक्कर मे कभी कभी किसी सवारी से टकरा जाते थे।ज्यादा उम्र का रिक्शेवाला बड़ी मुश्किल से हांफता हुआ मंज़िल तक पहुंच पाता था।बूढ़ा आदमी रिक्शा धीरे चलाता था,लेकिन टक्कर हो जाने पर रिक्शा नही सम्हाल सकता था।ज्यादा उम्र होने के कारण उसके हाथ ब्रेक को काबू मे नही रख पाते थे।जिसके कारण छोटी सी दुर्घटना भी भयंकर बन जाती थी।
चौराहे पर खड़े रिक्शों में से हमने अधेड़ उम्र के एक रिक्शेवाले को ढूंढ लिया था।हमने ऐसे आदमी को ढूंढा था,जो हमारी हिदायते भी मानता जाए।हमने रिक्शे में बैठने से पहले ही धीरे चलने की हिदायत रिक्शेवाले को दे दी थी।हमारे बेठते ही रिक्शेवाला चल पड़ा ।जब भी रिक्शेवाला तेज़ चलने का प्रयास करता।हम उसे डाट देते।हमारी फटकार सुनकर वह रिक्शा धीरे चलाने लगता।
ऑफिस के आधे रास्ते मे हम बिल्कुल सकुशल आ पहुंचे थे।पंचकुइया से सीधे हाथ पर चलकर रिक्शा सुभाष पार्क आ पहुंचा था।सुभाष पार्क पर बांये रास्ता भगवान टॉकीज को जाता है।दांयी तरफ का रास्ता किले की तरफ जाता है।हमारा रिक्शा दांयी तरफ घूमकर एम जी रोड पर आ गया था।
यंहा से हमारी असली यात्रा शुरू होनी थी।होने को तो यह शहर का मुख्य मार्ग था।लेकिन काफी कम चौड़ा था।इस सड़क पर ट्रक,बस,जीप,स्कूटर के साथ तांगे, बैलगाड़ी आदि वाहनों का आवागमन भी खूब रहता था।जब भी कोई वाहन तेज़ गति से रिक्शे के पास से गुजरता।हम मन ही मन बजरंगबली का नाम लेने लगते थे।नाई की मंडी चौराहे पर आकर रिक्शा आगरा फोर्ट के लिए जाने वाली सड़क पर आ गया था।रिक्शा धीरे धीरे आगे की तरफ बढ़ रहा था।हम सुरक्षित घटिया मामू भांजे तक आ पहुंचे थे।मन ही मन मे हम भगवान के नाम की माला जप रहे थे।
घटिया मामू भांजा से मस्जिद तक ढलान पड़ता है।ढलान पर सम्हल कर चलना पड़ता है।हमने ढलान पर रिक्शेवाले को सावधानी से चलने की हिदायत दे दी थी।ज्यो ज्यो हमारी मंज़िल पास आती जा रही थी।उदासी के बादल छटते जा रहे थे।राशिफ़ल झूठा पड़ने की संभावना देखकर हम मन ही मन खुश हो रहे थे।
न जाने हम अपने मे खोये मन मे क्या क्या सोच रहे थे।तभी ज़ोर से ब्रेक लगने की आवाज ने हमे चोंका दिया।हड़बड़ाकर हमने सामने देखा।सामने से तेज गति से आती जीप से बचाने के प्रयास में रिक्शा बिजली के खम्भे से जा टकराया था।हम रिक्शे से उतरते या छलांग लगाकर कूदते,इससे पहले ही रिक्शा पलट गया।हम बीच सड़क पर आ गिरे और हमारे ऊपर रिक्शा।हम जोर जोर से,"बचाओ बचाओ " की आवाजें। लगाने लगे।
"सुबह सुबह क्या उधम मचा रखा है। उठते देर हुई भी नही की हुड दंग चालू"।
पत्नी की करकस आवाज हमारे कानों में पड़ते ही हमारी आंखे खुल गई।हमने चारों तरफ देखा,तो हम चोंक पड़े।हम बीच कमरे में फर्श पर पड़े थे।और हमारे ऊपर खाट

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