The Author प्रवीण बसोतिया फॉलो Current Read प्रेम - दर्द की खाई (भाग-2) By प्रवीण बसोतिया हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books शोहरत का घमंड - 103 घर खाली देख कर आलिया बहुत ही परेशान हो जाती हैं। वो आस पास क... नफ़रत-ए-इश्क - 16 रायचंद हाऊसरायचंद हाऊस में आज यशवर्धन रायचंद के दिल का टुकड़... शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 34 "शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -३४)NGO की हेड ज्योति... प्रेम और युद्ध - 6 अध्याय 6: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत... 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बहुत अकेली महसूस करती थी। मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब भी मेरी कोई सहेली बनती और वो कुछ समय पश्चात मुझसे दूर हो जाती। मैंने अपने दिल के अंदर कुछ ऐसे दर्द दफन कर रखे थे जो मुझे अंदर से खत्म कर रहे थे। मैं अपनी हर परेशानी अपने पिता जी से नहीं बता सकती थी। मेरी ये तकलीफें खूब खत्म होगी ,मेरी भगवान से हर दिन ये ही बात हुआ करती थी। मगर भगवान तो जैसे सच में पत्थर के ही थे उन्हें मेरी तकलीफें जैसे सुनाई ही नहीं देती। मैंने स्वयं को हीन भावना से ग्रस्त कर लिया। जिसके दुष्प्रभाव ने मुझे मानसिक रोगी बना दिया। मेरा पूरा दिन व्यर्थ की बातों को सोच कर ही गुजर जाता। मुझे अकेले में बातें करने की आदत पड़ गई। पापा ने मुझ में ये बदलाव देखे और वो चिंता करने लगे। एक दिन जब मैं घर और चूल्हे पर रोटी बना रही थी और नीचे आग जल रही थी अचानक से जलती लकड़ी मेरी हाथ पर लग गयी ।और मेरे हाथ पर एक जख्म बन गया। उसके लगने के बाद मैं बहुत रोने लगी । मुझे बहुत जलन होने लगी। दर्द इतना अधिक था । मैं सह नहीं पा रही थी। मैंने स्वयं को चुप कराने के बहुत प्रयत्न किए। मैं आ9ने अपने आप को बेबस और लाचार महसूस कर रही थी। पापा भी सायंकाल में घर आयेंगे। तब तक दर्द से मेरे प्राण न निकल जाए ।मैं यही सोच रही थी। उस दिन मेरा दर्द दोगुना हो गया था। मैं स्वयं को बहुत अकेला महसूस कर रही थी ।आखिर मैं करती भी कहा मैं सिर्फ पंद्रह वर्ष की ही थी। ऐसे दर्द मुझे बहुत बार सहना पड़ता था। सायंकाल हो गया ।पापा के लौटने के वक़्त आ गया था। मेरे हाथ में अभी भी हो दर्द हो रहा था । मगर जलन कम थी। मैंने पापा के लिए खाना बनाना की बहुत कोशिश की मगर नहीं बना पा रही थी। कुछ घंटे बीत जाने के बाद पापा घर लौट आये और मैंने उनको देखते ही जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। पापा मेरी तरफ देखते ही साईकल को छोड़ देते हैं और भागते हुए मुझे मेरी तरफ आते हैं वो डरे हुए मुझसे पूछते हैं क्या हुआ मेरी बच्ची क्यों रो रही हो। मैं दूसरे हाथ से अपने आँसू साफ करते हुए । उत्तर देती हूं । पापा,, जब मैं खाना बना रही थी तब जल्दी हुई लड़की लग गई। पापा बोले चुप हो जाओ मेरी प्यारी बच्ची हम अभी डॉक्टर के पास चलते है। तू जल्द ही ठीक हो जाएगी। थोड़ी दी पश्चात हम डॉक्टर के पास पहुंच गए डॉक्टर ने कहा वंदना घबराओ मत बेटी अभी तुम्हें अच्छी सी दवाई देता हूँ 3-4 दिन तक ठीक हो जाएगी मैंने डॉक्टर अंकल से पूछा अंकल कोई ऐसी दवा नहीं है जिससे जख्म आज ही ठीक हो जाये । दरअसल मुझे पापा के लिए खाना बनाना होता है पापा ने जब ये बात सुनी तो उनकी आंखें आँसू से भर गई। और वो उठ कर बहार चले गए। डॉक्टर अंकल बोले नहीं बेटी अभी तक ऐसी कोई दवा नहीं बनी ,चमड़ी आने में वक़्त तो लगता है। में उनकी बात सुनकर निराश हो गयी। मेरे दिमाग में एक ही घूम रही थी अब मैं पापा के लिए खाना कैसे बनाऊंगी। पापा मुझे कहते है जब तक ठीक नहीं हो जाती तब तक तुम कोई भी काम नहीं करोगी मैं उनको कहती हूँ पापा मुझे आप से भोजन बनवाना अच्छा नहीं लगता । पापा बोले जब तू छोटी थी तब भी मैं भोजन बनाता था। । मैं कहती हूं पापा उस वक़्त में छोटी सी बच्ची थी पापा मुसकरा कर बोले अभी भी तू मेरे लिए तो वही छोटी बच्ची है। नाराज होते हुए मैं कहती हूँ नहीं पापा मैं अब छोटी बच्ची नहीं हूं। अब मैं बड़ी हो गयी हूँ।वो ये बात सुनकर है हँसने लगते है पापा के दिल में माँ के जाने का दुख है वो कभी मुझे इस बारे में नहीं बताते ।वो बहुत कम मुस्कराते है मुझे बहुत अच्छा लगता है पापा अपनी तरफ से मेरे लिए कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने देते । वो मुझे बहुत अच्छे से जानते हैं क्योंकि मैं उनकी बेटी हूं वो मेरी हर परेशानी को कुछ क्षण में ही समझ जाते है ।मेरी कोई भी सहेली नहीं ये बात भी उनको पता थी। एक दिन पापा ने मुझे कहा वन्दू तुम्हारी कोई भी सहेली नहीं है मैंने कहा है पापा ,वो बोले पक्की वाली सहेली ,कच्ची वाली नहीं मैंने कहा नहीं पापा मेरा सबसे अच्छा मित्र कोई भी नहीं है वो कहने लगे ,मित्र होना न होना ये सब नसीब की बात है मैंने पूछा ,पापा क्या मेरा नसीब ठीक नहीं है।वो मुझे समझाते हुए बोले। अभी तू छोटी है और तेरी सहेली भी छोटी है शायद उसको मित्रता का अहसास न हो, अगर उसे भी सच्ची मित्रता का अहसास हो जाये ।तो वो तुम्हारी घनिष्ठ मित्र बन सकती। मैंने संकोच करते हुए पूछा, पापा वो तो मुझसे अच्छे ढंग से बात भी नहीं करती ,पापा बोले ,अभी तो तूने कहा वो तेरी मित्र है। मैंने कहा ,पापा वो माया की सबसे अच्छी मित्र हैं मेरी नहीं। पापा बोले तू। भी कोई ऐसी सहेली देखो जो तुम्हारी तरह हो। जिसका तुम्हारी तरह कोई मित्र न हो। मैंने थोड़ा सोचा फिर मैंने कहा पापा ,ऐसी एक लड़की है पापा बोले फिर तो तुम्हारा उसी के साथ मित्रता करना सबसे उचित होगा। मैं बोलती हुँ। पर पापा वो किसी से बात नहीं करती। पापा, कुछ भी हो सकता हैं ।उसे मित्र बनाना तुम्हारे लिए एक चुनौती हैं। पापा, देखो मेरी बच्ची इंसान के पास कुछ ऐसा होता है जो वो हर किसी के साथ नहीं बाँट सकते उस लड़की के पास भी शायद ऐसा कुछ हो। तुम कल से उसके उसके बैठना शुरू कर दो। मैंने पापा की बात मान ली और अगले दिन से ही हिमानी के साथ बैठना शुरू कर दिया।वो बहुत प्यारी हैं। पता नहीं वो उदास क्यों रहती है मैंने हिम्मत करके उसे कहा हिमानी हम दोस्त बन सकते है क्या। उसने कुछ भी जवाब दिया । गुस्से से मेरी तरफ देखती हुई । चली गयी। मैं जानती थी वो गुस्सा पूरी तरह से बनावटी है। ये बात उसकी आँखों का दर्द बयान करता था। मैंने उसे फिर से बोला । मैंने पापा की बात को ध्यान में रख कर । हिमानी को 5 बार दोस्ती के लिए पूछा मगर पाँचवीं बार उसने मुझे पूरी क्लास में बुरा भला बोल दिया । जाते हुए बोलने लगी ।देखो वंदना अगर त चाहती हो ।मैं स्कूल में रहूं ।तो आज के बाद मुझसे बात करने की कोशिश भी मत करना। मैं उसकी बातों से घबराकर बोली तुम ये स्कूल मत छोड़ना आज के बाद मैं तुमसे बात कभी नहीं करूँगी। मगर मैं जानती हूँ। तुम बहुत अच्छी लड़की हो । मेरी आँखों मैं आँसू भर गए। वो ये देख कर बहुत हुई और बिना कुछ बोले चली गयी। अगले दिन जब हिमानी स्कूल आई तो मैंने देखा । उसके हाथ में चोट लगी है और चेहरे से लग रहा है वो बहुत रोई है उसी दिन विज्ञान वाले टीचर ने ग्रह कार्य देखना था मुझे लगा शायद हिमानी ने अपना कार्य नहीं किया होगा । जैसे ही प्रेयर के लिए घंटी लगी सभी बहार चले गए। मैं क्लास में ही रुक गयी मैंने बहुत तेजी से हिमानी का बैग देखना शुरू किया उसकी नोट बुक देखी। उसने अपना काम अधूरा किया हुआ था। मैं समझ गयी उसके हाथ पर चोट लगी है तभी वो काम न कर पाई। मैंने अपने बैग से अपनी नोट बुक निकाली और नाम मिटा कर उसका नाम लिख दिया और उस की नोट बुक अपने बैग में डाल ली । जब विज्ञान के टीचर क्लास में दाखिल हुए ।मेरे होश उड़ गए। उनके हाथ में एक मजबूत डंडा था। मुझे डर लगने लगा था और वे बहुत सख्त थे। मुझे ये मालूम था ।आज मैं उनकी मार से नहीं बच सकती। सब की नोट बुक देखने के बाद हिमानी की बारी थी। वो भी बच गयी। उसने मेरी तरफ देखा। अब मेरी बार थी। टीचर ने देखना शुरू किया। और पूछा तुम्हारा काम पूरा क्यों नहीं है। मैं कुछ नहीं बोली ।और फिर टीचर ने दुबारा तो सिर्फ इतना ही कहा हाथ आगे करो। मैंने हाथ आगे करते ही लगातार मुझे डंडे लगे। हिमानी चुप थी अगर वो कुछ बोलती तो टीचर मुझे हर ज्यादा मारते। आधा समय में वो मेरी और भागी हुई आई। आंखों मैं प्यार चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था तुम पागल हो पीटने का कोई शौक है तुम्हें बताओ। मैं हकलाहट में बोली। तुम्हारे हाथ पर चोट लगी थी जो मैंने देख ली थी मुझे लगा शायद तुमने गृह कार्य नहीं किया होगा। और मुझे लगा। और वो पूरी बात सुने ही मुझे डांटे जा रही थी। उसने कहा तुमने मेरे लिए मार क्यों खाई। जब मैंने तुम्हें कितनी बार बोला हम दोस्त है ।ये बोलते हुए उसकी आंखें भर आयी। मैंने उसे प्यार से उत्तर दिया । और कहा कि मैं तुम्हें दोस्त मानती हूं। और मुझे जो अच्छा लगा मैंने वो किया। और अगर वो डंडे तुम्हें लगते तो मुझे बहुत ज्यादा दुख होता फिर शायद मैं खुद शर्मिंदा महसूस करती ।फिर वो बहुत रोने लगी। और रोते एक बात बोल रही थी। मुझे दोस्ती नही करनी। तुम समझ क्यों नहीं रही हो। और वो नीचे जमीन पर बैठ गयी। मैंने उसे चुप कराया। और पूछा क्या हुआ तुम इतना क्यों। रो रही हो। वो कहने लगी मेरे लिए आज तक किसी ने ऐसा नहीं सोचा । मगर तुम पागलपन में कुछ ज्यादा ही महान हो। ।मैंने कहा। कुछ भी समझो। अगर तुम्हें दोस्ती नहीं करनी तो मत करो आज के बाद मैं तुम्हें कभी भी परेशान नहीं करूंगी। और मैं उठ कर जाने लगी। और फिर उसने कहा। अगर तुमने मुझे बताये एक भी दिन का अवकाश लिया। तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी। मैं खुश हुई। और उस दिन से हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। और हम दोनों की दोस्ती इतनी ज्यादा गहरी हो गयी। क्लास की बाकी लड़कियां भी हमारी दोस्ती से जलने लगी। हम दोनों बहुत खुश रहती। साथ-साथ खेलना। जैसे हम दोनों की खुशियां एक दूसरे से जुड़ी हुई थी। मगर कभी-कभी हिमानी उदास हो जाती थी। मैं पूछती मगर वो टाल देती। मुझे उसकी उदासी बहुत परेशानी करती थी। उसका दर्द मुझे अपना लगता था। ऐसा लगता थ जैसे उसने अपने दिल में कोई राज़ दफन किया हुआ हैं मगर मैंने बहुत बार पूछा मगर उसने कभी नही बताया। स्कूल के बाद भी हम साथ समय बिताने लगे थे। मैं उसे अपने घर ले आती ।फिर हम साथ खेलते। गुड़िया रानी की शादी करते। और मैं उसे कहती एक दिन तेरी भी शादी होगी और तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी। वो कहती हम मैं शादी करूंगी मैं भी उसे कहती । मैंने भी यही सोच रखा है। पापा को अकेला नहीं छोड़ना चाहती कभी। हम दोनों जब भी साथ होते सारे गम भूल जाए करते थे । हमें ऐसा लगता जैसे हमें कोई दुख है ही नहीं। वो हमेशा मुझे हँसती हंसाती रहती । मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हे थे वो। किसी भी खुशी की अवधि होती है। ये बात मैं भूल गयी। थी मुझे नहीं पता था । मेरे वो दुख मुझे दोगुने होकर मिलने वाले हैं। एक बार हिमानी स्कूल नहीं आई। मेरा वो दिन कैसे गुजरा । उस दिन मुझे उसकी कमी का अंदाज़ा हो गया था। फिर अगले दिन भी वो नहीं आयी। मुझे चिंता सताने लगी थी। अब तो जैसे मुझसे रुका नहीं गया क्योंकि वो मुझे बिना बताए ।अवकाश नहीं ले सकती थी। ये हम दोनों ने नियम बना रखा था। मैंने लड़कियों से उसके घर का पता पूछा। तो एक लड़की ने बताया। मैंने सोच लिया । मैं छुट्टी के बाद उसके घर जाऊंगी। और मैं पते पर पहुंची। दरवाज़ा खुला था । उसके बाद मैंने जो देखा। वो देख कर मेरी तो सांस ही रुक गयी। उसके पापा उसकी मां को बेरहमी के साथ पिट रहे थे। हिमानी अपने पापा के सामने गिड़गिड़ा रही थी। हिमानी को भी उसके पापा ने बहुत पीटा था। उसका चेहरा लाल दिखाई दे रहा था। मैं ये सब देख नहीं पा रही थी। मैं समझ भी नही पा रहीं थी । आखिर क्या करूँ। मैं कुछ कर नहीं पाई। और वहाँ से चुपचाप चली आयी। रोये जा रही थी। मुझे हिमानी का चेहरा दिखाई दे रहा था। मैं उस दृश्य को सोने दिमाग से नहीं निकाल पा रही थी। आखिर कोई इंसान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। कई दिन और बीत गए। हिमानी स्कूल नहीं आ रही थी। मैंने उसके घर दुबारा जाने का निर्णय लिया। मैं ऐसे समय पर हिमानी के घर गयी जब उसके पापा घर नहीं थे। मैंने उसके घर देखा हिमानी घर के काम में पूरी तरह व्यस्त है। और उसकी माँ आराम कर रही थी। मैंने हिमानी को आवाज लगाई। और वो मुझे देखकर रोने लगी। और कहने लगी पापा आने वाले है। तू चली जा मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ। मैंने उसे कहा तू मुझसे मिलने घर आयेगी क्या। वो कहने लगी। ठीक है। मैं कोशिश करूंगी। मैंने हिमानी का दो दिन तक इंतजार किया। मगर वो नहीं आई। तीसरे दिन वो एकदम सुबह ही घर आ गयी। आते ही वो मेरे गले लग कर रोने लगी। मैंने उसे अपनी कसम दी ।और कहा देख मुझसे कोई झूठ नहीं बोलना। सीधे -सीधे मुझे पूरी बात बता। क्या हुआ। फिर उसने बताना शुरू किया। मेरी माँ और मैं उस घर में बहुत परेशान है। वो आदमी बहुत निर्दयी है। बिना किसी कसूर के ही मेरी माँ को मारता है। मैंने उसे कहा तू हरे पापा ऐसे क्यों है।वो रोते हुए गुस्से में बोली वो मेरे पापा नहीं है। मेरे असली पापा बहुत अच्छे थे। और वो इंसान तो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं है। मेरी माँ और मेरे पापा ने प्रेम विवाह किया था । जिसमें उनकी हेल्प विनोद ने की मतलब मेरे नकली बाप ने। पापा जब दादा जी के पास गए तो दादा जी ने उन्हें घर से निकाल दिया। विनोद ने पापा के दोस्त होने के नाते अपना घर रहने को दे दिया। कुछ साल सब ठीक था पर एक दिन पापा की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। विनोद ने भी अपना असली रूप दिखा दिया। वो मां को कहने लगा। तुम अब अपनी बच्ची को लेकर न सकती हो। मगर मां मुझे कहा लेकर जाती। सब जगह रास्ते बंद थे। उस वक़्त में सिर्फ आठ साल की थी माँ ने कहा ।मैं काम करके आवक रूम भाड़ा देती जमा करती रहूंगी। फिर उसने शर्त रखी अगर वो उससे शादी कर ले तो उसे कहीं भी जाने की कोई जरूरत नहीं है माँ को उसकी नियत पर शक हो गया। मगर माँ आखिर जाती भी कहाँ। माँ ने बहुत सोचा मगर वो मेरे लिए झुक गयी। और इंसान से शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। शादी के कुछ महीने बाद ही उस इंसान माँ के साथ जानवरों जैसे बर्ताव करना शुरू कर दिया। माँ चुप चाप सहन करती रही। उस इंसान ने एक दूसरी औरत के साथ भी रिश्ता रखा है।माँ जब उस औरत को छोड़ने की बात करती हैं तो वो हैवान माँ को मारने लगता है। मेरी माँ ने मेरे लिए अपनी पूरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। हमने बहुत सहन कर लिया है। अब नहीं होता अब मैं और मेरी माँ ने दूर जाने का फैसला किया हैं। मैं तुमसे आखिर बार मिलने आई हूँ। अब हम उस हैवान के साथ नहीं रहेंगे। माँ की हालत बहुत खराब है उसकी बातों से मुझे भी रोना आ गया। मुझे लगता था जैसे मेरे पास ही दुख है मगर उसके दुखों के सामने मेरा दुख कुछ भी नहीं था। मैंने उसे कहा कभी-कभी मुझसे मिलने तो आएगी ना। उसने रोते हुए जवाब दिया। नहीं। मैं उसके दुख पर बहुत रो रही थी मगर साथ- साथ मैं अपने दिल को समझा रही थी हिमानी मुझसे मील बिना रह नहीं पाती वो जरूर मुझसे मिलने आया करेगी। आज दिन उसकी याद में गुजर गया अगले दिन जब मैं स्कूल गई सब लड़कियां मेरी तरफ देखकर बात कर रहे थे मैंने पूछा क्या हुआ सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे है। तब एक लड़की ने जवाब दिया क्या तुम नहीं जानती अपनी2 सबसे अच्छी दोस्त की खबर। मैं घबरा कर पूछा आखिर बात क्या है वो कहने लगी। तुम्हारी सबसे अच्छी दोस्त और उसकी माँ ने आत्मा हत्या कर ली है। उसकी बात सुनकर जैसे मेरी सांस ही अटक गई मैं बेहोश होकर गिर गई। लड़कियां ने मुझे पानी डालकर उठाया ।और उसके बाद मैं बहुत जोर -जोर से लगीं। हिमानी और उसकी माँ ने उस हैवान की वजह से अपनी जिंदगी खत्म कर की थी। मैं सोचने लगी आखिर ईश्वर कमजोर लोगों को इतनी तकलीफ क्यों देता है हिमानी के चले जाने के बाद मेरी खुशी मुझसे हमेशा के लिए दूर हो गयी। और एक उदास लड़की ने जन्म ले लिया था। वो मैं थी। मैंने फिर कभी किसी लड़की को अपना दोस्त नहीं बनाया। हिमानी जिन बातों से मुझे हँसाती थी वो बातें अब मुझे रुलाने लगी थी। मैं हँसना भूल चुकी थी। दसवीं क्लास का पूरा वर्ष मैंने उदास और अकेला रहकर निकाल दिया। हिमानी को याद करके रोती थी मेरा दिल जैसे अब मेरे पास था ही नहीं वो कहीं घूम हो गया था खोना किसे कहते है ये मैं जान चुकी थी। पापा ने मुझे बहुत बार समझाया। 2 वर्ष बीत गए ।अब मेरी स्कूल की पढ़ाई खत्म हो गयी थी मुझे अब कालेज में दाखिला लेना था। एक शाम जब में खाना बनाने की तैयारी में लगी हुई थी तब पापा आये और वो बहुत खुश दिख रहे थे। मैंने उनकी खुशी की वजह पूछी। वो बोले ये खुशी तेरे लिए है मैंने बोला पापा आप देर ना करो। और जल्दी बता दो। उन्होंने ने कहा हिमानी और उसकी माँ हत्यारे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है पापा की बात सुनकर मैं बहुत खुशी हुई। और कहने लगे ।उसके साथ एक औरत भी गिरफ्तार हुई। आज तीन वर्ष बाद मेरे दिल और मेरी आत्मा को सुकून मिला। अब मैं कुछ सामान्य होने लगी । मैं इतना ज़रूर जानती थी । हिमानी मेरी यादों से कभी नही जा सकती ।उसका और मेरा रिश्ता बहन से भी अच्छा था। मुझे न जाने क्यों उसके होने का एहसास होता है शायद उसकी यादों की परछाई मेरी ज़िंदगी पर छा रखी है। मैं नही जानती। कुछ दिन पहले उसका जन्म दिन था।वो कहती थी ।मैंने कभी अपना जन्म दिन मनाया। उसका और मेरा न जाने कैसा रिश्ता था।उसका दर्द मुझे महसूस होता था और उसका दर्द मुझे।मगर अगर मैं इन यादों मैं रही तो शायद पापा के सपनो को कभी पूरा न कर सकूं। जो मेरे साथ नही है उसके दुख को साथ लेकर चलूंगी तो कभी अपनी मंजिल नहीं पा सकती अब मुझ मजबूत होना पड़ेगा। मैंने स्कूल पास कर लिया है।अब मुझे एक कालेज में दाखिला लेना है ‹ पिछला प्रकरणप्रेम - दर्द की खाई (भाग -1) › अगला प्रकरण प्रेम - दर्द की खाई (अध्याय 3) Download Our App