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अधूरी मन्नते

आपकी पठन रुचि को ध्यान में रखते हुए, आपके समक्ष प्रस्तुत है एक नवीन, रोचक, समाज के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराती एक प्रेम गाथा '' अधूरी मन्नते " यह कहानी काल्पनिक तो है लेकिन, जीवन मे घटने वाली घटनाओ से काफी जुड़ी हुई है,, कहानी कई भागों में आयेगी,, शुरू से अंत तक पढ़े फिर किसी निर्यण पर पहुँचे,
अधूरी मन्नते, ......
ये कहानी, निर्मोहनी दास " मन्नत " जो आज के माहौल में पली बढ़ी ,,,खुल कर जीने ,वाली,, निडर, मगर अपनी हदों को बखूबी ,,जानती है , अपने कल्चर को भलीभांति समझती है,, मन्नत के पिता रिटायर्ड मेजर मोहंतो दास शहर के सम्मानित स्वभिमानी व्यक्ति है,,,,,,,,
आरम्भ😊
कहानी मन्नत के घर से ,,,शुरू होती है,,,,
काला आसमान, धीरे धीरे अपना काला मुँह समेट रहा है,, और साथ ही साथ,, तारो की बारात भी ओझल होती जा रही,,हैं,,शान्त माहौल में ठंडी हवाओ, का चलना और हवाओ के साथ बहती हुई चिड़ियों ,,कोयलो की मधुर,,,आवाज़े कानो में रस घोल रही है,,,, ,कही बादलों के झुण्ड में ,,,एक नन्ही किरण बड़ी होने को मचल रही है,,,शायद काले आसमान पर हावी होना चाहती है,,,,,बादलों के भीतर से फूटती किरणे ऐसी प्रतीत होती जैसे कोई सुनहरा ताज पहने हुए है,, पक्षी,,, उसी के आव भगत के गीत गुनगुना रहे है,,, एक ऐसा गीत जो प्रेरणादायक है, किरण को सूरज बनने को प्रोत्साहित कर रहा है,,, ,,, ,,, सूरज की किरणें धीरे धीरे ,,अंधकारमय संसार की ओर, अपने कदम बढ़ा रही है,,,,,पेड़ों से छन,,,कर ,,,घास पे लिपटी हुई ओस की बूंदों को मोती बना रही है,, बहती नदियों झीलों के पानी से टकराकर प्रतिबिम्ब बना रही है, तो कही,,,, खिड़कियों के रंग बिरंगे कांच को चीरती हुई ,,,,,बन्द दरवाज़ों के सुरागों से गुज़रती हुई,,,,, घरो,,,मकानों ,,,, में जा रही है,,,,,,,,सुरागों से आती किरणे धूल के नन्हे कणों से टकराकर एक रूप धारण कर रही है, एक बड़ा मकान 6-7 कमरों वाला , गेट से एंटर होते ही ,,छोटा सा पार्किंग यार्ड,, और बड़ा सा गार्डन,,मकान ,, तीन मंजिला बना है, जिनमे दो कमरे ,, जिनकी बालकोनी,,बाहर गार्डन की तरफ खुलती है,,,दोनों ही कमरे तला ऊपर बने है,,, उनमे से एक कमरे की खिड़की में आती तेज़ सूरज की किरणे,,,मन्नत के चहरे पर पड़ रही है,,,, जिससे उसका सोता चेहरा और भी मासूम,,, लग रहा है,,, मन्नत,,,,24 साल की नाज़ुक,, बदन हसीन चेहरा,,, नीली ऑंखे,, जिनमे अनगिनत ख़्वाब,,कैद है,,,, ,,पर ,,किस्मत की इतनी बुलन्द नही है,,,,,,, सूरज की तेज रोशनी की चुभन से बेचैन होकर ,, ऑंखे मसलते हुए इधर उधर देखती है,,, फिर झटके से खिड़की पे टंगे पर्दे को खिंचकर करवट बदलकर फिर सो जाती है,,, अभी मन्नत की आँख ढंग से लगी भी नही के ,,,,अलार्म बजने लगता है,,,अलार्म तो अपना काम पाबंदी से कर रहा है,,और उसको बनाने वाला इंसान ना जाने कौन सी ग़फ़लत में गुम है,,,,,,, अलार्म की आवाज़ से मन्नत उठती नही बल्कि हाथ बढ़ाकर अलार्म ही बन्द कर देती ,,, और फिर सोने लगती है,,,, ,,, लगभग 5 मिनट बाद मोबाइल पर रिंग होती है,,, " ले जाये जाने कहाँ हवाए, हवाए, ले जाए तुझे कहाँ हवाए, हवाए, बेगानी है ये डाली हवाए, हवाए, ले जाये मुझे कहाँ हवाए हवाए, ले जाये जाने कहा ना मुझको खबर ना तुझको पता,,,होओ,,,ओ,, होओ,,ओ,," ,,("जब हैरी मेट सेजल" फ़िल्म का गाना ,, ' हवाए ' जो रिंग ट्यून में लगा हुआ है) कॉल कट हो जाती है,,1 मिनट बाद फिर रिंग होती है,,,"फिर काल कट हो जाती है,,इस तरह 4 बार रिंग होती और हर बार कट हो जाती है, अब तो मन्नत की नींद भी भाग चुकी है,,,है मन्नत , बड़बड़ाती हुई उठती है, " उफ्फ कौन है??? सुबह सुबह बार-बार कॉल करके मेरी नींद खराब कर दी,,, "इतने में फिर से रिंग होती है " मन्नत की आँखों मे अभी भी नींद भरी हुई है,,, वो नबंर देखे बिना गुस्से में कॉल रिसीव करते हुए कहती है ", हेलो" अरे बाबा कौन हो सुबह सुबह कॉल पे कॉल किये जा रहे हो,,, कोनसी आफत आन पड़ी है,,, दूसरी तरफ से जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती ,, है,,, अरे,,, मैं हूँ श्रेया,,,( श्रेया, मन्नत की बेस्ट फ्रेंड ,, एक दूसरे से हर बात शेयर करती है,,, सुख दुख में एक दूजे का साथ देती है,,,) तू अभी तक सो रही तुझे याद है ना ,,,??? हमे आज जाना है,,,,,,तुझे पता है मैं कितनी देर से कॉल कर रही हूँ ??? " मन्नत हैरान होते हुए कहती है" ओह्ह,,,, श्रेया तू है!! ये किस का नंबर है?? ,और कहाँ चलना है हमे,,,,??,,, अरे,,आज फार्म सबमिट करने की लास्ट डेट है,,,और ऑफिस सिर्फ 12'O clock तक ही open रहेगा।,,,,,,तूने ही तो बोला था मुझे कॉल करके याद दिला देना।,,,!!,, अब तू लेट मत कर ठीक 10 बजे ,,, रेडी मिल मैं तुझे पिक कर लूंगी,,,इतना कहकर श्रेया कॉल कट कर देती है,,,। लास्ट डेट सुनकर मन्नत के होश उड़ जाते है,,,, वो अपना सर् पिटते हुए खुद से कहती है ,"🤔 मैं भी कितनी बड़ी बेवकूफ है इतनी important बात कैसे भूल ,,,गई।,,,," मन्नत तेज़ी के साथ अपना कमरा सही करके बाहर जाने को होती है,,,तभी कोई उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाता है,,,, ,,जिसकी आहट से मन्नत मन ही मन कहती है,,," लो आ गई मुसीबत ",,,
समाप्त।


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