कोरा निशान - 1 Pandit Devanand Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कोरा निशान - 1

आज नीरज के नये स्कुल का पहला दिन था उन्नाव से पिता जी का ट्रांसफर कानपूर हो जाने से दोस्त मोहल्ला पुराना स्कुल सब पीछे छुट गया था नये स्कुल में मुस्किल से बारहवी में दाखिला हुआ था स्कूल का पहला दिन होने के कारण नीरज उत्साहित तो था पर संकोची स्वभाव होने के कारण थोडा डर भी लग रहा था पुराने स्कुल और वहां के दोस्तों की याद में खोये नीरज की तन्द्रा तेज बजती घन्टी ने भंग कर दिया क्लास का पहला पीरियड था टीचर ने उपस्थिति ली और बच्चो को नीरज से परिचित कराया ‘बच्चो ये हैं नीरज आपके नए सहपाठी’ सभी एकसाथ नीरज को देखने लगे नीरज ने भी मुस्करा कर एक बार टीचर को और फिर पूरी क्लास को देखा सभी उसी को देख रहे थे सिर्फ एक को छोड़ कर सबसे आगे की सीट पर गुलाबी पेन से कागज पर लिखने में मशगुल वो लड़की तो जैसे दुनिया से बेखबर अपनी ही धुन में थी, इंटरवल हुआ पूरी क्लास नीरज को घेर के बैठ गयी कोई उसे अपना नाम बता रहा तो कोई उसे स्कुल के टीचर और खडूस प्रिंसिपल के बारे में नीरज ने उडती नजर लडकियों की सीट की तरफ डाली वो गुलाबी पेन वाली अब भी अकेली किनारे बैठ के सर झुकाए टिफिन कर रही थी पूरी क्लास में लड़के लड़कियां अलग अलग झुण्ड बना कर बैठे थे वो ही एक अकेली सबसे अलग थी नीरज समझ गया जरुर ये घमंडी और नकचढ़ी होगी तभी इसकी किसी से नहीं बनती होगी पूरा दिन नीरज का नये दोस्तों से मिलने में टीचर को समझने में बीत गया छुट्टी की घंटी बजी सभी अपना अपना बैग उठा कर बाहर की और दौड़ पड़े नीरज के साथ क्लास का सबसे मजकिया लड़का रवि चल रहा था रवि कानपूर का ही था और नीरज के कालोनी में उसका भी घर था नीरज ने बातो बातो में रवि से पूछ लिया ‘यार वो लड़की जो आगे बैठी थी अकेली गुलाबी पेन वाली वो इतनी नकचढ़ी क्यों हैं किसी से बात ही नही करती रवि ने उसके तरफ देखा और जोर से हसा ‘’कौन वो सुमन अरे वो तो बोल ही नही सकती हैं जन्म से ही गूंगी हैं बेचारी ,ओह धक्का सा लगा नीरज को और मैं उसके बारे में कितना गलत सोच रहा था कल स्कुल पहुचते ही उससे मिलूँगा दोस्ती करूँगा तब तक रवि ने आगे कहा ‘वो प्रिंसिपल की बेटी हैं उसकी मम्मी रंजीता अग्रवाल ही तो अपने स्कुल की प्रिंसिपल हैं सुमन के पापा सेना में थे 6 साल पहले कारगिल की लड़ाई में शहीद हो गए थे पर यार ये खडूस प्रिसिपल किसी मेजर से कम नही हैं पूरे स्कूल में इनके नाम का खौफ है तू भी जरा उनसे बच के रहना ....इधर नीरज तो किसी और ही दुनिया मे था उसके आंखों के सामने बस सुमन का खामोश चेहरा और पिंक वाली पेन ही घूम रही थी अब तो नीरज बस कल का इंतजार कर रहा था की कितनी जल्दी सुबह हो और वो स्कुल जा कर सुमन से मिले.....
क्रमशः ...........
(आप सभी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में शीघ्र ही कहानी का अगला भाग)