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इंतज़ार

ओह सात बज गए। वो आ गये होंगे तो फिर सुबह ख़राब होगी। रचना ब्रश किये बगैर ही किचन मे चली गई। आलाप मॉर्निंग वॉक करने जाते वहां से आने के बाद गरम पानी में शहद डालकर पीता। रचना ने गरम पानी टेबल पर रखा और शहद की बोटल, चमच और खाली ग्लास भी रखा फिर खुद ब्रश करने चली गई। नित्यक्रम निपटाकर आई पर अबतक आलाप आये न थे। आज क्यों देर हुई होगी? वो सोचने लगी। फोन कर के देखूँ? उसने मोबाइल हाथ में लिया। नहीं नहीं गुस्सा करेंगे सोचकर वापस टेबल पर रख दिया। चलो नास्ता ही बना लूं। सोचकर वो किचन की ओर बढ़ी। इतनी देर हो गई है अभी थोड़े ही शहद और गरम पानी पीयेंगे। वो तो चाय नास्ता ही मांगेंगे। किचन में जाते जाते रचना अकेले अकेले ही बड़बड़ाई। फिरभी वो सब तो टेबल पर ही रहने दिया।

उनको कीस वजह से गुस्सा आ जाये वो शादी के 30 साल बाद भी समज नहीं पाई थी रचना। सारी चीजे सही वक्त और सही जगह पर ही चाहिए उनको। ऐसा न करने पर पूरा घर उलट पलट हो जाता। पहले अलमारी में से कपडे बहार आयेंगे, फिर बर्तन फेंके जाते, पूरा दिन वो सब सही करने में ही चला जाता। अगर उस का सामना करते कुछ बोल दिया तो रचना की खुद की बारी आ जाती। एक सामान की तरह ही...... इसलिए वो कभी ऐसा मोका आलाप को देना नहीं चाहती थी। फिर भी कुछ न कुछ गलती तो हो ही जाती। पर शादी के एक साल बाद उसने आलाप को कपड़ो से आगे बढ़ने नहीं दिया। वो कभी भी आलाप को सामने जवाब नहीं देती थी।

आलाप को गुस्सा न आये इस लिए आज वो बहुत ध्यान से काम कर रही थी।

रचना को चाय की तलब लगी थी। सुबह की चाय दोनों साथ ही पीते थे।सुबह सुबह आलाप का मूड अच्छा होता था। चाय की सारी तैयारियां कर ली और नास्ता भी बन गया।पर अभी भी आलाप नहीं आया था।अब तक क्यों नहीं आये होंगे? क्यों देर लग गई? रचना सोच सोच के परेशान हो गई।

सुबह के ९ बज गए। अब तो फोन करना ही पड़ेगा। फोन उठाकर नंबर डायल किया। सामने से जवाब आया, 'ये नंबर अस्तित्व में नहीं है।' रचना ने फिर से फोन लगाया। वही जवाब। ऐसा कैसे हो सकता है। वो सोचने लगी। स्मिताको फोन लगाऊँ? नहीं नहीं सुबह सुबह उसे परेशान क्या करना? सास ससुर की सेवा मे अगर बाधा आएगी तो सास इतना कुछ सुनाएगी की बेटी का जीना दुशवार हो जायेगा। अपनी बेटी को खुद के कारन कोई तकलीफ हो ऐसा वो नहीं चाहती थी। आ जायेंगे छोटे बच्चे थोड़े ही है। उसके होठों पर हलकी सी मुस्कान आ गई।

तो क्या वोक पर से सीधे ही किसीको मिलने चले गए होंगे? वैसे तो नहीं नहीं नहाये बिना तो किसी से मिलना उन्हें पसंद नहीं था। फिर भी शायद मूड आ गया हो। उनके मूड के बारे में वो आज भी कहाँ जान सकी है।

चलो मैं तो चाय पी लू। चाय का एक घूंट पिटे ही मुह बिगड़ गया। उनके बिना चाय भी बेस्वाद सी लग रही है। जैसे तैसे चाय पी ली, और बाथरूम में चली गई। नहाये बिना खाना बने वो आलाप को बिलकुल पसंद नहीं था। नहाते ही रचना की नजर वॉशबेसिन पर पड़ी। उनके दाढ़ी का सामान रखना भूल गई थी। अच्छा हुआ पहेले देख लिया वरना....

पर बेसिन के उपरका केबिनेट खोलते ही एक धक्का सा लगा। वहां शेविंग का कोई सामान नहीं था । न तो ब्रश, न साबुन न रेज़र कुछभी नहीं। कोन ले गया होगा ? जल्दी जल्दी बाजार से ले आती हूँ। सोचकर रचना पासवाली दुकान पर गई। सामान माँगा ।

"किसके लिए चाहिए आँटी ?" वैसे तो ये दुकानवाला उस के बेटे जैसा था पर रचना को आज उस पर गुस्सा आया । अभी तक खाना बनाना बाकी है और ये दुकान वाले को....

"तुजे क्या करना है ? तू सामान देना ।" रचना का गुस्सा देखकर उसने चुपचाप से सामान दे दिया। घर आकर सारा सामान सही जगह रख दिया। फिर किचन में जाकर खाना बनाने लगी।

खाना भी बन गया। स्वीट, नमकीन, सलाड, पापड़,... सब बन गया। आलाप को खाने में पुरी डीश चाहिए वो रचना जानती थी। पर अभीतक वो क्यों नहीं आये? उसने फिर घडी की ओर देखा एक बज गया था। बहुत देर हो गई थी। रचनाने फिर आलाप को फोन लगाया। वही मेसेज 'ये नंबर अस्तित्व में नहीं है।' अब तो स्मिता फ्री हो गई होगी। उसी को फोन लगाती हूँ।

" हेलो स्मिता,"

"हाँ मम्मी...."

"तेरे पापा अभी तक घर नहीं आये। सुबह वोक लेने गए थे। अब तक नहीं आये।"

"मम्मी.."

"और देखो न उनके शेविंग का सामान ही कोई ले गया था । पता नहीं कौन। बाजार से दूसरा सामान ले कर आई। उन के बिना चाय भी फीकी लगती है।.."

"अरे, पर...."

"उनका इंतज़ार करते करते खाना भी बन गया। "

"अरे मम्मी, सुनो तो.."

"और तुम्हे पता है, उनको फोन लगाती हूँ तो मेसेज आता है, ये नंबर अभी बंध है। ऐसा कैसे हो सकता है ?"

"मम्मी तुम..."

"तुम बोल क्यों नहीं रही हो। मुझे चिंता हो रही है।"

"तुम सुनती.... "

"सुबह पांच बजे जाते है। साढे छ सात बजे तक तो आ ही जाते हैं। आज तो एक बज गया। अभी तक क्यों नहीं आये होंगे? " एक ही साँस में स्मिता को बोलने का मौका दिए बगैर रचना बोल गई ।

"अरे माँ, मेरी बात तो सुनो। आप क्यों नहीं मान रही, पापा को गुज़रे तीन महीने हो गए।"


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