हनुवा की पत्नी - 6 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हनुवा की पत्नी - 6

हनुवा की पत्नी

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 6

लेटते-लेटते ही वह बोली ‘हनुवा नाएला जी के साथ जितना और जैसा तुम्हारा जीवन बीता वह अपने आप में एक इनक्रेडेबल लाइफ हिस्ट्री है। ऐसी हिस्ट्री जिसे जान कर लगता है कि जैसे किसी ग्रेट स्टोरी राइटर ने बहुत रिसर्च करके, बड़ी मेहनत से लिखी है। सच कहूं अगर तुम्हारी इस लाइफ पर एक रियलिस्टक फ़िल्म बनाई जाए तो वह सुपर हिट होगी। लोग देखने के लिए टूट पड़ेंगे। फ़िल्म पूरी दुनिया में तहलका मचा देगी। लेकिन इसे इंग्लिश में बनाया जाए। और फ़िल्म का डायरेक्टर मीरा नायर, दीपा मेहता जैसी सोच का हो। तुम्हारे इस कैरेक्टर को हॉलीवुड एक्ट्रेस हेल बेरी ही सबसे सही ढंग से निभा पाएगी। अं...नहीं शर्लिन चोपड़ा या वैसी ही कोई। ऐसे लोग ही तुम्हारी इस स्पेशल लाइफ हिस्ट्री के साथ सही ट्रीटमेंट कर पाएंगे। नैरोमाइंडेड या कूपमंडूक टाइप के लोग या परंपरावादी लोग इसे समझ ही नहीं पाएंगे। क्यों, मैं सही कह रही हूं हनुवा।’

सांभवी की बात सुन कर हनुवा ने जो अब तक अपनी जांघों पर रखे उसके सिर को सहला रही थी उसके गालों पर हल्की सी प्यार भरी चपत लगाते हुए कहा ‘अरे कैसी फ्रेंड हो यार? मैं लोगों से खुद को बचाती-छिपाती आ रही हूं, और तुम हो कि मुझे पूरी दुनिया के ही सामने एक दम नेकेड कर देना चाहती हो।’

‘हां हनुवा मैं तुम्हें पूरी दुनिया के सामने नेकेड कर देना चाहती हूं। और तुम्हारी टीचर नायला केा भी। क्यों कि मैं समझती हूं कि तुम्हारी स्थिति में खुद को छिपाने से अच्छा है खुद को एक्सपोज कर देना। अरे हम क्यों छिप कर, घुट-घुट कर जिएं। दुनिया मुझे, मेरी ही हालत में ऐसे ही एक्सेप्ट करती है तो करे, नहीं करती है तो ना करे। अगर उसे हमारी परवाह नहीं तो हमें भी उसकी परवाह नहीं। समाज और हम दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों में से किसी एक को छोड़ कर सिक्का खोटा ही रहेगा। खरा नहीं।

इसलिए हम क्यों छिपते फिरें। और सुनो, तुम अभी कह रही थी ना कि नाएला चिंता, हायपर सेक्सुअलटी के कारण उम्र से पहले ही खोखली बुढ़ी हो गईं, तो तुम इसे खुद पर भी लागू करो। क्यों कि ये अच्छे से समझ लो कि इस तरह तुम खुद को खुद में कैद कर नाएला से भी ज़्यादा तेज़ी से खोखली बुढ़ी हो जाओगी। और तब तुममें नाएला में सिर्फ़ इतना ही फ़र्क होगा कि बुढ़ी, खोखली, कमजोर नाएला के पीछे सिवाय तुम्हारे और कोई नहीं है। और तुम्हारे पीछे परिवार होगा बस।

लेकिन परिवार भी आजकल किसका कितने दिन साथ देता है। इसलिए अपने को पिंजड़े से बाहर निकालो। पिंजड़े के सारे दरवाजे नहीं उसकी सारी दिवारें गिरा दो। उसके अंदर फड़फड़ाने तड़पने की जरूरत नहीं है हनुवा। खुद को मारो नहीं जिंदा करो और ज़िदगी जियो।’

सांभवी ने जिस जोरदार ढंग से अपनी बात कही उससे हनुवा भीतर तक सहम गई, हिल गई। सही तो कह रही है यह, मैं खोखली हो रही हूं। नाएला की तरह नष्ट हो रही हूं। नाएला के पीछे तो मैं हूं लेकिन मेरे! सच में तो मेरे पीछे कोई नहीं है। वह सांभवी के सिर को सहलाते हुए कुछ देर उसे देखती रही फिर पूछा ‘सांभवी तुम मुझे दुनिया के सामने क्यों एक्सपोज करना चाहती हो यह तो बता दिया लेकिन मेरी टीचर ,मेरी मेंटर नायला जी को क्यों करना चाहती हो?’

‘हनुवा शुरू में तो नायला जी पर मुझे बड़ी गुस्सा आ रही थी। उनसे बड़ी नफरत हो रही थी कि यह कैसी लिजलिजे कैरेक्टर की गंदी औरत है। लेकिन सारी बातें सुनने के बाद लगा कि नायला जी या उनके जैसी कोई भी औरत घृणा के लिये नहीं है। ऐसी सभी लेडी का तो हम सब को, पूरे समाज को सपोर्ट करना चाहिये। हम उनसे घृणा करके उन्हें उस गलती की सजा देते हैं जो उन्होंने की ही नहीं। तुम्हीं सोचो यदि नायला जी के हसबेंड उनकी सास ने उनके साथ धोखाधड़ी नहीं की होती, शादी के बाद उन्हें याातना ना दी होती, उनका जाहिल हसबेंड उन्हें बड़े बड़े बच्चों के सामने पीटता नहीं तो नायला जी इतनी हर्ट नहीं होतीं। ना ही अपनी नैचुरल डिजायर के लिये तुम्हें यूज करतीं।

आखिर वो भी एक इंसान हैं। नेचर ने उन्हें भी इमोशंस दिये हैं। फीलिंग्स दी हैं। उन्हें भी सपने देखने, पूरे करने का हक़ है। ये इनह्यूमन है कि उनका हसबैंड जो चाहे करे। और नायला जी क्यों कि औरत हैं इसलिये कुछ नहीं कर सकतीं सिवाय इसके कि हसबेंड जो कहे उसे गुलामों की तरह करतीं रहें। इसलिये हनुवा मैं तुम्हारी नायला जी को पूरा सपोर्ट करती हूं कि उन्होंने कम से कम इतनी हिम्मत की कि अपनी नेचुरल डिजायर को पूरा करने के लिये क़दम तो बढ़ाये। भले ही तुम्हारे माध्यम से। लेकिन उनकी इस हिम्मत से पिस तुम गयी।

उन्होंने अपनी ही मासूम छात्रा का शोषण कर डाला। असल में उनके क़दम यहीं पर भटक गये। मुझे पूरा यकीन है कि ऐसा उन्होंने केवल इसीलिए किया होगा जिससे उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े। खोखले जड़वादी लोगों के तानों का सामना न करना पड़े। तुम्हारे साथ क्योंकि ऐसा कोई डर नहीं था और जो उन्हें चाहिए था वह सब मिल रहा था। हनुवा मैं नाएला जी को सैल्यूट करती यदि वो हसबैंड की ज्यादतियों के खिलाफ संघर्ष करतीं।

अपना हक़ लेकर रहतीं। उन्हें धोखाधड़ी, घरेलू हिंसा की सजा दिला कर रहतीं। लेकिन वो हिम्मत नहीं कर सकीं। संयोग से तुम अपनी खास स्थिति के साथ उनके सामने पड़ गई। और उन्होंने अपनी एक छोटी सी इच्छा बस किसी तरह पूरी कर ली। लेकिन इसके बावजूद मैं उनसे मिलना, बात करना चाहती हूं। जब भी तुम जाओगी, मैं चलूंगी तुम्हारे साथ उनसे मिलने। ले चलोगी ना?

‘हां जरूर ले चलूंगी। सांभवी तू कितनी अच्छी है । कितनी हिम्मत वाली है। इतना कह कर हनुवा उसे स्नेह भरी नजरों से देखने लगी तो सांभवी बोली-

‘हनुवा मैं कुछ ज़्यादा तो नहीं बोल गई?’ मेरी बातों से अगर तुम्हें दुख हुआ हो तो सॉरी यार। मैं तुम्हें दुखी नहीं देख सकती।’ सांभवी ने यह कहते हुए बड़े प्यार से हनुवा का हाथ थाम लिया। हनुवा ने भी उसी सहजता से जवाब दिया-

‘अरे नहीं। मैं तुमसे फिर कहतीं हूं कि कभी यह मत सोचा करो कि मैं तुमसे नाराज होऊंगी। तुमने जिस सच का एकदम से सामना करा दिया उससे मैं एकदम सकते में आ गई। सांभवी सच तो यह है ही कि नाएला जी के पीछे मैं हूं। अगर उनको देखभाल की जरूरत पड़ी तो मैं अपना कॅरियर भी यहीं खत्म कर, उनकी सेवा के लिए उनके पास चली जाऊंगी। लेकिन तुमने मेरे परिवार की जो बात की वह थोड़ा नहीं बिल्कुल अलग है। मैं केवल एक बात बताने जा रही हूं, उसी से तुम्हें अंदाजा हो जाएगा कि मेरा परिवार कितना मेरा है। वो मुझे अपना हिस्सा मानता भी है कि नहीं।’

‘अरे, ये क्या कह रही हो?’

‘सुनो तो अभी पिछले ही महीने मेरी दोनों बहनों की एंगेजमेंट हुई। हनुवा वाली मौसी ही ने अपने पट्टीदार के दोनों लड़कों से शादी तय करवाई हैे। दोनों भाई जुड़वा हैं। उनके मां-बाप एक ही साथ दोनों की शादी करना चाहते थे। मौसी ने बात पक्की करा दी। शादी जनवरी में होनी है। लेकिन मुझे बताया तक नहीं गया। एक दिन मैं नाएला जी से बात कर रही थी तो उन्होंने कहा ‘‘तुम हमेशा छुट्टी की प्रॉब्लम बताती हो। अभी से एप्लीकेशन देकर कम से कम हफ्ते भर की छुट्टी लेकर आना। नहीं तो तुम जल्दी से चल दोगी और मैं तुमसे ठीक से बात भी नहीं कर पाऊंगी।’’

उनसे यह सुनकर मुझे इतना शॉक लगा कि मैं सन्न रह गई। कि मेरी सगी छोटी बहनों की शादी है। एंगेजमेंट हो गई मुझे पता तक नहीं।

नाएला जी भी परिवार की सम्मानित सदस्य की तरह एंगेजमेंट में शामिल हुईं और मुझे बताना तक ठीक नहीं समझा गया। लेकिन घर की बात बाहर नहीं शेयर करना चाहती थी। तो नाएला जी को जाहिर नहीं होने दिया। उनसे जल्दी से बात खत्म कर घर मां को फा़ेन किया तो वो बोलीं ‘‘अरे, तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा। एकदम अचानक हुआ तो टाइम ही ना मिला बताने का।’’ जब मैंने गुस्से में और बात बढ़ाई कि दोनों बहनों, भाई किसी को दो मिनट टाइम नहीं मिला कि फोन करते। और मैंने इस बीच कई बार फ़ोन किया। तब भी तो तुम लोग एक शब्द नहीं बोले। आज हफ्ता भर हो गया तो भी टाइम नहीं मिला। मुझे घर की इतनी अहम बात बाहरी से पता चल रही है।

उन को लगा कि बात पकड़ गई है तो एकदम बिदक गईं। दुनिया भर की बातें सुनाते-सुनाते आखिर गुस्से में बोल गईं कि ‘‘क्या करती आकर। दुनिया भर की बातें होतीं कि बड़ी के रहते छोटी की काहे हो रही है। तुम्हारे चक्कर में इन सबका भी शादी ब्याह ना हो पाएगा।’’ उनकी यह बात मुझे तीर सी बेधती चली गई। मैं रो पड़ी। मैंने रोते हुए कहा। ठीक कह रही हो अम्मा! मैं ही पागल हूं, मुझे खुद सोचना चाहिए था। ठीक है अम्मा तुम लोग परेशान ना हो, अब मैं शादी क्या बाद में भी नहीं आऊंगी। जिससे मेरी वजह से तुम लोग किसी परेशानी में ना पड़ो। मैं इससे आगे कुछ ना बोल सकी, रोती रही। और अम्मा ने झिड़कते हुए यह कह कर फोन काट दिया ‘‘अरे इसमें इतना रोने की क्या बात है। बेवजह अपशुगन कर रही हो।’’ उनकी इस बात ने तो मेरा शरीर ही छलनी कर डाला।

इसके बाद मैंने हफ्तों किसी को फोन नहीं किया। मगर फिर भी किसी का फ़ोन नहीं आया। आखिर फिर मन नहीं माना तो खुद ही कभी-कभी करने लगी। सब बेगानों की तरह ऊबते हुए बातें करते हैं। हाल-चाल की रस्म अदायगी तक बात होकर खत्म हो जाती है। पैसा जो होता है भेज देती हूं। उसके लिए अम्मा कभी कुछ नहीं कहतीं। तो सांभवी मेरी हालत तो नाएला जी से भी गई बीती है।

उनके साथ तो मैं हर हाल में रहूंगी। लेकिन मेरे साथ कोई नहीं होगा। मैं अकेले ही दिवारों से सिर टकराते-टकराते खत्म हो जाऊंगी। मेरा तो अंतिम संस्कार भी करने वाला कोई नहीं होगा। मैंने तो नाएला की तरह कोई ‘हनुवा’ नहीं तैयार की है। इतना कहते-कहते हनुवा फिर सिसक पड़ी तो सांभवी उठी, उसके आंसू पोंछती हुई बोली

‘तुमने ‘सांभवी’ तैयार की है हनुवा। तुम अकेली नहीं हो, मैं रहूंगी तुम्हारे साथ।’

‘तुम भी कब तक रह पाओगी? जल्दी ही तुम्हारी भी शादी हो जाएगी और तुम अपने पति के पास रहोगी।’

‘हां... सही कह रहे हो तुम। मैं अपने पति के ही पास रहूंगी।’

सांभवी का अपने लिए सही कह रहे हो तुम सेंटेंस हनुवा को कुछ खटका। लेकिन उसने कहा ‘फिर भी। आखिर मैं तो अकेली ही रही ना। कोई अपने पति को छोड़ कर किसी को समय दे पाया है क्या जो तुम दोगी? और मैं चाहूंगी भी नहीं कि तुम अपने पति का टाइम मुझ पर खर्च करो।’

‘हनुवा-हनुवा मेरे प्यारे हनुवा मैं यही तो कह रही हूं कि मैं अपने पति के पास ही रहूंगी। उसका एक क्षण भी किसी को नहीं दूंगी। मैं उसे जीवन की वो खुशियां दूंगी जो वो सोच भी नहीं पाया होगा।‘ सांभवी हनुवा के दोनों कंधों को पकड़े उसकी आंखों की गहराई में झांकती, उसके चेहरे के एकदम करीब जा कर कह रही थी। और हनुवा उसे एकदम खाली-खाली नजरों से देखे जा रही थी। तो सांभवी ने उसे हल्के से झिझोड़ते हुए कहा

‘ओह तुम कितने इनोसेंट हो। तुम ही मेरे पति हो समझे। तुम ही मेरे पति हो।’ कुछ तेज़ आवाज़ में कहते-कहते सांभवी उससे एकदम चिपट गई। हनुवा कुछ देर एकदम हक्का-बक्का सी रह गई। फिर दोनों हाथों से पकड़ कर उसे अलग करती हुई बोली ‘तुम्हें क्या हो गया है? होश में तो हो। जानती हो क्या कह रही हो?‘

‘अच्छी तरह जानती हूं हनुवा। महीनों सोचने-समझने के बाद मैंने यह डिसीजन काफी पहले ही ले लिया था। मैंने तुम्हें काफी पहले ही अपना पति मान लिया है। हनुवा तुम मेरे पति हो। मेरे पति। मैं आखिरी सांस तक साथ रहूंगी। अपने पति के साथ रहूंगी। मुझे परिवार, दुनिया किसी की परवाह नहीं। सिर्फ़ तुम्हारी और अपनी परवाह है। इसके अलावा मैं और कुछ नहीं जानती।’ सांभवी फिर चिपट गई हनुवा के साथ। भावुकता में उसके आंसू भी निकलते जा रहे थे। हनुवा ने उसे इस बार अपने से अलग करने के बजाय प्यार से बांहों में भर लिया। उसकी पीठ को सहलाती हुई बोली-

‘मेरी सांभवी तुम मन में इतना बड़ा भुचाल लिए इतने दिनों से मेरे साथ हो और मुझे भनक तक ना लगने दी। नहीं तो मैं कुछ तो तुम्हें समझाती कि यह तुम गलत क़दम उठा रही हो। तुम मेरे साथ कहां खुश रह पाओगी? यह सब एक एबनार्मल रिलेशनशिप है, जो ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। अंततः दुख ही दुख है इस जीवन में। मैं तुम को इतना आगे बढ़ने ही ना देती कि तुम्हें क़दम खींचना मुश्किल होता।’

हनुवा समझाती रही। लेकिन सांभवी कुछ ना समझी। वह वाकई इतना आगे बढ़ चुकी थी कि पीछे जाने को कौन कहे सोच भी नहीं सकती थी। दोनों में सारी रात बहस हुई। अंततः सवेरा होते-होते सांभवी जीत गई। आगे जीवन का पूरा रोड मैप भी फाइनल हो गया, कि ठीक दीपावली के दिन दोनों घर में उन्हीं भगवान राम के समक्ष शादी करेंगे। जो विजय के जश्न में हज़ारों साल पहले थर्ड जेंडर का ध्यान नहीं रख सके। सबको कहके यह भूल गए कि यह लोग भी आराम करें। साक्षी,मां-बाप, भगवान सब वहीं होंगे, वही आशीर्वाद देंगे। और अगले महीने नौकरी ज्वाइन कर दोनों पति-पत्नी कहीं दूसरी जगह रहने चले जाएंगे। अपनी इस दुनिया में जीवन के इस पल में किसी को साझीदार नहीं बनाएंगे।

अगले दिन दो चार घंटे सोने के बाद दोनों ने पूरे घर की साफ-सफाई की। बाज़ार से पूजा के सामान के साथ-साथ दूल्हा-दुल्हन के कपड़े सिंदूर भी ले आए। ऐन दीपावली की रात भगवान राम को ही साक्षी बनाकर सांभवी हनुवा ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई । हनुवा ने सांभवी की मांग में सिंदूर भरा और दोनों ने एक दूसरे को अपना पति पत्नी मान लिया।

दोनों ने अपनी सुहाग सेज़ भी बड़ी खुबसूरती से अपने ही हाथों सजाई थी। गुलाब की पंखुड़ियों से महमह महकती सेज़ पर सांभवी लाल साड़ी पहने बैठी थी। और उसका पति हनुवा पीले रंग के वस्त्र पहने उसके समीप पहुंच रहा था। कि तभी नाएला ने फोन कर उससे दीपावली में भी ना आने की शिकायत करते हुए खूब बधाई, शुभकामनाएं दीं कि ‘‘तुम्हारा जीवन इन असंख्य दीयों की रोशनी की तरह जगमगाए। सदैव खुश रहो।‘‘

हनुवा भी उन्हें बधाई, धन्यवाद देकर अपनी दुल्हन के घूंघट को हटाने लगा। घर से कोई फ़ोन नहीं आया यह बात उसके मन में किसी पटाखे की तरह बड़ा सा विस्फोट कर समाप्त हो गई। वह सब कुछ भूल अपनी पत्नी का होता गया। लाख कानून के बावजूद किसी ने रात एक बजे भी पटाखों की लंबी चटाई के पलीते में आग दिखा दी थी। वह धड़ाम-धड़ाम कर दगती ही जा रहा थी। जैसे हनुवा, सांभवी को नए जीवन की बधाई दे रही हो। हनुवा ने नाएला जी से भी शादी की बात बिल्कुल नहीं बताई।

समाप्त