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जब वह मिला - 2

जब वह मिला

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 2

दबाव तब और बढ़ गया जब मेरे छोटे भाई जिसकी शादी मुझ से डेढ़ साल बाद हुई थी वह जल्दी-जल्दी दो बच्चों का पिता बन गया। बीवी अब हफ्ते में कम से कम दो बार तो यह डायलॉग बोल देती कि ‘बेटा पांच साल का हो गया है। अम्मा-बाबूजी की भी उमर अब सत्तर पार हो रही है। अगला बच्चा क्या बुढ़ापे में करोगे। अम्मा-बाबूजी के रहते हो जाएगा तो वो कितना खुश होंगे । अब दोनों लोग जीवन के ऐसे पड़ाव पर हैं कि कब तक साथ रहेंगे कुछ नहीं कहा जा सकता।’

इस बात ने मन में एक बार फिर यह उलझन पैदा कर दी कि सबकी खुशी की बात फिर आ खड़ी हुई है। कुछ महीनों में यह ज़्यादा गंभीर हो चुकी है। बीवी को छेड़ने के लिए मैंने कई बार कहा भी कि ‘यार तुम समझती क्यों नहीं। ज़्यादा बच्चे पैदा करोगी तो तुम्हारा फ़िगर खराब हो जाएगा।

अपना पेट देख रही हो पहले से कितना निकल आया है। कमर कमरा होती जा रही है। और ब्रेस्ट मध्यकाल के रीति कालीन कवियों की नायिकाओं के सुमेरू पर्वत से हो रहे हैं। उनकी साइज के तुम्हारे लिए आसानी से कपड़े भी मार्केट में नहीं मिलते, ढूढनें पड़ते हैं। एक्स एल साइज में भी तुम्हारे सुमेरू पर्वत फिट नहीं हो रहे हैं। लगता है किला तोड़ बाहर ही आ जाएंगे। और बच्चे पैदा करके पूरी पृथ्वी ही हिलाओगी क्या?’

इस पर वह कुछ देर आंखें तरेरती हुई देखती, फिर उसके होठों पर प्यार भरी मुस्कुराहट की एक बड़ी बारीक रेखा दिखाई देती और तब वह बड़े अंदाज में कहती ‘ऐसा है घड़ी-घड़ी नया ड्रामा मत किया करिए। कभी तो इनकी ऐसे तारीफ करोगे कि मानो मुझसे सुंदर कोई है ही नहीं। और जब बच्चे की बात करो तो वे सुमेरू पर्वत नज़र आने लगते हैं। अपनी पढ़ाई-लिखाई का इस तरह मिस यूज ना किया करिए। और खुद की बताइए मैं तो बच्चा पैदा कर के धरती हिलाऊ हो रही हूं। ये तुम्हारा पेट चौराहे के भन्गू हलवाई की तरह तिब्बत का पठार क्यों हो रहा है?’ ऐेसे ही तर्क-वितर्क देते-देते आखिर हम दोनों हंस पड़ते थे।

उस दिन रात को भी ऐसा ही हुआ था। तो मैंने कहा ‘देखो हंसी-मजाक अपनी जगह है। अम्मा-बाबूजी तो अपने जमाने, अपनी सोच के हिसाब से बात करेंगे। मगर हमें तो आज के हिसाब से देखना है ना। एक बच्चे को ही पढ़ाने-लिखाने में कितना खर्चं हो रहा है। अभी मनरीत फर्स्ट में है, कितना पैसा लग रहा है। आगे की पढ़ाई के लिए लाखों रुपए चाहिए। इस एक को इस कमाई में ठीक से लिखा-पढ़ा लूं यही बड़ी बात है। और पैदा कर लिए तो क्या करेंगे? बच्चों को अगर अच्छा भविष्य ना दे सके तो इससे बड़ा अपराध और कोई नहीं होगा।’

बच्चों के भविष्य को लेकर मेरी यह सारी चिंता, सारे तर्क मेरी सुमेरू पर्वत वाली बीवी ने हल्की मुस्कुराहट, रीति कालीन कवियों के शब्दों में मादक,मोहक मुस्कुराहट, चितवन के बाण से पलभर में एक किनारे कर दी। साफ कह दिया कि ‘देखो ये सब ठीक है। लेकिन ये बड़े बुजुर्ग, घर के बाकी छोटे यह सब लोग भी तो आज ही की दुनिया में जी रहे हैं। क्या वो लोग यह सब नहीं जानते-समझतेे? सब एक ही बात कह रहें हैं तो कोई तो मललब होगा ही ना उसके पीछे। फिर आप यह क्यों नहीं सोचते कि अम्मा-बाबूजी को कितनी खुशी मिलेगी।

भगवान की कृपा से उन्हांेने जीवन में जो चाहा उन्हें सब मिला। सारी खुशियां मिलीं। एक तरह से यह उनकी आखिरी इच्छा, खुशी जैसी बात है। क्या हम लोग अपने मां-बाप की आखिरी इच्छा नहीं पूरी कर सकते। आखिर में उनका रिकॉर्ड क्यों खराब करें कि उन्होंने जो चाहा उन्हें सब मिला लेकिन आखिर में बस एक इच्छा रह गई।’ सबकी खुशी के सरोवर में मेरी बात,मेरी इच्छा फिर कहीं डूब कर विलीन हो गई। मैं सुमेरू पर्वत के नीचे दब कर रह गया।

बीवी ने बताया कि उसकी मां-बहनें भी ना जाने कितनी बार यह सब कह चुकी हैं। अंततः फैसले पर अंतिम मोहर लग गई कि हम दोनों मनरीत जूनियर को भी इस दुनिया में जल्दी से जल्दी ले आएंगे। रही बात सुमेरू के हिमालय बनने की तो शहर में बॉडी अल्टर की क्लिीनिक्स खुल चुकी हैं। वहां भी हो आएंगे। इस फैसले के बाद बीवी खुशी से बहक रही थी। मैं भी कहीं कानों में खुशी की रुनझुन सुन रहा था।

अगले दिन तीसरे बड़े मंगल के अवसर पर मंदिर पहुंचना है। यह भी अगले दिन के कार्यक्रमों की लिस्ट में सबसे ऊपर लिख दिया गया था। इसीलिए घर से निकल कर हनुमान सेतु मंदिर हो कर फिर अपने तय रास्ते बंधे वाली रोड से होते हुए निशातगंज रोड की तरफ बाइक से चल पड़ा। उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा सड़क पर भीड़ बहुत ज़्यादा थी इसलिए ज़्यादा तेज़ नहीं चल पा रहा था।

कुछ देर बाद मैं निशातगंज रोड के पास पहुंचने ही वाला था कि देखा पुल से थोड़ा पहले बंधे पर और फिर नीचे उतर कर नदी की तरफ उसकी धारा से पहले तक सैकड़ों लोगों की भीड़ लगी थी। मैं भी ठिठक गया। मैंने अगल-बगल के लोगों से पूछा ‘क्या हुआ ?’ तो कई ने कहा ‘मालूम नहीं।’ और आगे बढ़ा तो पता चला कल एक प्रेमी युगल यहाँ कूद गया था। उन्हीं को ढूंढ़ा जा रहा है।

यह सुन कर मैंने बाइक किनारे खड़ी की। और बंधे से नीचे उतर गया। सुबह-सुबह अखबार में यह खबर मैं पढ़ चुका था कि एक प्रेमी जोडे़ ने गोमती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली है। लड़की की लाश तो दो घंटे बाद ही गोताखोरों की मदद से निकाल ली गई थी। लेकिन लड़के की डेड बॉडी का कुछ पता नहीं चल रहा था। मैं नीचे पहुंचा तो लड़के के बुजुर्ग मां-बाप उसका छोटा भाई, तीन बहनें और दो बहनोई सब धारा से कुछ पहले ही सारी उम्मीदों के बिखर जाने से आहत, भरी-भरी सूजी हुई आंखें लिए दिखाई दिए। मां दुपट्टे से अपना मुंह दबाए रोए जा रही थी। बीच-बीच में टूटती आवाज़ों में कहे जा रही थी ‘या अल्लाह रहम कर, मेरे बच्चे को बचा लो, मेरा बच्चा मुझे बख्स दो।’

मैं अपेक्षाकृत शांत खड़े उसके बहनोइयों के पास पहुंचा की उनसे तफसील से सब जान लूं। दरअसल किसी भी घटना की तह तक पहुंच कर उसकी सारी बातें जान लेने, रेशा-रेशा समझ लेने की मेरी आदत सी है। मैं अभी उनके पास पहुंचा ही था कि एक पुलिस वाले ने फिर से सबको डंडे से फटकारते हुए ऊपर जाने को कहा। एक मेरे पास भी पहुंचा और उखड़ते हुए बोला ‘अरे! चलिए ऊपर जाइए। आपको अलग से कहा जाएगा क्या?’ इस पर मैंने उसके करीब पहुँच कर अपना परिचय देते हुए कहा ‘मैं सूचना विभाग में हूं। मैं कुछ बातें जानना चाहता हूं। इस पर वह नम्र हुआ। और पूछने पर उसने पूरी घटना बताई कि ‘दोनों पुराने शहर के टुड़ियागंज के पास के एक मोहल्ले के हैं। कुछ साल पहले तक दोनों घरों में आना-जाना था। वहीं लड़का-लड़की करीब आए। इसको लेकर दोनों परिवार में झगड़ा शुरू हो गया। लाख बंदिशों के बावजूद दोनों मिल ही लेते थे। लड़की वाले काफी अच्छे बिजनेसमैन हैं, पैसे वाले हैं। लड़के वाले उसके सामने कुछ भी नहीं। दूसरे लड़की पढ़ी-लिखी थी। लड़का सातवीं-आठवीं पास था, किसी टेलर शॉप में टेलर था।

बंदिशें ज़्यादा हुईं तो पिछले महीने दोनों भाग गए। बरेली में जाकर निकाह कर लिया। हफ्ते भर बाद लौटे तो लड़के के परिवार ने दोनों को हाथों-हाथ लिया। मगर लड़की वाले पैसे के दम पर निकाह को अवैध ठहराते हुए पुलिस के पास पहुंच गए। लड़की को जबरदस्ती साथ लेते गए। लेकिन दोनों एक दूसरे के दिवाने थे। मौका मिलते ही भाग निकले। शहर छोड़ने की फिराक में थे। दोनों रेलवे स्टेशन पर भी देखे गए थे। मगर फिर पता नहीं क्या हुआ कि यहां आकर कूद गए।

लड़की की डेड बॉडी तो कल ही दो घंटे बाद मिल गई थी। पोस्टमार्टम के बाद आज उसके घर वालों को मिल जाएगी। मगर लड़के की अभी तक नहीं मिल पाई है। गोताखोर अंदर जा-जाकर खाली हाथ लौट रहे हैं।’ मैंने कहा ‘अब तक तो बॉडी फूल कर खुद ही ऊपर आ जाती।’ वह बोला ‘हां लेकिन हो सकता है इतनी ऊपर से कूदने पर नीचे किसी पत्थर-झाड़ी वगैरह में हाथ-पैर फंस गए हों।’ मैंने कहा ‘यह भी हो सकता है बॉडी आगे बह गई हो।’ इस पर वह कांस्टिेबिल बोला ‘हां यह भी हो सकता है।’

उसके लापरवाही भरे अंदाज से मैं जलभुन उठा। मैं वहां से तुरंत लड़के के मां-बाप के पास पहुंचा लेकिन उनका रोना, उनकी दयनीय हालत देख कर मैं अंदर तक कांप उठा। कुछ मिनट उन्हें देखता रहा फिर भारी मन से ऊपर चला आया। सड़क पर आने-जाने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। मैंने बाइक स्टार्ट की, ऑफ़िस चला आया। लेकिन काम में मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। नज़रों के सामने से लड़के के मां-बाप का चेहरा हट ही नहीं रहा था। मां रोते-रोते बार-बार अपने बेटे का नाम ले रही थी। ‘अरे! कोई मेरे लाल को ला दो। अरे! बेटा नाज़िम ये क्या कर डाला तूने। या अल्लाह। क्या हो गया था तुझे?’

उसकी मां की इस करूण हालत ने मुझे इतना परेशान कर दिया, कि कामधाम तो दूर की बात थी। मेरा ऑफ़िस में रुकना ही मुश्किल हो गया। बस जी करता कि तुरंत नाज़िम के घर वालों के पास पहुंच कर कैसे भी हो उनकी मदद करूं। नाज़िम की डेड बॉडी निकलवा लूं। उसके परिवार के सदस्यों की हालत देख कर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि आर्थिक रूप से वो बहुत कमजोर हैं। मेरी व्याकुलता इतनी बढ़ी कि लंच के बाद सीनियर से तबियत खराब होने की बात कह कर निकल लिया।

ए.टी.एम. से दस हज़ार रुपए निकाले कि नाज़िम के परिवार को दे दूंगा। उनकी कुछ तो मदद हो जाएगी। अभी डेड बॉडी का पोस्टमार्टम वगैरह होने का भी झंझट है। चलते समय मैंने यह भी तय कर लिया कि यदि डेड बॉडी अब तक मिल गई होगी और वो लोग घर चले गए होंगे तो फिर उनके घर जाऊंगा। बंधे पर जब पहुंचा तो देखा हालात जस के तस थे। तेज़ चिल-चिलाती धूप थी लेकिन रोड पर मंदिर जाने वालों का तांता जस का तस लगा हुआ था। नीचे नाज़िम के परिवार के पास गिने-चुने लोग थे। पुल की दीवार की छाया में नाज़िम का परिवार था। सब के चेहरे पर मायूसी दुख की गाढ़ी लकीरें थीं। मां वहीं एक कपड़े पर निश्चल लेटी हुई थी। मुझे लगा शायद कल से रोते, जागते रहने के कारण पस्त होकर निढाल हो गई है।

मैंने पास पहुंच कर उनकी लड़की से पूछा तो उसने कहा ‘कुछ देर पहले गश खाकर लुढ़क गईं थीं। तो लिटा दिया है। इतनी निढाल हो गई हैं कि बैठना मुश्किल हो गया है।’ उनकी बात सुनते ही मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया कि ‘हो सके तो इन्हें घर भिजवा दीजिए, गाड़ी की व्यवस्था मैं करवा देता हूं।’ उसने कहा ‘कोई फायदा नहीं, जाने को ही तैयार नहीं हैं। कहतीं हैं कि बेटा मिलेगा तभी जाऊंगी। नहीं तो यहीं मैं भी डूब जाऊंगी।’ यह सुन कर मैं एकदम परेशान हो उठा। मन जैसे एकदम छटपटा उठा कि इस दुखियारी मां के लिए ऐसा क्या कर दूं कि इसका बेटा मिल जाए।

उसके कराहने की आवाज़ मेरे कानों तक आ रही थी। इसी बीच उसके दामाद और परिवार के एक-दो और लोग मुझे वहां खड़ा देख कर आ गए तो मैं उनकी ओर मुखातिब हुआ और संक्षेप में अपना परिचय दे कर पूछा कि ‘ये गोताखोर क्या बता रहा है? दोनों एक ही जगह कूदे हैं, एक डेड बॉडी दो घंटे मिल गई। दूसरे में इतना वक़्त क्यों लगा रहा है?’ इस पर एक व्यक्ति जो पड़ोसी था उनका वह गोताखोरों और पुलिसवालों को गरियाते हुए बोला ‘साले जानबूझ कर नहीं निकाल रहे हैं।’

उसने लड़की पक्ष के लोगों को भी अपशब्द कहते हुए कहा कि ‘सालों ने इसको पैसा तौल दिया होगा, कह दिया होगा मत निकालना। यहां गरीबों की सुनने वाला कौन है?’ मुझे उसकी बात में कुछ दम नज़र आया। उसका गुस्सा जायज़ था। उसकी बात को सिरे से नकारा नहीं जा सकता था। आग बरसाती धूप, गर्म हवा के थपेड़ों ने मेरी परेशानी दो गुनी कर रखी थी। पसीने से लथपथ हो गया था। जानबूझ कर डेड बॉडी नहीं निकाल रहे हैं यह सुन कर मैं बड़ा खिन्न हो गया कि आखिर लोग इतने नीच, इतने गिरे हुए कैसे हो जाते हैं कि लाश को भी नहीं छोड़ते।

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