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बेईमान - परवेज़ इक़बाल की लघु कथाएं

लघुकथा-"बेईमान"
(परवेज़ इकबाल)
"ऊपर ताज़े पत्ते रख देते हैं और अंदर बासी ...इन बेइमान सब्जी वालों से तो भगवान ही बचाए" पालक के पत्ते छांटते हुवे सुधा बडबडाती जा रही थी ।
"अरे सुधा मेरे पर्स में पचास का एक फटा नोट रखा था वो कहाँ गया"? पर्स टटोलते रमेश की आवाज़ आई ।
"वो तो मेने शाम को सब्जी वाले को टिका दिया..अँधेरे में उसको समझ ही नही आई कील नोट जुड़ा हुवा है" सुधा अपनी सुझबुझ पर आत्ममुग्ध होते हुवे विजयी मुस्कान के साथ बोली ।
(परवेज़ इकबाल) 
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लघुकथा-"इंसानियत"
(परवेज़ इकबाल)
"अरी दुर्गा....अपने बच्चे को कुछ तो इंसानियत सिखा ....डॉगी की प्लेट से बिस्किट उठ कर खा रहा है...अभी से चोरी करना सीख गया तो बड़ा होकर डाकू बनेगा"
नौकरानी के तीन वर्षीय बेटे को डॉगी की प्लेट से बिस्किट उठा कर खाते देख मालकिन गरजी ।
(परवेज़ इकबाल) 
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लघुकथा-"तरीका"
(परवेज़ इकबाल)
"माँ जी क्रिसमस की छुट्टियाँ आ रहीं हैं..माँ की तबियत भी ठीक नहीं है...आप कहें तो दो चार दिन के लिए मायके हो आऊँ...थोड़ी माँ की मदद भी हो जाएगी"
सुनिधि ने डरते डरते अपनी सास से पूछा ।
"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया हे बहू...तुझे पता नहीं की पिंकी छुट्टियों में बच्चों के साथ आने वाली है...ननद मायके आये और भाभी मायके जा कर बैठे...ये कोई तरीका हुवा भला"- सास ने तुनक कर जवाब दिया और कमरे से बाहर हो गयी ।
(परवेज़ इकबाल) 
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लघुकथा-"कथनी और करनी"
(परवेज़ इकबाल)
"भय भूख और भ्रष्टाचार" को मुद्दा बना कर चुनाव लड़ रही पार्टी के मुखिया वातानुकूलित मंच से भाषण झाड़ रहे थे और चिलमिलाती धुप में पसीना पोंछते हुवे सोच में डूबा था की"काली वर्दीधारी दर्जन भर सुरक्षाकर्मियों से घिरे बुलेटप्रूफ कांच के पीछे खड़े इन नेताजी के आने पर इनके पट्ठों और पुलिस प्रशासन ने हफ्ता भर से किस तरह शहर को सर पर उठा रखा था...भाषण स्थल के आस पास सायकिल रिक्शा चला कर अपना पेट पलने वाले उस जैसे दर्जनों परिवार तो सुरक्षा के नाम पर रिक्शा चलाने पर लगी पाबंदी के चलते भूकों मरने की कगार पर आ गये थे ...और कल रात तो हद ही हो गयी जब मंच से "नशामुक्ति" का वादा कर रहे इन्हीं नेताजी के गुंडेनुमा पट्ठों ने पूरी बस्ती में शराब बाँट कर सबको इस रैली में आने का धमकी भरा न्यौता दिया" .....तभी तालियों की गड़गड़ाहट से उसका ध्यान भंग हुआ....नेताजी का भाषण खत्म हो चूका था ।
(परवेज़ इकबाल) 
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लघुकथा-"महंगाई"
(परवेज़ इकबाल)
"बेटा दो चार दिन से भूरी नही दिख रही,उसे खेत में बांध आता है क्या"? अपनी सबसे पुरानी सफेद गाय को मवेशियों के बीच न देख कर बूढी माँ ने पूछा ।
"अरे नही माँ ....वो बहुत बूढी हो गयी थी,न दूध देती थी न बच्चे....महंगाई में कब तक उसको चंदी-चारा खिलाता....इसलिए उसे नूर कसाई को बेच दिया मेने"
बेटे का जवाब  सुन कर बूढी माँ की आँखें भर आयीं ।
(परवेज़ इकबाल) 
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लघुकथा-"ऊर्जा"
(परवेज़ इकबाल)
"गाड़ी का ए.सी.बंद मत करना.. बहुत गर्मी है... एक बार गाड़ी गर्म हो जाये तो बहुत देर में ठंडी होती है.." कहते हुए "उर्जा बचाओ,देश बचाओ" का नारा देने वाले उर्जा विकास निगम के अध्यक्ष की धर्मपत्नी गाड़ी से उतर कर साड़ियों के शोरूम में दाखिल हो गयीं ।
(परवेज़ इकबाल) 

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