Swabhiman - Laghukatha - 44 books and stories free download online pdf in Hindi

स्वाभिमान - लघुकथा - 44

  • 'बुरा वक्त'
  • काफी देर से बिस्तर पर लेटे हुए वे दोनों गहन चिंता में डूबे हुए एकटक छत की ओर ताक रहे थे

    "सुनो जी !आपकी फैक्ट्री में हड़ताल कब तक चलेगी देखो ना तीन महीने हो गये पगार मिले हुए ऐसा ही चलता रहा तो भूखों मरने की नौबत जायेगी "सरोज ने डूबते से स्वर में वहाँ पसरी खामोशी को तोड़ते हुए अपने पति से पूछा

    "क्या कहा जा सकता है सरोज! खत्म हो जाए तो कल ही हो जाए ,वरना महीनों भी चल सकती है., यूनियन वाले झुकने को तैयार हैं, और ना ही कम्पनी वाले। एक गहरी सांस छोड़ते हुए रमेश ने जवाब दिया "

    "पर अब तो हमारे घर की सारी जमापूँजी भी खत्म होने को आई ,खाने के लिये भी कुछ नहीं बचा ,वह तो अच्छा हुआ कि हमने अनाज सीज़न पर ही खरीद कर रख लिया था वरना ....,

    बिजली का बिल और मकान का भाड़ा भी दो महिने का चढ़ गया है ।ऐसे कैसे काम चलेगा जी?

    " ये तो सच है, लेकिन तुम्हीं बताओ मैं क्या करूँ"निराश हताश रमेश ने सरोज पर ही सवाल डाल दिया

    "आप एक काम करो जी ! अपने किसी साथी या अपने भाइयों से ही कुछ उधार ले लो ,हम पगार मिलते ही चुका देंगे "

    " किसी के आगे दया की भीख मांग कर मैं अपनी ही नजरों से गिर कर जीते जी मर जाऊंगा सरोज। हमें दूध घी चाहियें., और ही साग- सब्जी, तुम सिर्फ चटनी -अचार से नमक की रोटी बना कर खिलाती रहो, उसी से गुजारा कर लेंगे हम ,लेकिन तुम किसी के सामने हाथ फैलाने को कहना " स्वाभिमानी रमेश बाबू भीतर तक आहत हो गये

    फिर कुछ देर सोच कर बोले " तू फिक्र मत कर ! मैं कुछ करता हूं ,वो चन्दर बता रहा था कि वो आजकल किराये पर ऑटो रिक्शा लेकर चलाता है ,मैं भी कल से वही चलाने लगूंगा।बुरा वक्त एक बुरे सपने की तरह गुजर जायेगा "

    प्रदत्त विषय स्वाभिमान के अन्तर्गत

    ***

  • खुली हवा
  • "मम्मी आप किचन में क्या कर रही है" संदेह की नजरों से देखते हुए मंजरी ने पूछा।

    "कुछ नहीं बहु बस तेरे ससुर जी के लिए चाय बना रही थी "

    "लेकिन उन्होंने अभी 2 घंटे पहले ही तो चाय पी थी ।अकड़ भरे स्वर में बहु ने कहा

    " हां! क्या है ना कि ऑफिस में क्लाइंट के साथ बार-बार चाय पीने से उन्हें अधिक चाय पीने की आदत हो गई है बेटा! "

    "हुंउः"!बहू बिना कुछ कहे, मुंह मटका कर चुपचाप किचन से निकल गई अभी लॉबी में पहुंची थी कि वहां फर्श पर मिट्टी के निशान देखकर उसका पारा एक बार फिर चढ़ गया " किस मूर्ख ने ये सारा फर्श गंदा किया है "

    टीवी देखते हुए ससुर ने धीरे सेअपने स्लीपर चैक किये और डरते डरते बोले " बहु मैं सुबह लॉन में टहलने गया था ना शायद ओस से घास गीली थी, मैने ध्यान नहीं दिया ! "

    देखना चाहिए था ना, जब से आये हैं घर का नर्क बना दिया है ! मंजरी बड़बड़ाती हुई आगे बढ़ गयी गुप्ता जी तिरस्कार का घूंट पी कर चुप ही रहे ।तभी उसका छोटा बेटा आर्यन दादा जी की गोद में बैठ कर शैतानी करने लगा गुप्ता जी का मूड भी ठीक हो गया वो भी उसकी शैतानियों में शरीक हो कर उसके चेहरे पर प्यार सेपप्पी लेने लगे।

    मंजरी ने ये सब देखा तो इस बार उसनेअपना आपा खो दिया " पापा! आपको इतनी भी सैंस नहीं है क्या आपको कि छोटे बच्चों के मुंह नहीं लगाना चाहिये, इन्फैक्शन हो जाता है " वह बटे को उनकी गोद से झपट कर अपने रूम में छोड़ आयी

    अपने ऑफिस में आज तक किसी ने गुप्ता जी से ऊंची आवाज में बोलने की हिम्मत नहीं की थी, एक रुतबा था उनका ।किन्तु रिटायरमेंट के बाद जब से बेटे के घर रहने आये हैं हर कदम पर उनका स्वाभिमान आहत हो रहा था।आज उनकी सहनशक्ति के बांध के सारे तटबंध टूट चुके थे

    "सविताss -उन्होंने ऊची आवाज से पत्नी को पुकारा " सामान पैक करो अपना ,दम घुटने लगा है मेरा, यहां कोई चीज़ अपनी नहीं है ।चलोयहां से। हम किसी ऐसी जगह रहेगें जहां खुली हवा में सांस ले सकें हम।"

    3प्रदत्त विषय आधारित स्वाभिमान

    ***

    3 - मोहपाश

    रात दिन नशे की हालत में धुत रहने के कारण धीरज को जब शराब के लिए पैसे मिलने बंद हो गए तो वह माता-पिता के साथ गाली गलौच और मारपीट करने लगा उसका रिश्ता केवल शराब और पैसों से था। माता पिता की उसकी नजरों में कोई इज्जत ही नहीं थी घर का सारा खर्चा वर्मा जी पेंशन से ही चलता था

    पानी जब सिर से ऊपर उतरने लगा तो समाज और जॉब में हमेशा सम्मान पाने वाले वर्माजी ने अपनी पत्नी सुगंधा को साथ लेकर वृद्धाश्रम में रहने का निश्चय कर लिया। उन्होंने जब सुगंधा को इससे अवगत कराया तो वह आवेश में गयीं। वर्माजी को ही दोषी ठहराते हुए उन्हीं को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया और साथ चलने इन्कार कर दिया

    " कैसे निष्ठुर पिता हो आप! बेटे का साथ छोड़ने की बात करते हो!उसे अकेला छोड़ कर आपको जहाँ जाना है चले जाइये, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। वह चाहे मुझे कितना भी अपमानित करे,चाहे मार ले ,पीट ले , लेकिन मैं किसी भी हाल में उसका साथ नहीं छोडूंगी, बेटा है वो मेरा "

    " तो ठीक है, खूब बिगाड़ो उसे !उसके मोह में जकड़ी हुई पिटती रहो उससे ! मैं अकेला ही जा रहा हूँ! " क्रोधित होते हुए स्वाभिमानी वर्मा जी अपना बैग उठा कर घर से निकल गये।

    सुनीता त्यागी

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