गुनाहों का शहर - 4 Ravi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुनाहों का शहर - 4

गुनाहों का शहर - 4

पुरुषोत्तम फिर पुलिस स्टेशन पहुंचा। उसे जॉन मिल गया। रास्ते में कई बार उसे राकेश भी टकराया। लेकिन दोनों ने नज़रे नहीं मिलाई। "आओ जॉन एक-एक चाय हो जाए" पुरुषोत्तम ने कहा। और दोनों सामने वाले होटल नुमा चाय की दुकान पर पहुंचे।

"कुछ खबर लगी सर" जॉन ने पूछा।

"किस बारे में?" पुरुषोत्तम ने सवाल किया।

"वो...फ़ाइल जो दी थी आपको..!।

"वो.. उसमें अब मेरा इंटरेस्ट इंट्रेस्ट नहीं। पड़े मरे मुझको क्या" पुरुषोत्तम ने कहा। एकाएक जॉन के चेहरे पर विजेता के से भाव आए।

"अच्छी बात हैं सर। क्यों इस बड़े लोगों के लफड़े में पड़ना।" जॉन ने कहा।

"तुम ठीक कहते हो जॉन। अब वैसे भी मेरा ट्रांसफर हो चुका हैं। अच्छा लगा तुम सब से मिलकर।" पुरुषोत्तम ने कहा। और चाय का बिल देने के लिए जेब में हाथ डाला ही था कि जॉन बोल पड़ा।

"सर आप जा रहे हो। आज तो मैं ही चाय के पैसे दूंगा।"जॉन खुश होता हुआ काउंटर पर पहुंचा और बिल चुका कर लौटा।

"अब चले जॉन" पुरुषोत्तम उठता हुआ बोला।

"जी सर।"

पुरुषोत्तम होटल लौट आया। उसने कपड़े बदले और पलंग पर लेट गया। उसके लौटने तक दो बजकर बीस मिनट हो चुके थे। पुरुषोत्तम ने आंखे बंद करली और उसे नींद आ गई।

पांच बजे पुरुषोत्तम की नींद खुली। अजय रिपोर्ट के साथ लौटा था। पुरुषोत्तम फ्रेश हुआ और चाय आर्डर की।

"क्या खबर है बरखुरदार" पुरुषोत्तम ने पूछा।

"यस… खाने में भारी मात्रा में ज़हर था।" अजय ने कहा।

"क्या ज़हर कौनसा है। और उसे कहाँ से प्राप्त किया था। ये पता चल सकता हैं।" पुरुषोत्तम ने पूछा।

"ज़हर एक एकोनिटम नाम के पौधे से निकाला गया है। कम लोगों को इसकी जानकारी होती है।" अजय ने कहा।

"एक पौधे से ज़हर निकाला गया।" पुरुषोत्तम ने हैरान होते हुए पूछा।

"हा पौधे का नाम एकोनिटम है। इसके पत्तों और खासकर जड़ों में भरपूर मात्रा में ज़हर होता हैं। इसे क्वीन ऑफ़ प्वायजन भी कहते है। एक और खतरनाक बात है कि इसके ज़हर में न्यूरोटॉक्सिन पैदा हो जाता है, जो विश्व के सबसे ज़हरीले सांपों के ज़हर में पाया जाता हैं। कुल मिलाकर दो घंटे में ज़हर लेने वाले इंसान का काम तमाम।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।

"इसे कहाँ से हासिल किया जा सकता है।" पुरुषोत्तम ने पूछा।

"थोड़ा वक्त दो इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा।" अजय ने कहा। अचानक पुरुषोत्तम कुछ याद आया और उसके नेत्र फैल गए।

"क्या तुम उस पौधे की तस्वीर दिखा सकते हो" पुरुषोत्तम ने पूछा।

"हा इस रिपोर्ट की फ़ाइल में दो-तीन तस्वीरें है।" अजय फ़ाइल आगे करता हुआ बोला।

पुरुषोत्तम ने जल्दी से फ़ाइल अपने हाथ में ली। और तस्वीरें देखना लगा। उसके चेहरे पर विजेता के से भाव आ गए। "इस पौंधे को मैंने देखा है अजय।" पुरुषोत्तम ने कहा।

"वेरी गुड! कहाँ देखा है तुमने।" अजय ने पूछा।

"दयाल के यहां। मैंने तुम्हें बताया था मैं वहां गया था।"

"हमे फिर वहां चलना चाहिए।" अजय ने कहा।

"क्या तुम दयाल के बारे में कुछ जानकारी हासिल कर सकते हो।" पुरुषोत्तम ने सवाल किया।

"ज़रूर! ज़रूर! हमारे जासूस हर शहर के कोने-कोने में फैले हुए है" अजय ने ज़ोरदार हंसी के साथ कहा।

फिर वो फ़ोन करने होटल के कमरे से बाहर चला गया।

करीब चालीस मिनट बाद अजय वापस लौटा।

"एक मामूली प्रोपर्टी डीलर है। बीवी तंग आकर छोड़ कर चली गई। कुछ मानहानि के और आर्म्स एक्ट के केस उसपर हो चुके है। और उसका व्यहार तो ठीक है लेकिन कब काया-पलट हो जाए कह नहीं सकते।" अजय ने कहा।

दोनों होटल के कमरे से निकल आए। टेक्सी करके दयाल के यहां पहुंचे। पुरुषोत्तम ने बेल बजाने से पहले गार्डन में वो जगह देखनी चाही जहां वो ज़हरीला पौंधा लगा था।

पुरुषोत्तम ने देखा उस पौधे की जगह खाली थी और बाकी पौंधे अपनी जगह पर थे। उसने अजय को यहीं से वापस लौटने का इशारा किया। और वे दोनों होटल के कमरे पर लौट आए।

"लेकिन इस काम को अंजाम किसने दिया होगा। दयाल भी इसमें शामिल होगा। लेकिन साक्षात किसने किया होगा यह काम।" पुरुषोत्तम ने कहा और सोचने लगा।

"एक-दो दिन का वक्त तो दो जनाब। समंदर और मछली दोनों तुम्हारे सामने रख दूंगा।" अजय ने कहा। पुरुषोत्तम ने सहमति में सिर हिलाया।

चरस के केस के साथ-साथ यहां-वहां की बातें करते रात के ग्यारह बजे गए। अजय ने खाना आर्डर किया। और साथ ही व्हिस्की और एक इम्पोर्टेड डिश। दोनों ने व्हिस्की पीना शुरू किया। बातों का और खाने-पीने का सिलसिला दो बजे तक चला। फिर दोनों ए.सी की ठंडी हवा में बेसुध होकर सो गए।

  • ***
  • सुबह दस के करीब दोनों ने साथ में ब्रेकफास्ट किया। अजय जानकारी हासिल करने निकल गया। पुरुषोत्तम दरवाजा लॉक करके रिसेप्शन की गली में टहलने निकला।

    ठिठक कर उसने रिसेप्शन के काउंटर की ओर देखा।

    वहां राकेश और दयाल कुछ पूछताछ कर रहे है। पुरुषोत्तम उल्टे कदम लौट आया। तभी दरावजे पर दस्तक हुई। पुरुषोत्तम कुछ पल आंखे बंद करके लेटा रहा। फिर उठकर दरवाजा खोला।

    "राकेश! दयाल जी।" आइये प्लीज..."

    "तुम्हे दयाल जी पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। हमारे साथ चलो।" राकेश ने सरासर झूठ बोला।

    "ठीक है चलिए" पुरुषोत्तम ने कहा।

    एक क्षण राकेश और दयाल के चहरे पर आश्यर्च के भाव आए। फिर वे तीनों होटल से रवाना हो गए।

    दो घंटे बाद अजय थाने में पहुंचा। पुरुषोत्तम के रिहाई के कागज़ उसके पास थे। लेकिन इंस्पेक्टर राकेश ने पुरुषोत्तम को रिहा करने से इनकार कर दिया।

    "हम पुरुषोत्तम को नहीं छोड़ सकते। ऊपर से आर्डर है। तुम जा सकते हो।" राकेश ने अखबार पढ़ते हुए कहा।

    "मेरे पास रिहाई के कागज़ है। आपको छोड़ना पड़ेगा उसे" अजय ने कहा।

    "ऐ! चल उठ निकल। वरना तुझे भी अंदर कर दूंगा। समझा।" राकेश गरजता हुआ बोला।

    अजय होटल पहुंचा। एक घंटे बाद पुलिस स्टेशन में फ़ोन आया। जिसे सुनकर राकेश की बत्ती गुल हो गई।

    "जी सर! जी! बिल्कुल सर! सॉरी सर! जी! बस अभी!"राकेश दौड़ता हुआ गया और पुरुषोत्तम को बाहर निकाल कर लाया। "सॉरी सर, आप जा सकते है।" राकेश ने लटकी हुई गर्दन से कहा।

    "कमाल है!" पुरुषोत्तम ने कहा और वहां से विदा हो गया।

    पुरुषोत्तम होटल पहुंचा। "क्या किया भाई तुमने। अब मुझे भी बता दो। जिस तरह से पुलिस स्टेशन हिल गया था। लगता है तुमने मुख्यमंत्री से फ़ोन लगवा दिया हो।" पुरुषोत्तम ने कहा।

    "अब सीधे राष्ट्रपति भवन से फ़ोन आएगा तो पुलिस स्टेशन हिलेगा ही न!। अजय गर्व के साथ बोला।

    "तुम चीज क्या हो। ये सब तुमने पहले नहीं बताया। की तुम्हारी इतनी पहुँच है"

    "आपस में नहीं है। काम के सिलसिले में है। और इन सब बातों की खबर करने की इजाज़त नहीं होती। फिर कभी-कभी पहचान का इस्तेमाल आपस के लिए करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं।" अजय ने कहा। "पुरुषोत्तम क्या तुम जानते हो। मंजरी..." अजय कहते-कहते रुक गया।

    "कहो.. कहो.. यही कि झूठ बोल रहीं है!।" पुरुषोत्तम ने कहा।

    "तुम्हे कैसे पता। ये तो मेरा काम है।" अजय नकली गुस्सा दिखाते हुए बोला।

    "सिम्पल! मैंने जो अंगूठी दयाल के हाथ में देखी थी वही मैंने मंजरी के हाथ में देखी थी।" पुरुषोत्तम ने बताया।

    "ओके! और मैंने उसके और दयाल के पीछे अपने आदमी लगा दिए है। जो मुझे उनकी हर खबर दे रहे है। एक तीसरा आदमी है जो इस केस का मास्टर माइंड है। वो कौन हो सकता है ये जानने की मेरी पूरी कोशिश है। जल्द से जल्द पता चल जाएगा।" अजय ने कहा।

    "वैसे पता चल भी जाए तो उसके खिलाफ क्या एक्शन ले सकते है। अगर वो बड़ा प्रभावशाली आदमी निकला तो" पुरुषोत्तम ने पूछा।

    "प्रभावशाली आदमी ही है। पुरुषोत्तम तुम गौर करो जिस तरह उसके इशारे पर ये नेता और पुलिस वाले चल रहे है वो कोई छोटा-मोटा आदमी नहीं होगा।" अजय ने कहा।

    "मुझे एक दिन मंजरी ने बताया था कि इसके पीछे मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का हाथ है।" पुरुषोत्तम सोचता हुआ बोला।

    "उसने तुम्हे सच बताया था। उसका अनुमान होगा कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे। ज़्यादा से ज़्यादा मीडिया में नाम उछालोगे। फिर मार दिए जाओगे। लेकिन एक बात नहीं समझ पाया। ये मुख्यमंत्री तुम्हे शराफत से क्यों मारना चाहता है। वरना अभी तक तुम दिन दहाड़े क़त्ल कर दिए जाते।" अजय ने कहा।

    "उसे डर है अजय। की मेरी इस तरह की मौत से कोई मुझ जैसा और न उनसे उलझ पड़े। फिर इन्हें मीडिया और तुम जैसों का भी डर होता है। जो बादमे इनके कच्चे-चिट्ठे खोल कर रख देते है। फिर देर दुरुस्त मेरा भी इंतजाम हो चुका होगा।" पुरुषोत्तम मुस्कुराते हुए बोला।

    "कुछ ही घंटों में हमारे पास पर्याप्त सबूत होंगे। मेरे आदमी हर संभव प्रयास कर रहे है। तुमने इस चरस सप्लाई का भंडाफोड़ करने का काम अपने हाथ में लिया है इसके कई परिवार तुम्हे दुआएं देंगे। मैं तुम्हारे इस निर्णय का सम्मान करता हूँ।" अजय ने कहा। और दोनों साथ हंस पड़े।

  • ***
  • अगली सुबह अजय से पहले पुरुषोत्तम तैयार हो गया। उसने चाय आर्डर की। सात बजकर पचास मिनट हो रहे थे। दरावजे की घंटी बजी। वेटर एक ट्रे में चाय, बिस्किट और अखबार देकर चला गया। अखबार की हेडलाइन पढ़कर पुरुषोत्तम उछल पड़ा। और जिसका लेख इस प्रकार था।

    शहर में एक बड़े चरस स्केंडल का पर्दाफाश!

    राज्य के मुख्यमंत्री को कल रात उनके फार्महाउस से गिरफ्तार किया गया। उनके फार्महाउस में भारी मात्रा में विदेसी और देसी चरस पाई गई है। तथा उनके साथ बस सिटी स्थित काला मोहल्ले में रहने वाली मंजरी नाम की लड़की को देह व्यापार के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। एंव अन्य मामले में इंस्पेक्टर राकेश, जॉन नामक हवलदार एंव पूर्व नेता दयाल सेठ को गिरफ्तार किया गया। डी.एस.पी नरेश सिंह फरार है। केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा हुए इस खुलासे में जल्द ही आरोपियों को सज़ा सुनाई जाएगी।

    "अजय" पुरुषोत्तम चिल्लाया।

    "हा" अजय नींद में बड़बड़ाया।

    पुरुषोत्तम ने उसे एक झटके में उठाकर बैठा दिया।

    "ये पढ़ो" पुरुषोत्तम ने अखबार उसे सौंपा और कमरे में लगा टी.वी ऑन करने दौड़ा। "हो गया काम और अब क्या चाहिए।" अजय जम्हाई लेते हुए बोला।

    "मुझे यकीन नहीं हो रहा। हमारी जीत हुई। हम जीत गए इन बुरे लोगों से।" पुरुषोत्तम खुश होता हुआ बोला।

    "देखो पुरुषोत्तम भाई" अजय उठता हुआ बोला।

    "जो दिखता है वो होता नहीं है। तुमने मंजरी पर भरोसा किया था न। लो अब खुद देखलो अपने भरोसे का नतीजा। ये लोग बेहद चालाक होते है।" अजय ने कहा।

    "लेकिन मुझे एक पल मंजरी सच बोलती लगी थी अजय! फिर भले वो ये सब काम करती हो पर...!"

    "पर इंसान बुरी नहीं है! है न।" अजय ने पुरुषोत्तम की बात पूरी होने से पहले कहा। पुरुषोत्तम ने आंखे झुका ली।

    "तुम्हारे सोने के बाद सारा खेल शुरू हुआ। पौधों से तेल निकालने वाला और कोई नहीं जॉन था। तुमपर हमला किसने किया ये तो जानते ही हो। खाने में ज़हर से लेकर तुम्हारा ट्रांसफर सब मुख्यमंत्री साहब की करतूत थी।

    और उस दिन उस होटल के काउंटर पर बैठे आदमी ने तुम्हे गलत जानकारी दी थी। दरअसल उस दिन जॉन के साथ राकेश था। और जैसा तुमने बताया था जॉन ने खाना खाने से इनकार कर दिया था क्योंकि वो खाना खा चुका था। फिर दयाल ने तुम्हे उन लोगों के नाम बताए जिनका इस केस से कोई लेना देना नहीं था। तुम्हारी खटिया तो उसी दिन खड़ी हो गई थी। जिस दिन तुम्हे राकेश ने दयाल के घर भेजा था। लेकिन तुम्हारी किस्मत कि उस दिन उन्होंने अपना फैसला बदल दिया।

    तुम्हारी मेहनत रंग लाई पुरुषोत्तम।" अजय ने कहा।

    "मेरी मेहनत! और तुम क्या यहां ठंडी हवा खाने आए थे। या सारा क्रेडिट मुझे देकर हीरो बन रहे हो।" पुरुषोत्तम ने कहा तो अजय हंसा।

    "सच तो तुमने ही सारा काम किया। मेरी तो रद्दी भर पहचान नहीं। तुम न होते अजय..."

    "विक्रम भारतीय" अजय ने उसे सही करते हुए कहा।

    "विक्रम भारतीय!"

    "यस! मेरा असली नाम।"

    "ओह! तुम जासूसों के नाम भी खुफिया। अब चाय गटकलो जल्दी तुम्हे एक फ़िल्म दिखाकर लाता हूँ।

    पुरुषोत्तम ने कहा।

    "अच्छा तुम्हारी नहीं। मैं तुम्हारा दोस्त हूँ।" अजय ने कहा।

    वैसे मुझे दिल्ली निकलना है। रास्ते तक साथ चल सकते जो। फिर जहां तुम्हे मुड़ना हो मुड़ जाना।" अजय ने कहा।

    अजय और पुरुषोत्तम होटल के कमरे को ताला लगाकर निकल आए। उन्होंने रिसेप्शन पर चाबी दी। और बिल चुकाया "हेल्लो। आई एम अजय!" अजय ने रिसेप्शन पर बैठी लड़की की तरफ हाथ बढ़ाया।

    "हेलो सर"

    "यू आर अ ब्यूटीफुल बड। व्हाट्स योर क्यूट नेम?"

    "थैंक यू सर! मेरा नाम शालमली है" उस लड़की ने मुस्कुराकर कहा।

    पुरुषोत्तम अजय उर्फ विक्रम को घसीटता हुआ बाहर ले गया। दोनों होटल से दूर जाने लगे। शालमली उन्हें जाता देखती रहीं।

    समाप्त