पी कहाँ? - 6 Ratan Nath Sarshar द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पी कहाँ? - 6

पी कहाँ?

रतननाथ सरशार

अनुवाद - शमशेर बहादुर सिंह

छठी हूक

एक साफ-सुथरी, नफीस-सी जगह पर - जिसके हर पेड़-पालो, फल-फूल जड़ी-बूटी, घास-पत्‍ती, हवा-पानी, जमीन-आसमान, आस-पास की हर चीज से गोया जंगल में मंगल का सा लुत्‍फ पैदा होता था - एक छत के बँगले में, जो सादगी मगर करीने और सलीके और तमीज और सफाई के साथ सजा हुआ था, पाँच कमसिन-कमसिन लड़कियाँ, अलग-अलग सज-धज और बनाव-चुनाव के साथ फर्श पर बैठी थीं। शाम का वक्‍त, सूरज डूब चुका था। तारे यों ही झिलमिलाते आसमान पर कहीं कहीं नजर आते थे। सूरज की लाल किरनों से एक तरफ आसमान पर गुले-लाला खिला हुआ था - बादल के लक्‍के, कोई सफेद, कोई आबी, कोई नीलगूँ, जरा-जरा से, मगर एक दूसरे से मिले हुए फैले थे, जैसे रंग-बिरंग की धुनकी हुई रुई। हवा जन्‍नाटे से चल रही थी। पीपल और बरगद के पत्‍ते बहुत ही जोर से खड़खड़ाते थे और ये पाँचों कमसिन लड़कियाँ बँगले में बैठी थीं, मगर सबके दल गोया बुझे-बुझे से। एक ने कहा - बहन - आज रात को खाना-वाना खाके, चाह-वाह पी के कहानियाँ हों। दूसरी ने हामी भरी। तीसरी बोली - तुम लोग सुहानियाँ कह लो, हम इतनी पहेलियाँ बुझवाएँगे। मगर इनकी बात काट कर, और ठंडी आह भर, इन सबकी तरफ घूम कर उसने बहुत दुखी हुई आवाज में कहा - अरे, यहाँ न पहेलियाँ आती है, न कहानी सुनने को जी चाहता है। हमारी कहानी से बढ़ कर और किसकी कहानी होगी। यह कह कर आँसू आ गए, और इन चारों ने समझाना शुरू‍ किया:

1 - हजूर, ढारस रखिए।

2 - हाँ, और क्‍या। जहाँ तक हो सके इस ख्‍याल को दिल से दूर कीजिए।

जवाब - हाय, क्‍या हँसी-ठट्ठा समझी हुई हो!

2 - सरकार, हमारा दिल तो कुढ़ता है। वह दिन अल्‍लाह जल्‍द दिखाए कि आपका अरमान निकले।

जवाब - अब निकल चुका।

3 - यह न कहिए! अल्‍लाह के बड़े-बड़े हाथ हैं!

जवाब - यह सच, मगर उम्‍मीद नहीं होती।

4 - आपका यह ख्‍याल गलत है। मर्द उठ बैठते हैं। साँप के काटे हुए को दफनाने ले गए, और वह जनाजे से कुलबुला के उठा, और अब तक जिंदा जीता-जागता है।

2 - फिर इन बातों के मुकाबले कौन बात है!

3 - हमारा दिल गवाही देता है, कि डेढ़ महीने के बाद ये सब मुसीबतें दूर हो जायँगी। हमसे एक पंडित ने कहा था। वह बड़ी सच्‍ची-सच्‍ची बातें बताता है। जो कहता है वही होता है।

कौन पंडित? - कौन? क्‍या नाम है?

3 - मुझे इन हिंदुओं का नाम नहीं याद रहता। एक तेजकरन मारवाड़ी को तो जानती हूँ, मुआ ठग!

उसने कहा - ये बातें तो हुआ ही करने की, मगर ऐसा न हो कि तुम लोग सब हाल अम्‍माजान से कह दो, जो गजब भी हो जाय। मेरी भी जान जाय। - क्‍योंकि अगर कोई बात मेरे खिलाफ हुई, तो मैं जरूर अपनी जान दे दूँगी! - वह और भी ज्‍यादा कुढ़ेंगी।

इस पर सबने कहा - जी नहीं। ऐसा क्‍या कोई नादान समझा है!

यह बातचीत उस वक्‍त की है जब एक परी-सा खूबसूरत लड़का, तीन कमसिन लड़कियों के साथ बाग में टहल रहा था, और एक लड़की बाग के फाटक पर इसलिए बिठाई गई थी कि जब कोई जनानी नजर आए तो फौरन इत्‍तला दे। और वह गोरा लड़का 'पी कहाँ!' कह कर के, झूम के मस्‍तानावार क्‍यारियों के बराबर-बराबर चहलकदमी कर रहा था। - कि एकाएक उस पहरेवाली लड़की ने आके कहा - हजूर, सवारियाँ आ गईं। और वह लड़का झपट के एक कमरे में हो रहा। और वहाँ मर्दाना लिबास बदल कर जनाने कपड़े पहने - मलमल का कपासी रँग हुआ दोपट्टा, मलमल ही की गुलाबी कुर्ती और बसंती पायजामा। जेवर एक भी नहीं। और उन चारों को ले कर उस काँचवाले बँगले में बैठी। - 'बैठी' हमने इसलिए लिखा कि उस लड़के ने अब लड़की का भेस बदल लिया था।

थोड़ी ही देर में एक बूढ़ी औरत कोठे पर आई - साथ-साथ दो खवासें, एक बगदाद की हबशिन, दो महरियाँ, और एक जवान औरत, कोई बीस बाईस बरस का सिन, कड़े -छड़े पहने हुए आई। बूढ़ी औरत बेगम थी, और वह बीस साल की जवान भांजी। इन सबको देख कर वह लड़की, जो उन पाँचो लड़कियों में थी (जिनका हमने जिक्र किया है, और जो लड़के के भेस में 'पी कहाँ! पी कहाँ! 'कहती थी), वहीं बैठी रही। वह चारों उठ खड़ी हुई और अदब के साथ झुक-झुक कर सलाम किया। जवान औरत ने, जिसका नाम नजीर बेगम था, उस लड़की के पास बैठ कर कहा - बहन कैसी हो? उसने डबडबाई आँखों से जवाब दिया - अच्‍छे हैं! बेगम भी बैठीं। पूछा - बेटा, कैसी हो? हम तुम्‍हें देखने आए, और तुम हमसे बोलो न चालो, यह क्‍या बात है!

लड़की - जो कहिए, वह कहूँ!

बेगम - मिजाज तो अच्‍छा हैं?

लड़की - शुक्र है।

बेगम - अरे, तो इधर देख के बातें करो। अरे! तुम तो रो रही हो। क्‍यों हलकान होती हो? तुमने तो हमारी जिंदगी तलख कर दी। हमको कहीं का न रक्‍खा।

नजीर - मिटिया-मेल कर दिया। अरी बहन तुझे यह क्‍या हो गया?

बेगम - बहन से तो बोलो, बेटा!

नजीर - ए जान का प्‍यार तुमको आया था, कभी याद भी करती थीं?

बेगम - वह 'पी कहाँ!' की आवाज कौन लगा रहा था? इनसान की-सी आवाज मालूम होती थी! इतने में इत्‍तफाक से दरख्‍त पर से एक जानवर की आवाज आई - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' अब बात बन गई। और उन चारों ने बिगड़ी बात यों बनाई -

1 - ए हजूर, इस बाग में पपीहा बोल रहा होगा। और देखिए, अब भी बोला!

2 - हाँ, थोड़ी देर हुई, जब भी बोला था।

3 - वही आवाज सुनी होगी।

4 - रात को बहुत बोलता है।

बेगम - मुझे कोई दीवानी पगली समझी हुई हो क्‍या। खासी साफ लड़की या लड़के की सी आवाज थी।

नजीर - अरे यह उस पिंजड़े में कौन जानवर है?

खवास - अरे हजूर पपीहा है!

महरी - 'पी कहाँ!' यही बोलता है!

बेगम - यह तो हमने किसी को पालते हुए नहीं सुना। फिर कौआ भी पालो, चील भी पालो, भुजंग भी पालो। यह शौक किसको हुआ?

नजीर - तुमने नहीं पाला है! अरे बोलो!

लड़की - नहीं।

नजीर - ए तुम लोग जो यहाँ रहती हो, तुम बताओ। यह किसने पाला है? इसमें हर्जा क्‍या है, अपना-अपना शौक है।

बेगम - अच्‍छा तुम इनसे बातें करो, नजीर, हम आते हैं।

यह कह कर बूढ़ी बेगम साहब दूसरे कमरे में गई, और उन चारों लड़कियों में से एक लड़की को इशारे से साथ लेती गई, जिसके नाम का पहला हरफ 'फ' है।

बेगम - क्‍या हाल है? हमें तो कोई फर्क नहीं मालूम होता!

फ - बस, 'पी कहाँ! पी कहाँ!' की हाँक लगाया करती हैं, और रोया करती हैं। आप लोगों में से किसी को याद नहीं किया। कुछ बहस ही किसी से नहीं। दीन-दुनिया से कोई मतलब नहीं। बस, रोना और 'पी कहाँ! पी कहाँ!'

बेगम - यह पपीहा कहाँ से आया?

फ - ए, हजूर, यह तो न जाने कहाँ से आ गया! सबेरे हमने उनके हाथ में देखा, रात को हमने उनकी आवाज सुनी - 'पी कहाँ!' हम समझीं पपीहे को चिढ़ाती हैं। तत्तो-तंबो करके सुलाया। सबेरे मुँह-अँधेरे आँख खुलती है तो पलँगड़ी सूनी, मसहरी खाली। सब जाग उठे। इधर ढूँढ़ा। उधर ढूँढ़ा, कहीं नहीं। हाथों के तोते उड़ गए। देखते हैं तो नीचे एक बेंच पर आप लेटी हुई हैं, और यह पपीहा हाथ में है।

बेगम - हाँय! यह! आया कहाँ से मुआ?

फ - क्‍या बताएँ!

बेगम - बड़े ताज्‍जुब की बात है।

फ - अचंभे से अचंभा है!

बेगम - कोई साया तो इस पर नहीं है?

फ - कुछ तो जरूर है।

बेगम - जरा नरगिस खवास को तो बुलाओ, और नजीर को भी बुलाओ। नजीर बेगम छम-छम करती हुई आईं। नरगिस खवास भी साथ थीं।

बेगम - और भी कुछ सुना? मैं जानती हूँ यह साया किसका पड़ा है। सुनो ना! यह क्‍या हो रहा है! अल्‍लाह!

नजीर - क्‍या कहीं डर गई थीं!

बेगम - सुनो तो! डरीं-वरीं कुछ नहीं थीं। ('फ' से) कहो जी! उसने पपीहे के पाने का कुल हाल कहा, तो नजीर बेगम दंग हो गईं। कहा - यह क्‍या बात है? रात को पलँग से यहाँ अकेली कहाँ आई। घर में तो चौकीदार के बोलने पर हमसे लिपट जाती थी, अँधेरे में जाते हुए डर मालूम होता था। और यहाँ उस बीहड़ बीराने जंगल में छत से अकेले नीचे उतरना - यह क्‍या बात है! एँ! यह तो कुछ और बात है!

खवास - हजूर जरूर कुछ है। चाहे कोई कुछ कहे मैं न मानूँगी।

फ - पारसाल, शबे-कतल की रात के कोई चौथे-पाँचवें रोज जरा यों ही-सी निखरी थीं और पीला दुशाला ओढ़े हुए हमको साथ ले कर तिमंजिले गईं। इत्र की लपट दूर तक जाती थीं। वहाँ जाके पीपल का एक पत्‍ता तोड़ा। मैंने कहा, यह क्‍या करती हो! ए, बस, मेरा इतना कहना था कि टहनी तोड़ ली। नाजुक फुनगी सब चली आई। कहा - अरे ओ भूत-परेत-आसेब-चुड़ैल - (थू थू!!) - तू जो कोई हो, आ! और मैं गुस्‍से हुई। मगर न माना। बस जैसे ही नीचे आने लगीं, एकाएकी नाक के पास दर्द होने लगा। मेरे तो हाथों के तोते उड़ गए। आप पार गई थीं। मैंने पड़ोस से उनको बुलवाया - वही आमिल - मियाँ जोश की चढ़ाई के मशहूर आमिल! उन्‍होंने धूनी बताई। उससे जाके दर्द कम हुआ।

खवास - तुमने मुझसे कहा था।

बेगम - अब रखवाली रखनी चाहिए।

खवास - ए हजूर सौ काम छोड़ के।

नजीर - भला कुछ बताती-वताती हैं कि पपीहा कहाँ से आया?

फ - उनको जरी भी कुछ नहीं याद है।

नजीर - अच्‍छा, फिर जो वजह है, वह तो जाहिर है।

फ - जरी मालियों से पूछो, मजीदन (खवास) और सितारन को बुलाओ। सितारन और दो माली आए। दोनों बूढ़े।

मजीदन - हजूर, जरी आड़ में हो जाइए। माली हाजिर होते हैं, बूढ़े हैं।

बेगम - आने दो। यहाँ जान पर बनी है। किसका पर्दा और किसका जर्दा। तुम जरी आड़ में हो जाओ बेटा।

नजीर - आने दो, अम्‍मीजान, मुए, बूढ़े, गँवार। और रात तो हैइ है। मालियों ने दूर से झुक के सलाम किया।

बेगम - अरे मालियों, तुम जानते हो कुछ कि यह पपीहा जो पला है, कहाँ से आया!

एक - हजूर, इनको मालूम है।

दूसरा - सरकार, यह जो सतखंडा है, इसके दरवज्‍जे के पास गुलाम की बहू सोती है। उसने हमसे सबेरे कहा - बाबा, रात को एक लड़का आया, कोठे पर चढ़ गया, और वहाँ से फिर उतरा। और वहाँ, वह जौन बेंच पड़ी है, वहाँ बोली बोलने लगा।

बेगम - अपनी बहू को बुलाओ।

बहू आई। उसने अपनी बात को दुहराया, और कहा - मैं मर्दं समझ के नहीं मिनकी - कि कोई मुझको इस लड़के से लगाए नहीं, जवान औरत। बस, सतखंडे पर चढ़ गया। तब मुझे डर लगा। और भाग के बाप की खटिया के पास आई। मारे डर के मुँह से बात-बोल नहीं निकलता था। वैसे ही पेड़ से जानवर के चिल्‍लाने की आवाज आई, और थोडी़ देर में वह आदमी उतर आया। मैं जाके दूसरी खटिया पर सो रही। तड़के सुना कि पिंजड़ा ढूँढ़ा जाता है। मैं जानती हूँ वह लड़का इस जनावर को छोड़ गया और किसी ने पकड़ के उनको दे दिया। मुदा, चाल से, हमारी जान में, वह लड़का बिलकुल सरकार थे।

बेगम - सरकार कौन? अरी कौन सरकार?

माली - हजूर, हमारे मालिक। हजूर के साहबजादे।

बेगम - क्‍या? यह क्‍या बकता है। बेवकूफ।

फ - अच्‍छा, तुम लोग जाओ।

वह चले गए।

बेगम - नजीर, यह तो नईं बात सुनी। (ठंडी साँस भर के) मगर यह तो लड़का बताती है।

फ - सच कहती है। मैंने एक दिन हँसी-हँसी में मर्दाने कपड़े पहनाए थे, और मर्दाने कपड़े तौशकखाने से ले आई थी। आज ही तो उतारे हैं।

मजीदन - जब तो कोई आसेब जरूर है। और सबेरे उन लोगों ने इनकी बेंच पर देखा भी। और वह कहती भी है कि सरकार की-सी चाल थी।

बेगम - अब क्‍या होगा! हम तो एक ही मुसीबत को रोते थे, हाय, अब दूसरी मुसीबत पड़ी।

नजीर - (रोनी सी आवाज में) शहर ले चलो।

फ - खुदा ही ने कहा है - वह तो होना ही है।

मजीदन - (नजीर से) आप जरी जाके अपनी तौर पर पूछिए तो शायद कुछ याद आ जायगा।

फ - कुछ नहीं याद है। घर-घर के पूछ चुके हैं। पूछिए! वह कहती हैं, हम जानते ही नहीं।

बेगम - शहर किसी को भेजो कि जाके नवाब दूल्‍हा को बुला लाए। माली को बुलाओ।

मजीदन - अरे ये मौत-खपट्ट क्‍या जल्‍दी जाएँगे!

बेगम साहब ने कहा - हम मालियों से पूछेंगे कि यहाँ तेज सवारी कौन मिलती है, जो सबसे जल्‍द जाय।

माली हाजिर हुए। उनसे पूछा गया। उन्‍होंने कहा - यहाँ से काली भैरो के टप्‍पे पर एक बनिया रहता है। उसके पास एक टट्टू है, हवा। उसको भेज दीजिए।

हुक्‍म हुआ, उसको लाओ। एक माली हुक्‍म की तामील के लिए गया। बेगम साहब और खवास वहीं बैठी रहीं। नजीर बेगम उस लड़की को साथ ले कर गईं। जीने पर कदम रक्खा ही था, कि आवाज आई - 'पी कहाँ! पी कहाँ!' वह लड़की अब माँ और बहन के लिहाज से, उनको पास न पा कर, आहिस्‍ता-आहिस्‍ता अपनी पी को याद कर रही थी। जब नजीर बेगम की पाजेब की झंकार सुनी, तो वैसे तो खामोश हो रही, मगर दिल ही दिल में 'पी कहाँ! पी कहाँ!' कहती जाती थी।

नजीर - बहन जरी टहलो। बातें करो। दिल बहलाओ। देखो हम लोगों ने तुम्‍हारे लिए ऐसा घर और ऐसा लड़का ढूँढ़ा है कि खुश हो जाओगी।

फ - दिल में तो खुश हो गई होंगी।

लड़की चुप। गोया कह गयी है -

न छेड़ ए निगहते-बादेबहारी, राह लग अपनी,

तुझे अठखेलियाँ सूझी हैं, हम बेजार बैठे हैं!

फ - ए लो, बोलो जी!

नजीर - अरे, आखिर अब तुम सयानी हुई। माशेअल्‍ला, इतना सिन आया, अब तुम्‍हारा रिश्‍ता होना चाहिए कि नहीं? खुदा न चाहा - खुदा ने चाहा, तो पाल डाला जायगा।

लड़की - (डबडबाई हुई आँखों से) बाजी, हमारा दिल ठिकाने हो ले, तो हम जवाब दें।

नजीर - अच्‍छा, यह माना। मगर दिल ठिकाने न होने का सबब है। वह कौन बात है, जिससे दिल ठिकाने नहीं। तुम गरीब-मोहताज की लड़की नहीं हो!

फ - और जहाँ रिश्‍ता कर रहे हैं, वह भी वसीकेदार हैं। लड़का अच्‍छा, खूबसूरत। फिर भी के बे-ठिकाने होने का क्‍या सबब है?

नजीर - कश्‍मीरी दरवाजे के पास मकान है। ये उस लड़के के साथ खेल चुकी हैं। खालाजान कहती थीं कि खेलते-खेलते उसको मारा, तो वह रोता हुआ अपनी माँ के पास गया और कहा कि इस लड़की ने हमें मारा। ये अपने मियाँ को पहले ही ठोंक चुकी है!

मियाँ का लफ्ज सुनना था कि इस बेचारी के दिल पर चोट लगी, कि लो अब तक तो बातें ही बातें थीं, अब तो ये खुल्‍लमखुल्‍ला 'मियाँ' कहने लगीं। इतने में उसके चेहरे का रंग फक और बेहद उदासी छाई, जो देखा तो नजीर बेगम को भी रंज हुआ, और गुस्‍सा भी आया, और झल्‍ला के कहा - कितनी बदनसीब लड़की है। कहाँ से वह निगोड़ा दरोगावाला लौंडा आया - उस पर अलम-बिरादर का अलम टूटे! - अब की हैजे में सबके पहले गोई उसी उजड़े को लगे! और हमारी आँखों के सामने तोड़ पाए!

इस इश्‍क के मारे हुए को यह ताब कहाँ कि ऐन उसी के बारे में जिस पर उसकी जान निछावर थी, - यह सुने! सुनते ही जोर से चीख मारी और गश आ गया। बेगम दौड़ी आईं। मुँह पर छीटें दिए केवड़े के, और ठंडा-ठंडा पानी पिलाया। दो औरतें पंखा झलने लगीं। जरा-जरा होश आया।

इतने में माली उन बनिए को और एक सिपाही को उसके टट्टू पर रवाना किया, कि शहर जा के, नवाब दूल्‍हा, नजीर बेगम के मियाँ, को बुला लाए, और ताकीद करे कि साथ ही चलिए, बड़ा जरूरी काम है।

सिपाही रवाना हुआ। दूसरे रोज के पहले नवाब दूल्‍हा आए। अलहदा कमरे में बेगम और नजीरबेगम और फैजन खवास गईं। और साहबजादी को सतखंडे पर चढ़ने और पपीहा लाने का सब हाल कह सुनाया। माली और उसकी बहू को बुलवाया। माली ने फिर वह किस्‍सा दुहराया। नवाब ने कई सवाल किए, और कई औरतों से बहुत सी बातें पूछीं और एक दफा रान पर हाथ मार कर कहा - अरे! यह तो बड़ा बुरा मरज है। बड़ी चौकसी रखनी होगी। सोते-सोते, ऐन नींद की हालत में, काम करना और सतखंडे पर जाना और जानवर लाना, और फिर सो रहना, गजब ही तो है। अगर कोई जरा उस वक्‍त टोक देता, तो, खुदा-न-खास्ता उसीदम दम निकल जाता। बड़ा खराब मरज है -सोमनांबुलिज्‍म!

***