इस कहानी में लेखक सुशील यादव ने अपनी आर्थिक स्थिति और मानसिक संघर्ष को व्यक्त किया है। 8/11 के बाद, वह अपनी कमाई के स्रोत, तिजौरी, को देखकर खिन्न हैं। पहले जो उन्हें खुशी देती थी, अब वह दहशत का कारण बन गई है। उन्होंने मेहनत से पैसे कमाए हैं, बिना किसी दलाली या घूस के। लेकिन अब उन्हें चिंता सता रही है कि आगे क्या होगा, क्योंकि उनकी आय में गिरावट आई है। लेखक आत्म-नियंत्रण की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मन की उदासी उन्हें परेशान कर रही है। उन्होंने अपने पैसे को सुरक्षित रखने की कोशिश की, लेकिन रिश्तेदारों से उधार दिए गए पैसे वापस नहीं आए। इसके अलावा, जमीन या सोना खरीदने के सुझावों को नजरअंदाज किया क्योंकि उन्हें डर था कि बाजार और गिरेंगे। लेखक ने चुनावों में मतदान किया है, लेकिन उन्हें विश्वास नहीं है कि नेताओं में ईमानदारी है। उनका मानना है कि सभी नेता धोखेबाज हैं और देश की स्थिति को सुधारने के लिए सही इरादे नहीं रखते। इस तरह, कहानी में आर्थिक संकट और राजनीतिक असंतोष का चित्रण किया गया है।
मन रे तू काहे न धीर धरे
sushil yadav द्वारा हिंदी पत्रिका
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विवरण
हम बाकायदा पिछले दस आम-चुनाओं के सजग-चैतन्य मतदाता रहे सुबह सात बजे मतदान देने ,बाकायदा लाइन हाजिर हो जाते थे न हम नेताओं के भाषण को मन में रखते थे न उनके वादों के अमल होने की कोई कामना पालते थे हमारे मन में पता नहीं क्यों ये शुरू से बैठा था कि जो भी आयेंगे चोर-धोखेबाज-दगाबाज ही आयेंगे
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