कहानी "चंद्रकांता" के चौथे भाग में वीरेन्द्रसिंह एक वनकन्या को जमीन से निकलकर अपने पैरों को पकड़ते हुए देखकर घबरा जाते हैं। वह सोचते हैं कि वनकन्या यहां क्यों आई है और योगी कौन है जो उसकी मदद कर रहा है। कुमार वनकन्या को जानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने इसके साथ बड़े उपकार किए हैं, लेकिन उनका वादा कुमारी चंद्रकान्ता के बिना पूरा नहीं हो सकता। योगी वनकन्या से पूछते हैं कि कैसे पता चला कि चंद्रकान्ता मर गई है। कुमार बताता है कि वह पहले इस जगह चंद्रकान्ता और चपला से मिला था, और अब दो लाशें देखकर उसे ऐसा लगता है कि वे दोनों मर गई हैं। योगी तेजसिंह से कहते हैं कि यह उनकी बड़ी भूल है कि उन्होंने लाशों की पहचान नहीं की। तेजसिंह मानते हैं कि यह उनकी गलती थी। योगी एक ओर इशारा करते हैं, जिससे सभी लोग देख रहे होते हैं, लेकिन जब तेजसिंह फिर योगी से बात करने की कोशिश करते हैं, तो वह और वनकन्या गायब हो चुके होते हैं। वीरेन्द्रसिंह तेजसिंह से पूछते हैं कि योगी ने उन्हें क्या दिखाया और वे दोनों कहां चले गए। तेजसिंह जवाब देने में असमर्थ हैं। कहानी का यह भाग रहस्य और तनाव से भरा है, जिसमें पात्रों के बीच संवाद और घटनाओं का क्रम आगे बढ़ता है।
चंद्रकांता - 4
Devaki Nandan Khatri
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
वनकन्या को यकायक जमीन से निकल पैर पकड़ते देख वीरेन्द्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहां वनकन्या क्योंकर आ पहुंची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत देर तक चुप रहने के बाद कुमार ने योगी से कहा, मैं इस वनकन्या को जानता हूं। इसने हमारे साथ बड़ा भारी उपकार किया है और मैं इससे बहुत कुछ वादा भी कर चुका हूं, लेकिन मेरा वह वादा बिना कुमारी चंद्रकान्ता के मिले पूरा नहीं हो सकता।
चंद्रकान्ता हिन्दी के शुरुआती उपन्यासों में है जिसके लेखक देवकीनन्दन खत्री हैं। इसकी रचना १९ वीं सदी के आखिरी में हुई थी। यह उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय...
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