कहानी "चंद्रकांता" के तीसरे भाग में, एक नाजुक महिला जिसे वनकन्या कहा गया है, एक किताब के साथ चल रही है। वह एक अन्य जवान महिला के साथ है, जो एक तस्वीर लिए हुए है। जब वनकन्या उस महिला को किताब देती है, तो वह तस्वीर देखकर भावुक हो जाती है। कुमार वीरेन्द्रसिंह और फतहसिंह, जो पेड़ों के पीछे छिपे हैं, इस दृश्य को देख रहे हैं। कुमार को लगता है कि यह किताब वही है जो पहले उसे तिलिस्म से मिली थी और जिसे खोजने के लिए उनके ऐयार लगे हुए हैं। कुमार और फतहसिंह यह सोचते हैं कि किताब वनकन्या के हाथ में कैसे आई और यह भी आश्चर्य करते हैं कि तस्वीर भी कुमार की है। तभी तेजसिंह आते हैं और बताते हैं कि उन्हें किताब नहीं मिली है और वह कुमार से हमेशा के लिए जुदा हो रहे हैं। तेजसिंह की हालत देखकर सभी चिंतित हो जाते हैं। फिर ज्योतिषी जगन्नाथ बताते हैं कि किताब किसी तीसरे व्यक्ति ने ले ली है, जिससे तेजसिंह का मन थोड़ा ठीक होता है। कुमार को यह जानकर आश्चर्य होता है कि जिनके हाथ में किताब पहुंची, उनकी जानकारी नहीं मिल पाई।
चंद्रकांता - 3
Devaki Nandan Khatri
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
चंद्रकांता - 3 (लेखक - देवकीनंदन खत्री ) चंद्रकान्ता हिन्दी के शुरुआती उपन्यासों में है जिसके लेखक देवकीनन्दन खत्री हैं। इसकी रचना १९ वीं सदी के आखिरी में हुई थी। यह उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था और कहा जाता है कि इसे पढने के लिये कई लोगों ने देवनागरी सीखी थी। यह तिलिस्म और ऐयारी पर आधारित है और इसका नाम नायिका के नाम पर रखा गया है। कथानक : चन्द्रकान्ता को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार विरेन्द्र विक्रम को आपस मे प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ के महाराज नवगढ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है। हांलांकि इसका जिम्मेदार विजयगढ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार विरेन्द्र विक्रम की प्रमुख कथा के साथ साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेन्द्र सिंह तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चन्द्रकांता के परिणय से होता है। उपन्यास का आकर्षण हैं तिलिस्मी और ऐयारी के अनेक चमत्कार जो पाठक को विस्मित तो करते ही हैं, रहस्य निर्मित करते हुए उपन्यास को रोचकता भी प्रदान करते हैं। क्रूर सिंह के षड्यंत्र एवं वीरेन्द्र विक्रम के पराक्रम का वर्णन अत्यधिक रोचक बन जाता हैं।
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