प्रेमचंद की बाल कहानियों की इस संकलन में "गुल्ली-डंडा" शीर्षक कहानी का वर्णन है, जिसमें लेखक गुल्ली-डंडा खेल के प्रति अपने प्रेम और बचपन की यादों को साझा करते हैं। वे इसे सभी खेलों का राजा मानते हैं, जिसमें खेलने के लिए किसी महंगे उपकरण की आवश्यकता नहीं होती। लेखक बताते हैं कि आजकल के बच्चे अंग्रेजी खेलों की ओर आकर्षित हो गए हैं, जबकि भारतीय खेल जैसे गुल्ली-डंडा सरल और सुलभ हैं। कहानी में, लेखक अपने बचपन की मीठी यादों को ताजा करते हैं, जिसमें पेड़ पर चढ़कर गुल्ली बनाना और दोस्तों के साथ खेलना शामिल है। वे यह भी बताते हैं कि इस खेल में सामाजिक भेदभाव नहीं था, और सभी बच्चे एक समान आनंद लेते थे। लेखक के एक साथी का उल्लेख है, जो गुल्ली-डंडा में माहिर था और उसकी जीत हमेशा सुनिश्चित होती थी। इस प्रकार, यह कहानी बचपन की सरलता, मित्रता और खेल के प्रति प्रेम को उजागर करती है।
भाग-३- प्रेमचंद की बाल कहानियाँ
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी बाल कथाएँ
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विवरण
Part-3 - Premchand ki Bal Kahaniya
रेमचंद हिंदी के उन महान् कथाकारों में थे, जिन्होंने बडों के लिए विपुल कथा-संसार की रचना के साथ-साथ विशेष रूप से बच्चों के लिए भी लिखा। उस समय एक ओर स...
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