यह कहानी "आशा = निराशा" के सिद्धांत पर आधारित है। लेखक का कहना है कि इस दुनिया में लोग स्वार्थी होते हैं और कोई भी वास्तव में किसी के लिए नहीं जीता। जीवन में सच्चे मित्र मिलना बहुत कठिन है, और हमें अपने आप पर भरोसा करना चाहिए ताकि कोई हमें निराश न कर सके। लेखक यह भी बताते हैं कि जब हम दूसरों पर आशा रखते हैं, तो अक्सर हम निराश होते हैं, क्योंकि मुश्किल समय में लोग हमारे साथ नहीं होते। समय का आभास हमें यह समझाता है कि कौन हमारे लिए सच्चा है और कौन पराया। इसलिए हमें दूसरों पर भरोसा रखने के बजाय अपने आप पर भरोसा करना चाहिए। कहानी में यह भी कहा गया है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहिए और दूसरों की बुराइयों पर ध्यान न देकर अपनी सोच पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अंत में, लेखक यह निष्कर्ष निकालते हैं कि हमें केवल अपनों से आशा रखनी चाहिए, क्योंकि दूसरों पर आशा रखना निराशा का कारण बनता है। आशा निराशा Rinkal Raja द्वारा हिंदी पत्रिका 2.7k 4.3k Downloads 22k Views Writen by Rinkal Raja Category पत्रिका पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण आशा निराशा More Likes This इतना तो चलता है - 3 द्वारा Komal Mehta जब पहाड़ रो पड़े - 1 द्वारा DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) नव कलेंडर वर्ष-2025 - भाग 1 द्वारा nand lal mani tripathi कुछ तो मिलेगा? द्वारा Ashish आओ कुछ पाए हम द्वारा Ashish जरूरी था - 2 द्वारा Komal Mehta अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी