यह कहानी रोहिणी नाम की एक छोटी लड़की के बारे में है, जो अपने नाख़ूनों को बढ़ाने और सजाने के सपने देख रही है। वह अपने नाख़ूनों को तराश रही है और सोच रही है कि वह उन्हें मनपसंद रंगों से रंगेगी। उसकी यादों में बचपन का एक पल है जब वह अपनी माँ और दादी से छिपकर अपने नाख़ून बढ़ा रही थी ताकि वह अपनी सहेली की बहन की शादी में सज सके। कहानी में रोहिणी और उसका जुड़वां भाई रोहन हैं। रोहिणी अपने लिए एक नया बैग चाहती है, लेकिन माँ उसे यह कहकर टाल देती हैं कि वह अपने भाई का पुराना बैग ले ले। इससे रोहिणी नाराज हो जाती है और रोहन के साथ झगड़ती है, जिससे उसे नाख़ूनों से खरोंच लग जाती है। दादी को जब इस बारे में पता चलता है, तो वह गुस्से में आकर रोहन को डांटती हैं और रोहिणी के नाख़ूनों के बारे में भी बोलती हैं। कहानी अंत में रोहिणी के नाख़ूनों की बढ़ती हुई स्थिति और परिवार में होने वाले झगड़ों को दर्शाती है, जो बच्चों की मासूमियत और उनके छोटे-छोटे सपनों को उजागर करती है। बस ! अब और नहीं ... Upasna Siag द्वारा हिंदी क्लासिक कहानियां 3.7k 2.7k Downloads 9.2k Views Writen by Upasna Siag Category क्लासिक कहानियां पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण "ला ,नाख़ून काटने वाला तो ला इसके अभी सारे नाख़ून काट देती हूँ। अभी उगी तो है ही नहीं और पंख उग आये हैं इसके ! चली है फैशन करने !" दादी बड़बड़ा रही थी और उसके नाख़ून काटे जा रही थी। मासूम सी रोहिणी ने विरोध तो किया लेकिन सुनवाई नहीं हुई। हसरत से टूटते नाख़ून देखती रही। आँखे डबडबा कर रह गई। बात नाख़ून के काटने की नहीं थी। बात तो बिना गलती के जो उसे दण्ड दिया गया था। वह मन में कही कचोट गयी नन्ही सी रोहिणी को। उसने कितने प्यार से नाख़ून बढ़ाये थे । कल्पना में ना जाने कितने रंगों से रंगा होगा उसने। सारे रंग बिखर गए। वह जोर से रो भी नहीं पाई। हां ! उस दिन उसके हृदय में छोटे -छोटे कील जैसे नाख़ून जरुर उग आये थे। जो रात भर चुभते रहे रोहिणी के हृदय में। ' नाख़ून ' शब्द सुनते ही उसे लगा वह खुद ही ना-खून है , बे-जान है। जब मर्ज़ी काट लो , कुतर लो। उसके मन को कौन समझता है। दादी क्या बोल रही थी उसे नहीं सुनायी दिया फिर वह तो ना जाने खो सी गई कहीं , शायद अपनी भीतर की दुनिया में। दादी ने क्या शगुन दिया उसे नहीं मालूम। वह सर झुकाये रही। तभी किसी ने उसे छूते हुए कहा कि दादी जी के पैर छुओ। दादी ने बड़े प्यार से रोहिणी के सर पर हाथ रखा। दादी के स्पर्श में एक अपनापन था। रोहिणी को लगा जैसे उसकी , पिता के घर से उखड़ी हुई जड़ों को गीली मिट्टी ने छुआ हो। मुरझाती जड़ को जैसे हल्का सा सहारा मिल गया हो। More Likes This Last Benchers - 1 द्वारा govind yadav जेन-जी कलाकार - 3 द्वारा Kiko Xoxo अंतर्निहित - 1 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave वो जो मैं नहीं था - 1 द्वारा Rohan रुह... - भाग 7 द्वारा Komal Talati कश्मीर भारत का एक अटूट हिस्सा - भाग 1 द्वारा Chanchal Tapsyam बीते समय की रेखा - 1 द्वारा Prabodh Kumar Govil अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी