यह लेख प्रमोद रंजन द्वारा लिखित है और इसमें साहित्य में त्रिवेणी संघ और उसके साहित्य पर चर्चा की गई है। 2002 में मधुकर सिंह के उपन्यास 'कथा कहो कुंती माई' में बिहारी टोला के लोग 1930 के दशक के एक अधूरे युद्ध को फिर से जारी करने की बात करते हैं। उपन्यास 1968 से 1974 के बीच के नक्सल आंदोलन की घटनाओं पर केंद्रित है, जिसमें पात्र बार-बार उस 'युद्ध' का उल्लेख करते हैं, जो दलित, खेतिहर और शिल्पकार जातियों द्वारा लड़ा गया था। लेख में यह सवाल उठाया गया है कि 1930 के दशक का वह कौन सा युद्ध है जिसे ये लोग फिर से शुरू करना चाहते हैं, क्योंकि इतिहास में ऐसा कोई आंदोलन नहीं मिलता। यह युद्ध वास्तव में त्रिवेणी संघ का है, जिसकी स्थापना 30 मई 1933 को हुई थी। त्रिवेणी संघ का उद्देश्य पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था, और उपन्यास के पात्र उसी असमाप्त संघर्ष को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के माध्यम से जारी रखने का संकल्प लेते हैं। प्रसन्न कुमार चौधरी और श्रीकांत के शोध ने इस संघ के गठन के सही समय और इसकी स्थापना के विवरण को स्पष्ट किया है, जो पहले से ही गलत रूप से 1930 से पूर्व के रूप में जाना जाता था। लेख का निष्कर्ष यह है कि त्रिवेणी संघ का साहित्य और इतिहास न केवल बिहार की सामाजिक परिवर्तन की कहानी को दर्शाता है, बल्कि यह उस संघर्ष का भी प्रतीक है जिसे आज भी जारी रखने की आवश्यकता है। त्रिवेणी संघ का साहित्य Pramod Ranjan द्वारा हिंदी पत्रिका 7 3.6k Downloads 14.8k Views Writen by Pramod Ranjan Category पत्रिका पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण 1930 के दशक में बिहार में पिछडे और दलित समुदायों के बीच त्रिवेणी संघ ने एक प्रखर सामाजिक, सांस्कृतिक आदोलन खडा किया था। इस आंदोलन का व्यापक असर तत्कालीन राजनीति पर भी पडा था और कांग्रेस को अपने उच्च जातीय चरित्र पर पुनर्विचार के लिए मजबूर होना पडा था। आजाद के बाद उत्तर भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ जो राज्य सरकारें बनीं, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि इसी संघ ने तैयार की थी। कथात्मक शैली में लिखा गया यह आलेख उसी त्रिवेणी संघ के अनछुए पहलुओं को उद्घाटित करता है। More Likes This कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) नव कलेंडर वर्ष-2025 - भाग 1 द्वारा nand lal mani tripathi कुछ तो मिलेगा? द्वारा Ashish आओ कुछ पाए हम द्वारा Ashish जरूरी था - 2 द्वारा Komal Mehta गुजरात में स्वत्तन्त्रता प्राप्ति के बाद का महिला लेखन - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी