इस कहानी में सुख और दुःख की स्वीकृति पर चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि सुख, दुःख, आनंद, दर्द, और अन्य भावनाएँ अत्यंत सापेक्षिक होती हैं और व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करती हैं। आधुनिक समाज में लोगों की खुशी का मापदंड केवल परीक्षा के अंक, नौकरी में पदोन्नति या भौतिक वस्तुओं की खरीद तक सीमित रह गया है। लोग छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढना भूल गए हैं और छोटी बातों पर जल्दी ही दुखी हो जाते हैं। किसी व्यक्ति के लिए 55-56 प्रतिशत अंक खुशी का कारण बन सकते हैं, जबकि किसी अन्य के लिए 96-97 प्रतिशत अंक भी संतोषजनक नहीं हो सकते। इसके अलावा, लोग दूसरों की उपलब्धियों को अपने अनुभवों के आधार पर आंकते हैं। अंत में, यह संदेश दिया गया है कि हमें छोटी-छोटी खुशियों का स्वागत करना चाहिए और जब मन उदास हो, तो बिना किसी चिंता के अपने भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता लेनी चाहिए। सुख दुःख की स्वीकृति Suresh R. Karve द्वारा हिंदी लघुकथा 1.8k Downloads 9.8k Views Writen by Suresh R. Karve Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण Sukh Dukh Ki Svikruti More Likes This यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar Age Doesn't Matter in Love - 23 द्वारा Rubina Bagawan ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1 द्वारा Bikash parajuli Trupti - 1 द्वारा sach tar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी