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बचपना
kanchan द्वारा हिंदी लघुकथा
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विवरण
बचपन की 14-15 साल की उम्र कितनी प्यारी होती है, जब न दुनिया की फिक्र होती है, न पढ़ाई का ज्यादा तनाव। बस खुद को सँवारने, आईने में निहारने और नए-नए एहसासों में खो जाने का समय होता है।नीला और उसकी सहेलियाँ भी कुछ ऐसी ही थीं—मस्ती, शरारत और थोड़ी-बहुत पढ़ाई। सभी साइकिल से स्कूल आती-जाती थीं, और स्कूल के लड़के भी कम शरारती नहीं थे। हर लड़की के पीछे कोई न कोई दीवाना था, लेकिन वो प्यार बस नाम का था, जिम्मेदारियों से कोसों दूर| वैसे वो उम्र ही छोटी थी |नीला की सहेलियाँ उसे अक्सर छेड़तीं, "अरे, तुझे
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