Koiya ke Phool - 3 book and story is written by Dr. Suryapal Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Koiya ke Phool - 3 is also popular in Anything in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कोइयाँ के फूल - 3
Dr. Suryapal Singh
द्वारा
हिंदी कुछ भी
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विवरण
ग़ज़ल खण्ड1हाशिये पर जो यहाँ औंधे पड़े हैं।घर उन्हीं के बारहा क्योंकर जले हैं?हर किसी की ज़िन्दगी उत्सव न होती,दर्द अपना पी तुम्हें लगते भले हैं।चित्र छोड़े आँसुओं ने गाल पर जो,अर्थ उनके खोज लेना पट खुले हैं।झाड़ियाँ मग में कँटीली, तमस गहराऔर राहें छेंकते विषधर डटे हैं।सेज फूलों की मयस्सर कब उन्हें जोरास्ते ही खोजते आगे बढ़े हैं।2कभी यूँ ही चुप रहने को मन करे।दुखों को चुप-चुप सहने को मन करे।भँवर में कश्ती है यह जानता हूँ,भँवर से किन्तु निकलने को मन करे।कपोलों पर बैठे रक्त
कोइयाँ के फूल
ताल में खिले हैं
कोइयाँ के फूल
आना तुम साथ-साथ खेलेंगे,
साथ-साथ उछलेंगे-कूदेंगे,
नीले पानी में आसमान देखेंगे।
आ...
ताल में खिले हैं
कोइयाँ के फूल
आना तुम साथ-साथ खेलेंगे,
साथ-साथ उछलेंगे-कूदेंगे,
नीले पानी में आसमान देखेंगे।
आ...
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