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रामायण - अध्याय 4 - किष्किंधाकाण्ड - भाग 2
MB (Official)
द्वारा
हिंदी आध्यात्मिक कथा
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विवरण
(2) सुग्रीव का वैराग्य* कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। बालि महाबल अति रनधीरा॥दुंदुभि अस्थि ताल देखराए। बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए॥6॥ भावार्थ : सुग्रीव ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए, बालि महान् बलवान् और अत्यंत रणधीर है। फिर सुग्रीव ने श्री रामजी को दुंदुभि राक्षस की हड्डियाँ व ताल के वृक्ष दिखलाए। श्री रघुनाथजी ने उन्हें बिना ही परिश्रम के (आसानी से) ढहा दिया। * देखि अमित बल बाढ़ी प्रीती। बालि बधब इन्ह भइ परतीती॥बार-बार नावइ पद सीसा। प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा॥7॥ भावार्थ : श्री रामजी का अपरिमित बल देखकर सुग्रीव की प्रीति बढ़ गई और उन्हें विश्वास हो गया कि ये
प्रथम सोपान-मंगलाचरण
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, र...
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, र...
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