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रामायण - अध्याय 3 - अरण्यकाण्ड - भाग 3
MB (Official)
द्वारा
हिंदी आध्यात्मिक कथा
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विवरण
(3) राम का दंडकवन प्रवेश, जटायु मिलन, पंचवटी निवास और श्री राम-लक्ष्मण संवाद* है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ। पावन पंचबटी तेहि नाऊँ॥दंडक बन पुनीत प्रभु करहू। उग्र साप मुनिबर कर हरहू॥8॥ भावार्थ : हे प्रभो! एक परम मनोहर और पवित्र स्थान है, उसका नाम पंचवटी है। हे प्रभो! आप दण्डक वन को (जहाँ पंचवटी है) पवित्र कीजिए और श्रेष्ठ मुनि गौतमजी के कठोर शाप को हर लीजिए॥8॥ * बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिन्ह पर दाया॥चले राम मुनि आयसु पाई। तुरतहिं पंचबटी निअराई॥9॥ भावार्थ : हे रघुकुल के स्वामी! आप सब मुनियों पर दया करके वहीं निवास कीजिए।
प्रथम सोपान-मंगलाचरण
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, र...
श्लोक :
* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, र...
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