स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार Ranjana Jaiswal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें महिला विशेष किताबें स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार Ranjana Jaiswal द्वारा हिंदी महिला विशेष 351 1k मैं हुआ करती थी /एक ठंडी पतली धारा /बहती हुई जंगलों ,पर्वतों और वादियों में /मैंने जाना कि ठहरा हुआ पानी /भीतर से मारा जाता है /जाना कि समुद्र की लहरों से मिलना धाराओं को नयी जिंदगी देना है ...और पढ़ेतो लंबा रास्ता न अंधेरे खड्ड न रूक जाने का लालच /रोक सके मुझे बहते जाने में /अब मैं जा मिली हूँ अंतहीन लहरों से /संघर्षों में मेरा अस्तित्व है और मेरा आराम है मेरी मौत |प्रत्येक विमर्श अपने समय में तर्कों ,अध्ययनों ,मनन और चिंतन की प्रक्रिया से गुजरता है परंतु व्यवहार का विमर्श विचार के विमर्श से अलग कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें स्त्री विमर्श बनाम मानवाधिकार अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी Ranjana Jaiswal फॉलो