Ek Duniya Ajnabi - 34 book and story is written by Pranava Bharti in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ek Duniya Ajnabi - 34 is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एक दुनिया अजनबी - 34
Pranava Bharti द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां
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विवरण
एक दुनिया अजनबी 34- इसी मृदुला को ढूँढ़ते हुए प्रखर उस स्थान पर पहुँचा था जहाँ उसके फ़रिश्तों ने भी कभी जाने की कल्पना न की होगी | कितना चिढ़ता था वह मृदुला से किन्तु जब ज़रूरत पड़ी तो ऐसे स्थान पर भी पहुँचा ही न ! आदमी बड़ा स्वार्थी होता है, शायद बिना स्वार्थ के दुनिया चलती भी नहीं ! कल्पना कहाँ होती है? वास्तविकता की कठोर धरती कहाँ-कहाँ खींचकर ले जाती है मनुष्य को ! समय के बहाव के अनुसार आदमी को बहना ही पड़ता है | कोई चारा ही जो नहीं | "कभी-कभी लगता है अगर ब्रह्मा जिनके हम केवल नाम से परिचित हैं,
ऊपर आसमान के कुछ ऐसे छितरे टुकड़े और नीचे कहीं, सपाट, कहीं गड्ढे और कहीं टीलों वाली ज़मीन | गुमसुम होते गलियारे और उनमें खो जाने को आकुल-व्याकुल मन ! पत...
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