बावली बूच - सुनील कुमार राजीव तनेजा द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें पुस्तक समीक्षाएं किताबें बावली बूच - सुनील कुमार बावली बूच - सुनील कुमार राजीव तनेजा द्वारा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं 69 558 आमतौर पर किसी व्यंग्य कहानी या उपन्यास में समाज..सरकार..व्यक्ति अथवा व्यवस्था की ग़लतियों एवं कमियों को इस प्रकार से चुटीले अंदाज़ में उजागर किया जाता है कि सामने वाले तक बात भी पहुँच जाए और वह खिसियाने..कुनमुनाने.. बौखलाने..बगलें झाँकने ...और पढ़ेअलावा और कुछ ना कर पाए। व्यंग्यात्मक उपन्यास?..वो भी हरियाणा के एक छोरे की कलम से? बताओ..इससे बढ़ कर सोने पे सुहागा और भला इब के होवेगा?*जी..हाँ...वही हरियाणा..जित दूध दही का खाणा।* वही हरियाणा, जहाँ बात बात में हास्य अपने खड़े और खरे अंदाज़ में कभी भी औचक..बिना किसी मंशा एवं बात के खामख्वाह टपक पड़ता है।दोस्तों...आज मैं बात कर कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ राजीव तनेजा फॉलो