जाग उठा है रे इन्सान Bhavesh Lakhani द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें कविता किताबें जाग उठा है रे इन्सान जाग उठा है रे इन्सान Bhavesh Lakhani द्वारा हिंदी कविता 96 654 ** जाग उठा है रे इन्सान ** जाग उठा है रे इन्सानभगा दे अपने अंदर का शैतानछिपा है तुजमे अखुट ज्ञानयही है तेरी सच्ची पहेचानइसलिए तू है सबसे महान महेलो का तू होगा दिवानदीवारों के भी होते है कानतोल ...और पढ़ेके बोल अपना विधान फिसल न पाए कभी तेरी जुबान उजाला करके भगा अपना अज्ञान किधर रहेता है तेरा ध्यान तोड़ दे पहाड़ो की हर चट्टान खुद में खोज शक्तियों का तूफान तीर लगा तेरे लिए तैयार है कमानइस जग की तू इकलौती संतान गवाह हे इसका सारा आसमान तुज बिन धरती है वीरानप्रेम की मिट्टी का है तू कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Bhavesh Lakhani फॉलो