farishta book and story is written by SAMIR GANGULY in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. farishta is also popular in Children Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story. फरिश्ता SAMIR GANGULY द्वारा हिंदी बाल कथाएँ 5 1.4k Downloads 7.9k Views Writen by SAMIR GANGULY Category बाल कथाएँ पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण उसने झुककर सड़क पर धूल चाटती वह रसीद बुक उठा ली. पन्ने उलटे तो चेहरेपर रहस्यमयी मुस्कान की एक लहर तैर गई. यह नेत्रहीनों की सहायता के लिएबनी किसी सिंधवानी की चंदा एकत्र करने की रसीद-बुक थी. कुछ रसीदें कटी हुईभी थी और दान देने वालों में कोई श्री दातार थे. कोई मेजर अहलूवाहिया थे. तोकोई मिस डिसूजा थी और दान दी गई राशि की जगह कहीं पचास का अंक थातो कहीं पूरे सौ.पचास हो या सौ. संतु ने सोचा-महीने के बचे दस दिनों के लिए यह जेब खर्च राशिबुरी नहीं. हंसकर उसने मन ही मन अपनी तुलना उस व्यक्ति से की जिसने बेकार-बेकाम चीजों को इकट्ठा कर-करके चंडीगढ़ में ‘रॉक गार्डन’ बनाया है. यहां भीशरीर रूपी गार्डन के लिए इस बेकाम ‘रसीद-बुक’ की सार्थकता का सवाल था. उपयोगिता को अंजाम देने के लिए उसने सड़क के पार खड़ी बहुमंजिली इमारतोंकी ओर देखा! फिर उसके पांव खुद-ब-खुद उस ओर बढ़ चले.लिफ्ट पर आकर उसने बारहवीं मंजिल के बटन को दबा दिया और अपनी शिकारयोजना पर ‘जिम कार्बेट’ की तरह सोचने लगा. वैसे उसे घबराहट जरा भी नहीं होरही थी. होली, दीवाली, गणपति और क्रिकेट क्लब के नाम पर ‘चंदा संग्रह’ नामकी भिक्षा-वृत्ति उसने पहले भी कई बार की है.बारहवीं मंजिल पर आकर लिफ्ट रूक गई थी. और जब वह फ्लैट नंबर 123 केसामने आ खड़ा हुआ था. दरवाजे पर लगी तख्ती फरमा रही थी कि यह गोविंदाभाई दातनवाला साहब का निवास है. उसके कॉल-बेल पर उंगली रखी. बेलघनघना उठी और तुरंत ही भीतर से आवाज आई. ‘‘ दरवाजा खुला है. अंदरतशरीफ ले आओ.’’आमतौर पर बंबई में फ्लैट यूं खुले रखने और आगंतुक का ‘पीप होल’ से देखेबिना अंदर आने के निमंत्रण देने का रिवाज नहीं है. सो उसे थोड़ी हैरानी जरूर हुई.पर हैरानी ज़्यादा बढ़ी तब,जब उसने दरवाजे से अंदर प्रवेश किया.सामने सूट-बूट पहने एक व्यक्ति उसकी तरफ पीठ किए प्यानो के सामने बैठा थापर प्यानो को बजा नहीं रहा था. उसने गला खंखार कर उपस्थिति जतायी. तो भी वह आदमी उसकी तरफ मुड़ानहीं. वैसे ही बैठे-बैठे पूछा. ‘‘फरमाइए!’’‘‘ जी मैं सिंधवानी नेत्रहीन सोसायटी की तरफ से आया हूं. मेरा नाम है मानकचंद. हमारी संस्था नेत्रहीनों की दुनिया के अंधेरों को कम करने की कोशिश पिछलेसात सालों से करती आ रही है. बिना आंखों के दुनिया में कुछ भी तो नहीं है. ऐसेलोग आमतौर पर बड़ी निराश जिंदगी जीते हैं. हालांकि इन्हीं लोगों में अनेकप्रतिभाएं छिपी रहती हैं. हम कैंप लगाकर लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित करतेहैं. नेत्रहीनों का सम्मेलन कराकर उनमें आत्म-विश्वास भरते हैं, नेत्रहीनों को उच्चशिक्षा अपने व्यापार खोलने के लिए आर्थिक सहायता देते हैं. लेकिन सर, इसकेलिए रूपए पैसे की ज़रूरत होती है. सरकार से तो हमें कोई सहायता मिलती नहींसो हम आप जैसे दयालु और जागरूक लोगों के पास आते हैं और आप जैसेलोगों के भरोसे ही ऐसे महान कार्य कर पाते हैं. ये देखिए हमें आपकी तरह और भीकई लोगों ने चंदा देकर पुण्य कमाया है. तो सर आपके नाम कितने की रसीदकाटूं?’’संतु ने ध्यान नहीं दिया था. उसकी बात सुनते-सुनते उस आदमी का चेहरा उसकीओर घूम गया था. उस आदमी के मुंह में एक सोने का दांत था और आंखों पर मोटेफ्रेम का काला चश्मा चढ़ा हुआ था. और अब जब संतु ने बात खत्म की थी, उस व्यक्ति के दाए हाथ ने जेब में हाथ डालकर अपने बटुए से एक कड़क नोटनिकाल लिया था- सौ रुपए का नया नोट!‘‘ ये लो.’’ नोट उसकी तरफ बढ़ा दिया गया था. नोट को जल्दी से जेब के हवालेकर वह गोविंद भाई दातनवाला की दानवीरता को प्रमाणित करता हुआ रसीदकाटने लगा था.वे पुन: प्यानों पर जा बैठे थे, उसकी तरफ पीठ करके. उसे निर्देश हुआ कि रसीदमेज पर रख दो. नीचे उतरते हुए उसने कड़कड़ाते हुए नोट पर हाथ फेरा और उसे देखते हुए बेवकूफबूढ़े पर खिलखिलाकर हंसना चाहा. पर नोट को देखते ही दिल धक से रह गया. जी चाहा कि दोनों हाथों से अपने बालों को नोंच डाले. उसने दांत भींचते हुएलिफ्ट का लाल बटन दबाकर उसे रोक दिया और फिर से बारहवीं मंजिल काबटन दबा दिया. दरवाजा खुला ही था.‘‘ शर्म नहीं आयी आपको. मुझे नकली नोट पकड़ाते हुए!’’ दरवाजे से ही उसनेचीखकर कहा और अंदर घुसा तो उसके पैर वहीं जकड़े रह गए. उसने देखा. वहबूढ़ा आदमी अब उसी की तरफ चेहरा किए खड़ा था. उसका काला चश्मा उसकेहाथ में था और आंखों के स्थान पर स़िर्फ दो गड्ढे झांक रहे थे. वह अंधा था!संतु के भीतर क्या तो था जिसने उसे सिहरा कर इतनी जोर से झिंझोड़ा कि दिलसे कुछ उठकर आंखों तक आकर आंसू बनकर बह निकला.‘‘ क्या बात है भाई?’’ उस बूढ़े आदमी ने झटपट चश्मा पहनते हुए पूछा.‘‘ जी कुछ नहीं’’, संतु के हाथ में सौ का नोट था. पर वह समझ नहीं पा रहा थाकि क्या कहे,‘‘ क्या मैंने तुमसे कोई धोखेबाजी की है बेटे? अभी तो तुम कह रहे थे?’’ यह उसबूढ़े का दूसरा सवाल था जो मोम जितना मुलायम होता हुआ भी उस पर हथौड़े-सा पड़ा.‘‘ जी नहीं बल्कि आपसे ही किसी ने धोखा किया है. आपने अभी जो सौ का नोटमुझे दिया है वह असली नहीं, बल्कि नकली नोट है-चूरन वाला नोट!’’‘‘ नकली नोट! सौ के तीन नोट तो कल मुझे राशन वाले ने वापस किए थे. परभाई वह तो ईमानदार आदमी है.’’‘‘ अगर उसी ने दिए हैं, तो आप मेरे साथ चलिए उसके पास. पूछिए उससे. याफिर सीधे पुलिस स्टेशन ही चलिए, हो सकता है वह नकली नोटों का धंधा करताहो.’’‘‘हो सकता है बेटे. गलती से भी दिए हों, ऐसा भी हो सकता है. बहरहाल जो कुछभी हो. मैं उसे पुलिस के पास नहीं पकड़ाउंगा. दूसरों को ठगने से बेहतर है खुदठगे जाना. पता नहीं उसकी क्या मजबूरी रही होगी. तुम अपने घर जाओ बेटे. मैंउससे फिर कभी पूछ लूंगा कि उसने ऐसा क्यूं किया.... हां ठहरो, मैं देखता हूंशायद मेरे पास कोई दूसरा नोट पड़ा हो.’’‘‘ रूकिए अंकल!’’ संतु फकफका उठा, ‘‘ आप उसे नहीं तो मुझे ही पुलिस केहवाले कर दीजिए. मैं भी आपको धोखा दे रहा हूं. यह जाली रसीद-बुक है और मैंएक आवारा लड़का हूं. आज मुझे खुद से ही नफरत हो गई है.’’‘‘ मेरे पास आओ बेटे!.’’ वह बूढ़ा हाथ फैलाकर संतु को टटोलकर अपनी बाहों मेंभरते हुए भर्राए शब्दों में बोला, ‘‘ एक मासूम बच्चे को राह में लाने के लिए मुझेसौ बार ऐसा धोखा खाना मंजूर है.’’तब संतु भी जोर से रो दिया था और उसने महसूस किया था कि वह बूढ़ा एकफरिश्ते सा उसे पंखों में छिपाकर आंसू बहाते हुए मानवता का सबसे महत्त्वपूर्णपाठ पढ़ा रहा है.(पराग सितंबर 1997) More Likes This तेरी मेरी यारी - 1 द्वारा Ashish Kumar Trivedi आम का बगीचा - भाग 1 द्वारा pooja एक बस स्टॉप द्वारा Birendrapatel विवान द सुपर स्टार - 1 द्वारा Himanshu Singh मिन्नी और चीकी की दोस्ती द्वारा MB (Official) आपकी मुस्कान द्वारा DINESH KUMAR KEER बगुला और सांप द्वारा DINESH KUMAR KEER अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी