जोकर Vivek Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें सामाजिक कहानियां किताबें जोकर जोकर Vivek Mishra द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां 132 1.2k जोकर - विवेक मिश्र फिर मेट्रो आई रुकी और चली गई. समय से घर पहुँचने का एक मौका आया,रुका और आँखों के सामने से सरकता चला गया. एक दिन,एक घंटा जल्दी जाने की मोहलत नहीं मिल ...और पढ़ेनौकरी है या गुलामी. न जाने भाबू का बुखार उतरा होगा कि नहीं. कितनी बार कहा है जशोदा से, 'थोड़ा अपने आप भी निकला करो घर से,देख लो आस-पास की जगहें जिससे बखत-जरूरत जा सको बाहर.'पर हमेशा एक ही बात, 'बाहर जाते डर लगता है,शहर है या समन्दर. अकेले घर से निकलने की बात सोचते ही जी कच्चा होने कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Vivek Mishra फॉलो