बिराज बहू - 4 Sarat Chandra Chattopadhyay द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें सामाजिक कहानियां किताबें बिराज बहू - 4 बिराज बहू - 4 Sarat Chandra Chattopadhyay द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां (35) 6.9k 16.8k छ: माह बीत गये। पूंटी की शादी के समय ही छोटा भाई अपना हिस्सा लेकर अलग हो गया था। नीलाम्बर कर्ज आदि लेकर बहनोई की पढ़ाई व अपना घर का खर्च चलाता रहा। कर्ज का बोझ दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया। ...और पढ़ेबाप-दादों की जमीन वह नहीं बेच सका। तीसरे प्रहर भालानाथ मुकर्जी को लेकर जली-कटी सुना गए थे। बिराज ने सब सुन लिया था। नीलाम्बर के भीतर आते ही चुपचाप उसके सामने खड़ी हो गई। नीलाम्बर धबरा गया। हालांकि वह क्रोध व अपमान से धुंआ-धुंआ हा रही थी, पर उसने अपने को संयत करके कहा- “यहाँ बैठो!” नीलाम्बर पलंग पर बैठ गया। बिराज उसके पायताने बैठ गई, बोली- “कर्ज चुकाकर मुझे मुक्त करो, वरना तुम्हारे चरण छूकर मैं सौगन्ध खा लूंगी।” कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें बिराज बहू - 4 बिराज बहू - उपन्यास Sarat Chandra Chattopadhyay द्वारा हिंदी - सामाजिक कहानियां (525) 91.2k 202.2k Free Novels by Sarat Chandra Chattopadhyay अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी Sarat Chandra Chattopadhyay फॉलो