टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2 प्रियंका गुप्ता द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Tukda-Tukda Jindagi द्वारा  प्रियंका गुप्ता in Hindi Novels
ढोलक की थापों के साथ बन्ना घोड़ी गाने वाली का सुर भी तार-सप्तक नापने लगता था। बीच-बीच में कहीं सुर धीमा पड़ता तो नसीबन खाला की हाँक...अरे, सुबह कुछ खाया...

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