कहानी एक वर्किंग वूमेन के जीवन की है, जो एक हॉस्टल में रहती है। शाम के समय, जब वह अपने कमरे में लौटती है, तो उसे ऑफिस और ट्रैफिक की थकान से राहत मिलती है। वह अपने कमरे को घर मानने लगती है, जहाँ वह शांति महसूस करती है। एक दिन, उसके लैपटॉप पर एक अनजान व्यक्ति का संदेश आता है, जिससे उसकी बातचीत शुरू होती है। वे दोनों अपने दिन की बोरियत पर चर्चा करते हैं और एक किताब के बारे में बात करते हैं। कहानी में आधुनिक चैटिंग की चुनौतियों और व्यक्तिगत संबंधों की खोज को दर्शाया गया है। नाम में क्या रखा है... प्रियंका गुप्ता द्वारा हिंदी सामाजिक कहानियां 6 4k Downloads 16.3k Views Writen by प्रियंका गुप्ता Category सामाजिक कहानियां पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण शाम के साढ़े छः बजे थे। वो बस अभी ही कमरे में घुसी थी। पूरा दिन कितना तो थकान भरा रहता है, पहले ऑफ़िस की चकपक से जूझो, फिर रास्ते के ट्रैफ़िक की चिल्लपों...नर्क लगती है ज़िन्दगी...। ऐसे में उसे रवि किशन की फ़ेमस पंचलाइन ही याद आती है...ज़िन्दगी झण्ड बा, फिर भी घमण्ड बा...। अब वापस घर आती है तो लगता है मानो स्वर्ग में घुस रही हो...कम-से-कम वहाँ की शान्ति तो उसे स्वर्गिक ही लगती है...। More Likes This जिंदगी के रंग - 1 द्वारा Raman रुह... - भाग 8 द्वारा Komal Talati उज्जैन एक्सप्रेस - 1 द्वारा Lakhan Nagar माँ का आख़िरी खत - 1 द्वारा julfikar khan घात - भाग 1 द्वारा नंदलाल मणि त्रिपाठी सौंदर्य एक अभिशाप! - पार्ट 2 द्वारा Kaushik Dave चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी