कहानी "होल्डाल के शिकार" 1965 में इलाहाबाद में एक ए. एस. पी. की यात्रा के दौरान घटित होती है। लेखक को एपेंडिक्स का दर्द होता है और उन्हें आगरा जाना होता है। उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट खरीदा और दो सिपाही उनके लिए बर्थ पर होल्डाल रखकर जगह बना देते हैं। जब वे गाड़ी में बैठते हैं, तो सामने बैठे एक परिवार के सदस्य उनके लिए अपमानजनक टिप्पणियाँ करना शुरू करते हैं। लेखक को समझ में आता है कि सिपाहियों ने उस परिवार के हक में बर्थ पर कब्जा नहीं किया था। फिर टी. टी. आता है और उस परिवार के पास टिकट की कमी पाई जाती है, लेकिन अंततः जुर्माना नहीं वसूलता। यह कहानी रेल यात्रा के अनुभव और सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालती है।
होल्डाल के शिकार
Mahesh Dewedy द्वारा हिंदी हास्य कथाएं
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विवरण
In times goneby HOLD-ALL used to be an essential item for long distance well-to-do travellers. It used to serve many purposes- carrying everything including pillow and quilt, impressing those who were without hold-all and for unauthorisedly reserving a berth in second class and third class compartments. Some interesting experiences have been jotted down in this memoir.
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