इस अध्याय में, सुचरिता ने आनंदमई के साथ बिताए कुछ दिनों में एक गहरी सांत्वना और स्नेह अनुभव किया। आनंदमई ने उसे इतना पास खींच लिया कि सुचरिता ने कभी सोचा ही नहीं था कि वे एक-दूसरे के लिए अपरिचित हो सकते हैं। सुचरिता ने आनंदमई को 'माँ' कहकर बुलाने की आदत बना ली थी। ललिता के विवाह के बाद, सुचरिता को यह चिंता सताने लगी कि वह आनंदमई को कैसे छोड़ पाएगी। जब उसने 'माँ' पुकारा, तब आनंदमई उसके पास आईं और सुचरिता ने उनके पास रोना शुरू कर दिया। विनय के विवाह के बाद आनंदमई विदा नहीं हो पाईं क्योंकि उन्होंने कहा कि दोनों नवविवाहित अनाड़ी हैं और उनकी गृहस्थी संभालने में मदद करनी चाहिए। सुचरिता ने आनंदमई के पास और समय बिताने का प्रस्ताव रखा, जिस पर ललिता और सतीश भी सहमत हुए। सतीश ने यह भी कहा कि वे सुचरिता के साथ रहना चाहते हैं, यह बताते हुए कि विनय उसे पढ़ा देंगे। इस प्रकार, परिवार में एकजुटता और परस्पर स्नेह का भाव प्रकट होता है। गोरा - 19 Rabindranath Tagore द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी 7.9k 4k Downloads 9.7k Views Writen by Rabindranath Tagore Category फिक्शन कहानी पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण अपने यहाँ बहुत दिन उत्पीड़न सहकर आनंदमई के पास बिताए हुए इन कुछ दिनों में जैसी सांत्वना सुचरिता को मिली वैसी उसने कभी नहीं पाई थी। आनंदमई ने ऐसे सरल भाव से उसे अपने इतना समीप खींच लिया कि सुचरिता यह सोच ही नहीं सकी कि कभी वे उससे दूर या अपरिचित थीं। न जाने कैसे उन्होंने सुचरिता के मन को पूरी तरह समझ लिया था और बिना बात किए भी वह सुचरिता को जैसे एक गंभीर सांत्वना देती रहती थीं। सुचरिता ने आज तक कभी 'माँ' शब्द का इस प्रकार उसमें अपना पूरा हृदय उँडेलकर उच्चारण नहीं किया था। वह कोई काम न रहने पर भी आनंदमई को 'माँ' कहकर पुकारने के लिए तरह-तरह के बहाने खोजकर बुलाती रहती थी। ललिता के विवाह के सब कर्म संपन्न हो जाने पर थकी हुई बिस्तर पर लेटकर वह बार-बार सिर्फ एक ही बात सोचने लगी, कि अब आनंदमई को छोड़कर वह कैसे जा सकेगी। Novels गोरा वर्षाराज श्रावण मास की सुबह है, बादल बरसकर छँट चुके थे, निखरी चटक धूप से कलकत्ता का आकाश चमक उठा है। सड़कों पर घोड़ा-गाड़ियाँ लगातार दौड़ रही हैं, फेर... More Likes This उजाले की राह द्वारा Mayank Bhatnagar Operation Mirror - 3 द्वारा bhagwat singh naruka DARK RVENGE OF BODYGARD - 1 द्वारा Anipayadav वाह साहब ! - 1 द्वारा Yogesh patil मेनका - भाग 1 द्वारा Raj Phulware बेवफाई की सजा - 1 द्वारा S Sinha RAJA KI AATMA - 1 द्वारा NOMAN अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी