यह कहानी मधु और महेश की है, जो अपने बेटे राजीव के विवाह की योजना बना रहे हैं। मधु चाहती है कि राजीव का विवाह जल्दी हो, क्योंकि वह अब छब्बीस वर्ष का हो गया है और अच्छी नौकरी कर रहा है। लेकिन महेश का कहना है कि सही लड़की मिलना जरूरी है, क्योंकि पिछले छह महीनों में जो भी रिश्ते आए, उनमें से किसी को राजीव पसंद नहीं आया या उसे पसंद नहीं आई। राजीव अपनी माँ से सवाल करता है कि वह किस तरह की लड़की चाहती हैं, क्योंकि कई योग्य लड़कियों को उन्होंने इस आधार पर अस्वीकार कर दिया है कि वे पढ़ाई में केवल डिग्री हासिल कर चुकी हैं लेकिन उनमें तार्किक विचार करने की क्षमता नहीं है। वह यह भी पूछता है कि क्या प्राइवेट सेक्टर में काम करना गुनाह है। राजीव का मानना है कि माता-पिता को अपने विचारों में लचीलापन लाना चाहिए और उन्हें अपने बेटे की पसंद को प्राथमिकता देनी चाहिए। महेश भी राजीव की बात का समर्थन करता है और कहता है कि आज के समय में लड़कियों की पसंद और जरूरतें बदल गई हैं। वह मधु से आग्रह करता है कि उसे अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। कहानी यह दर्शाती है कि पारिवारिक विचारधाराओं और आधुनिकता के बीच का संघर्ष कैसे होता है, खासकर जब विवाह की बात आती है। नाती की चाह Dr kavita Tyagi द्वारा हिंदी लघुकथा 3.6k 2.2k Downloads 12.7k Views Writen by Dr kavita Tyagi Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण आधुनिकता के इस युग में व्यक्ति भौतिक उपलब्धियों के पीछे इस कद्र भाग रहा है कि वह स्वयं के अनमोल मानवीय भावों की पहचान खो रहा है । उसकी प्रकृति का एक अंग उसके कोमल भाव अतीत की कहानी बनते जा रहे हैं । क्षमा, सहिष्णुता , त्याग , प्रेम आदि भावों का ग्राफ निरंतर गिरता जा रहा है । जिस अनुपात में उसके उदात्त भावों का ग्राफ गिरता जा रहा है , उसी अनुपात में उसके तनाव का ग्राफ चढ़ रहा है । बाहर से देखने पर वह समृद्ध दिखाई देता है , लेकिन अंदर से खोखला हो रहा है । यहाँँ तक कि नारी जाति की अनमोल निधि ममता की भावना भी क्षीण हुई है । आजकल की युवा पीढ़ी एक और दांपत्य संबंध का दायित्व निर्वाह करने से पीछे हट रही है , तो साथ ही संतान उत्पत्ति तथा उसके भरण-पोषण का दायित्व-भार कंधों पर लेने से भी बचता दिखाई देता है । प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए प्राचीन भारतीय संस्कृति में जब संतान उत्पत्ति को पितृ-ऋण से उऋण होने का साधन माना जाता था , तब घर में छोटे बच्चे की किलकारियों से एक ओर वृद्ध-जनों का समय आनंद के साथ व्यतीत होता था , तो दूसरी ओर वृद्ध जनों का अनुभव प्राप्त करके छोटे बच्चों का भावात्मक तथा अनुशासनात्मक विकास होना सुनिश्चित हो जाता था । लेकिन वर्तमान पीढ़ी का जीवन दर्शन बदल रहा है । उसी विडम्बना को रेखांकित करती हुई रोचक शैली में रचित कहानी नाती की चाह पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। More Likes This यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan बड़े बॉस की बिदाई द्वारा Devendra Kumar Age Doesn't Matter in Love - 23 द्वारा Rubina Bagawan ब्रह्मचर्य की अग्निपरीक्षा - 1 द्वारा Bikash parajuli Trupti - 1 द्वारा sach tar अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी