दलित साहित्य: एक हुंकार इस लेख में आशीष कुमार त्रिवेदी ने अभिव्यक्ति की मानव की मूलभूत आवश्यकता के रूप में चर्चा की है। उन्होंने बताया है कि मानव ने भित्ति चित्रों और मूर्तियों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करना शुरू किया, और भाषा के विकास के साथ साहित्य का आरंभ हुआ। साहित्य न केवल सौंदर्य और श्रृंगार का माध्यम रहा है, बल्कि यह सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों के विरोध का भी साधन बना। लेख में बताया गया है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साहित्य ने देश प्रेम की भावना को जागृत किया, लेकिन समाज के दबे शोषित वर्ग की आवाज़ को साहित्य में जगह नहीं मिली। शिक्षा के प्रसार के साथ, शोषित समाज में अभिव्यक्ति की आवाज़ें उठने लगीं, जिससे दलित साहित्य का आरंभ हुआ। दलित साहित्य की परिभाषा को समझने के लिए 'दलित' शब्द की व्याख्या की गई है। दलित वह वर्ग है जो भारतीय हिंदू समाज में शोषित रहा है और जिन्हें समाज में सबसे निचले स्थान पर रखा गया है। दलित साहित्य उस लेखनी को दर्शाता है जो दलित समाज की व्यथा, घुटन और आक्रोश को व्यक्त करता है। यह जातिगत व्यवस्था के खिलाफ एक हुंकार है। कंवल भारती के अनुसार, दलित साहित्य वह साहित्य है जिसमें दलितों ने अपनी पीड़ा और जीवन संघर्ष को व्यक्त किया है। यह एक वास्तविकता का साहित्य है, न कि केवल कला के लिए कला। लेख में दलित साहित्य की परिभाषा को लेकर दो भिन्न मत भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिसमें एक पक्ष केवल दलित लेखकों के साहित्य को ही दलित साहित्य मानता है। दलित साहित्य: एक हुंकार Ashish Kumar Trivedi द्वारा हिंदी पत्रिका 3 2.2k Downloads 7.6k Views Writen by Ashish Kumar Trivedi Category पत्रिका पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण दलित साहित्य का अर्थ दलित समाज से संबंध रखने वाले व्यक्तियों की लेखनी से निकली शब्दों की वह धारा है जिसमें उनकी व्यथा, घुटन तथा आक्रोश के दर्शन होते हैं। दलित साहित्य वह हुंकार है जो समाज की जातिगत व्यवस्था का विरोध ही नहीं करती है बल्कि उससे टकराने का उद्घोष भी करती है। दलित चिंतन के नए आयाम का यह विस्तार साहित्य की मूल भावना का ही विस्तार है जो पारस्परिक और स्थापित साहित्य को आत्मविश्लेषण के लिए बाध्य करता है। झूठी और अतार्किक मान्यताओं का विरोध करता है। निरंजन कुमार अपनी किताब मुनष्यता के आइने में दलित साहित्य का समाजशास्त्र’ में लिखते हैं- “समाज और इतिहास दलितों के लिए जितना बर्बर और अमानवीय रहा, उसके विरूद्ध उनकी प्रतिक्रिया आक्रोशपूर्ण और एक उन्माद के रूप में रही, यह स्वाभाविक ही है बल्कि एक सीमा तक नैतिक भी है।” More Likes This कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) नव कलेंडर वर्ष-2025 - भाग 1 द्वारा nand lal mani tripathi कुछ तो मिलेगा? द्वारा Ashish आओ कुछ पाए हम द्वारा Ashish जरूरी था - 2 द्वारा Komal Mehta गुजरात में स्वत्तन्त्रता प्राप्ति के बाद का महिला लेखन - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी