महिषासुर नामक आंदोलन पिछले तीन वर्षों में तेजी से बढ़ा है, जिसमें विभिन्न उच्च अध्ययन संस्थानों और शहरों में 'महिषासुर शहादत दिवस' मनाया जा रहा है। यह आयोजन भारत के दमित बहुजनों के लिए एक त्योहार के रूप में विकसित हो रहा है। हालांकि, इस आयोजन के खिलाफ कुछ आपत्तियाँ उठी हैं, जैसे कि नास्तिकता का दावा करने वाले लोग महिषासुर की हत्या को स्वीकार करने के कारण दुर्गा के महिमामंडन को भी मानने के लिए कहते हैं। लेख में यह कहा गया है कि यह तर्क भ्रामक है और इसमें सच्ची नास्तिकता की कमी है। लेखक का मानना है कि मिथकीय कथाएँ एक पाठ होती हैं, जिनमें सामाजिक यथार्थ और ऐतिहासिकता का निवेश होता है। वे उदाहरण देते हैं कि कैसे साहित्यिक पात्रों के माध्यम से हम समाज और उसके इतिहास का अध्ययन कर सकते हैं। दुर्गा और महिषासुर की कथा के संदर्भ में यह विमर्श किया जा सकता है कि इसमें कितना यथार्थ और कितना कल्पना है। लेख में यह भी कहा गया है कि मिथकीय पात्रों के सच या झूठ को प्रमाणित करना कठिन है और इतिहास कभी भी अंतिम रूप से नहीं खोजा गया है। इस प्रकार, महिषासुर की कथा में तत्कालीन समाज की उपस्थिति को खारिज नहीं किया जा सकता है। राजा महिषासुर Pramod Ranjan द्वारा हिंदी पत्रिका 20.7k 13.6k Downloads 37.2k Views Writen by Pramod Ranjan Category पत्रिका पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन द्वारा संपादित पुस्तिका ‘किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन‘ को 17 अक्टूबर, 2013 को दिल्ली के दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में आयोजित ‘राजा महिषासुर शहादत दिवस‘ पर जारी किया गया था. उसी पुस्तिका का दूसरा संस्करण कुछ नये लेखों के साथ ‘महिषासुर‘ शीर्षक से अक्टूबर, 2014 में प्रकाशित किया गया था। यहां ई-बुक के रूप में उपलब्ध यह पुस्तिका का वही दूसरा संस्करण है। इसमें में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, लेखक प्रेमकुमार मणि, अश्विनी कुमार पंकज, चंद्रभूषण सिंह यादव, विनोद कुमार, इंडिया टुडे (हिंदी) के पूर्व प्रबंध संपादक दिलीप मंडल, पत्रकार संजीव चंदन, समर अनार्य समेत कई लेखकों, पत्रकारों व शोधार्थियों के लेख हैं. पुस्तिका में राजा महिषासुर को आदिवासियों, अन्य पिछडा वर्गों तथा दलित तबकों का नायक बताया गया है। उत्तर भारत में इन तबकों के बीच ‘राजा महिषासुर‘ के नाम से एक आंदोलन भी चल रहा है, जिसके तहत इन तबकों के लोग दुर्गा पूजा को हत्याओं जश्न करार देत हुए इसका विरोध करते हैं तथा शरद पूर्णिमा (आश्विन पूर्णिमा) को राजा महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन करते हैं। माना जाता है राजा महिषासुर की हत्या के बाद शरद पूर्णिमा के दिन ही उनके अनुयायियों ने शोक सभा आयोजित कर अपनी संस्कृति को जीवित रखने व अपनी खोई हुई संपदा को वापस लेने का संकल्प प्रकट किया था। More Likes This नेहरू फाइल्स - भूल-85 द्वारा Rachel Abraham इतना तो चलता है - 3 द्वारा Komal Mehta जब पहाड़ रो पड़े - 1 द्वारा DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR कल्पतरु - ज्ञान की छाया - 1 द्वारा संदीप सिंह (ईशू) नव कलेंडर वर्ष-2025 - भाग 1 द्वारा nand lal mani tripathi कुछ तो मिलेगा? द्वारा Ashish आओ कुछ पाए हम द्वारा Ashish अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी