कहानी में लेखक को किसी विशेष व्यक्ति का चालीस साल पहले का पहनावा याद आता है, जिसमें हल्के पीले रंग की स्वेटर और गंभीर चेहरा शामिल है। लेखक अपने अन्य दोस्तों का कोई भी पहनावा याद नहीं कर पाता है और उन्हें अजनबी महसूस होता है। एक दोस्त के साथ बातचीत करते हुए, वे अपने कॉलेज के दिनों की यादों को साझा करते हैं, विशेषकर गणित वर्ग के बारे में। दोस्त की बातें सुनकर लेखक को अतीत की कुछ बातें याद आती हैं, लेकिन कुछ बातें वे भूल गए हैं। बातचीत के दौरान दोस्त मिलकर किसी कार्यक्रम की योजना बनाते हैं, जिसमें वे दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर मिलने का निर्णय लेते हैं। रात को लेखक सपने में यमराज से मिलता है, जो उनसे स्वर्ग के लिए नामों की सूची बनाने के लिए कहते हैं। यमराज के साथ चाय पीने के बाद, लेखक अपने मन से कई नामों को सूची में डालता है। जब वह नींद से जागता है, तो उसे यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि "सपना देखना चाहिए" और मनुष्य बनने का। कहानी में यादों, दोस्ती और जीवन के गहरे अर्थों का एक सुंदर चित्रण किया गया है। चालीस साल पहले महेश रौतेला द्वारा हिंदी क्लासिक कहानियां 3.9k 2.5k Downloads 8.6k Views Writen by महेश रौतेला Category क्लासिक कहानियां पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण चालीस साल पहले: मुझे उसका चालीस साल पहले का पहनावा याद है।क्यों ऐसा है पता नहीं! हल्के पीले रंग की स्वेटर। खोजी सी आँखें और गम्भीर चेहरा। मुस्कान अछूत सी। अपने अन्य दोस्तों का पहनावे का कोई आभास नहीं हो रह है। यहाँ तक की अपने कपड़ों का भी रंग याद नहीं है। दोस्त अजनबी बन जाते और अजनबी दोस्त। एक दोस्त को फोन किया। बातें होती रहीं जैसे कोई नदी बह रही हो, कलकल की आवाज आ रही थी पुरानी बातों की। वह डीएसबी, नैनीताल पर आ पहुँचा। बीएससी प्रथम वर्ष की यादें उसे झकझोर रही थीं। गणित वर्ग में हम साथ-साथ थे पर दोस्ती के समूह तब अलग-अलग थे। उस साल बीएससी गणित वर्ग का परिणाम तेरह प्रतिशत रहा था। वह बोला, आप तो अपनी मन की बात कह देते थे लेकिन मैं तो किसी को कह नहीं पाया। दीक्षा थी ना। मैंने कहा, हाँ, एक मोटी-मोटी लड़की तो थी,गोरी सी। वह बोला, यार, मोटी कहाँ थी! मैं जोर से हँसा। फिर वह बोला, उसने बीएससी पूरा नहीं किया। वह अमेरिका चली गयी थी। मैंने कहा, मुझे इतना तो याद नहीं है और मैं ध्यान भी नहीं रखता था तब। मेरे भुलक्कड़पन से वह थोड़ा असहज हुआ।मैंने किसी और का संदर्भ उठाया, बीएससी का ही। वह विस्तृत बातें बताने लगा जो मुझे पता नहीं थीं। फिर उसने कहा कभी मिलने का कार्यक्रम बनाओ। दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर ही मिल लेंगे एक-दो घंटे। मैंने कहा तब तो मुझे एअरपोर्ट से रेलवे स्टेशन आना पड़ेगा या फिर रेलगाड़ी से आना पड़ेगा। उसने कहा, एअरपोर्ट पर ही मिल लेंगे। मैं सोचने लगा मेरा दोस्त ऐसा क्यों बोल रहा है अक्सर, हम किसी परिचित को घर पर मिलने को कहते हैं। नैनीताल में तो कई बार एक ही बिस्तर पर सोये थे। More Likes This Last Benchers - 1 द्वारा govind yadav जेन-जी कलाकार - 3 द्वारा Kiko Xoxo अंतर्निहित - 1 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave वो जो मैं नहीं था - 1 द्वारा Rohan रुह... - भाग 7 द्वारा Komal Talati कश्मीर भारत का एक अटूट हिस्सा - भाग 1 द्वारा Chanchal Tapsyam बीते समय की रेखा - 1 द्वारा Prabodh Kumar Govil अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी